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34वां सूरजकुंड मेला: नाबार्ड की मदद और हस्त कलाकारों का हुनर, बने मेले की शान

फरीदाबाद में 34वां सूरजकुंड मेला जारी है. मेले में हस्तकलाकारों की धूम है. वहीं ऐसे भी स्टॉल मौजूद हैं, जो अपने अच्छे खासे मुनाफे और प्रदर्शनी के लिए नाबार्ड को श्रेय देते हैं.

handicraft makers making big profit in surajkund mela because of nabard
नाबार्ड की मदद से दिखा सूरजकुंड मेले में खास हुनर

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Published : Feb 6, 2020, 2:50 PM IST

नई दिल्ली/फरीदाबाद:इस बार के सूरजकुंड मेले में नाबार्ड का विशेष योगदान है. नाबार्ड के माध्यम से देश के 55 कलाकारों को मेले में अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का मौका मिला है और उनके रहने, खाने और यात्रा सहित स्टॉल उपलब्ध करवाने का सारा इंतजाम भी नाबार्ड ने ही किया है.

नाबार्ड की मदद से दिखा सूरजकुंड मेले में खास हुनर

मेले में नाबार्ड के माध्यम से 50 स्टॉल लगी हैं और हर स्टॉल पर आपको स्वंय सहायता समूह और लघु उद्योगों के कलाकारों द्वारा अपने हाथों से बनाए उत्पाद देखे जा सकते हैं. नीम की लकड़ी से घर सजावट की कलाकृतियां बनाने वाले आंध्र प्रदेश के हस्तशिल्पकार ने बताया कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी लकड़ी से घर सजावट का सामान बनाने का काम कर रहा है.

लड़की से बना है सजावट का सामान
उन्होंने कहा कि ये पहला मौका है जब वो इतने बड़े मेले में अपनी कलाकृतियों को लेकर आए हैं और ये सब नाबार्ड की बदौलत है. मेले की 617 नम्बर स्टॉल पर नीम की लकड़ी से बनी घर सजावट की 500 रुपए से लेकर 2 लाख रुपये तक की कलाकृतियां उपलब्ध है. यहां आकर खुद ही कलाकारों की मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

नाबार्ड की स्टॉलों में ही हरियाणा के करनाल से आई राजवंती बताती हैं कि वो इससे पहले भी दो बार इस मेले में आ चुकी हैं और लखनऊ, अमृतसर, चंडीगढ़, पटना व लुधियाना में भी स्टॉल लगा चुकी हैं. श्रीराम स्वयं सहायता समूह से जुड़ी राजवंती ने बताया कि नाबार्ड से जुड़ाव के बाद उनके उत्पाद बेचने और प्रदर्शन में बहुत ज्यादा सहायता मिली है.


स्वंय सहायता समूह ने बनाए परिंदों के रेडी टू मूव घोसले
'नाबार्ड ने की काफी सहायता'
बारह महिलाओं वाले स्वयं सहायता समूह द्वारा टेराकोटा से आर्कषक एवं सुंदर वस्तु बनाई जा रही हैं. राजवंती ने बताया कि उनके स्वयं सहायता समूह में करीब 15 महिलाएं शामिल हैं. करीब 8 साल पहले नाबार्ड से जुड़ने के बाद से उन सबकी जिंदगी ही बदल गई और पहले जहां उनका काम केवल मिट्टी के बर्तन बनाने तक सिमित था, अब उनका समूह कई प्रकार के उत्पाद बना रहा है और इस काम से उन्हें काफी मुनाफा भी हो जाता है.

मेले में 628 नम्बर की स्टॉल राजवंती की है और इस स्टॉल की खास बात ये है कि यहां पक्षियों के लिए घोसले भी मिल रहे हैं. आने वाला समय गर्मी का है, इसलिए इनके घोसलों की काफी डिमांड है. बेजुबान परिंदों को कंक्रीट के जंगलों में बने बनाए घोसले मिलना बड़ी राहत है. इन घोसलों को काफी कम रेट पर खरीदा जा सकता है. इस स्टाल पर 20 रुपए से लेकर 2 हजार रुपए तक की वस्तुएं उपलब्ध हैं.

सिर चढ़ कर बोल रही बांस पर कारीगरी
मेले की 609 नंबर स्टॉल पर पश्चिम बंगाल के मालदा से आए मानवेन्द्र नाथ की कारीगरी भी कुछ हटके है. वो बांस से बनी वस्तुओं को लेकर मेले में पहुंचे हैं और बताते हैं कि 1998 से वो इस काम में लगे हैं. उनके पास 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक की घर सजावट की चीजें उपलब्ध हैं. नाबार्ड से जुड़ने के बाद उन्हें काफी सहायता हुई है और इस मेले में भी वो नाबार्ड के माध्यम से ही आए हैं.

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