दिल्ली

delhi

ETV Bharat / city

गृहणी भी न्यूनतम वेतन पाने योग्य, परिवार को 27 लाख का मुआवजा - गृहणी भी न्यूनतम वेतन पाने योग्य

14 सितंबर 2018 की सुबह गाजियाबाद स्थित डासना के पास एक तेज रफ्तार बस की चपेट में आने से आनंदी नामक महिला की मौत हो गई थी. महिला अपने पति के साथ बेटी की ससुराल से लौट रही थी. बस चालक की तरफ से यह तर्क दिया गया कि बाइक पर महिला का पति ट्रिपल राइडिंग कर रहा था. वह लापरवाही से बाइक चला रहा था, जिसके चलते महिला गिरी और बस के पिछले टायर की चपेट में आ गई.

house-wife-died-in-accident-court-ordered-27-lakh-rupees-compensation
house-wife-died-in-accident-court-ordered-27-lakh-rupees-compensation

By

Published : May 28, 2022, 11:02 PM IST

नई दिल्ली :सड़क हादसे में जान गंवाने वाली एक घरेलू महिला के परिवार को अदालत ने 27 लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं. एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज एवं एमएसीटी (उत्तर पश्चिम जिला) सिद्धार्थ माथुर की अदालत ने गृहिणी के काम को भी न्यूनतम वेतन योग्य माना है. इसके साथ ही अदालत ने महिला की विवाहित बेटी को भी मुआवजा राशि से बेटे के बराबर हिस्सा देने के आदेश दिए हैं. अदालत ने माना है कि मां पर बेटे के समान ही विवाहित बेटी का भी अधिकार है.


जानकारी के अनुसार, 14 सितंबर 2018 की सुबह गाजियाबाद स्थित डासना के पास एक तेज रफ्तार बस की चपेट में आने से आनंदी नामक महिला की मौत हो गई थी. महिला अपने पति के साथ बेटी की ससुराल से लौट रही थी. बस चालक की तरफ से यह तर्क दिया गया कि बाइक पर महिला का पति ट्रिपल राइडिंग कर रहा था. वह लापरवाही से बाइक चला रहा था, जिसके चलते महिला गिरी और बस के पिछले टायर की चपेट में आ गई. वहीं महिला के पति ने अदालत में बताया कि वह सड़क से तीन कदम पीछे खड़े थे. अदालत ने बस चालक एवं कंडक्टर के बयान में खामियां पाई और महिला के पति द्वारा दिये गए बयान को सत्य माना.

बस के पिछले टायर की चपेट में आ गई.
इस घटना में हुई महिला की मौत को लेकर रोहिणी स्थित एमएसीटी कोर्ट में मुआवजे के लिए याचिका दायर की गई थी. अदालत में बताया गया कि महिला के परिवार में पति और चार बेटे साथ रहते थे. वहीं उसकी बेटी की शादी हो चुकी है. परिवार ने अदालत को बताया कि महिला सब्जी बेचने का काम करती थी. इससे वह 10 से 15 हजार रुपये तक कमा लेती थी, लेकिन महिला की आय का कोई साक्ष्य वह पेश नहीं कर सके. इसलिए महिला को अदालत ने गृहणी माना. दिल्ली हाईकोर्ट ने 2012 के एक केस में गृहणी के लिए सड़क हादसे में मुहावजा देने के लिए उसकी शिक्षा को आधार बनाया था. मरने वाली महिला ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी. इसके चलते सरकार द्वारा तय न्यूनतम आमदनी 15,296 को गृहणी की कमाई माना गया. उनकी 14 वर्ष की कमाई के अलावा अन्य खर्चों का मुआवजा भी अदालत ने जोड़ा है. एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज एवं एमएसीटी (उत्तर पश्चिम जिला) सिद्धार्थ माथुर की अदालत ने यह रकम जोड़कर 27,06,120 रुपये मृतका के परिवार को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं. इस राशि पर 6 फीसदी का ब्याज भी आरोपियों को देना होगा. 30 दिन के भीतर रकम नहीं चुकाने पर उन्हें 9 फीसदी का ब्याज देरी वाले समय के लिए देना होगा.
एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज एवं एमएसीटी (उत्तर पश्चिम जिला) सिद्धार्थ माथुर की अदालत ने अपने आदेश में मृतक महिला की बेटी को भी मुआवजे में हिस्सा देने के आदेश दिए हैं. अदालत ने माना है कि बेटे की तरह बेटी भी मां पर निर्भर होती है. वह आर्थिक रूप से न सही लेकिन मानसिक, शारीरिक और भावुक रूप से मां पर निर्भर होती है. बेटी के लिए मां ब्रह्मांड का केंद्र होती है. इस घटना में महिला की विवाहित बेटी ने भी अपनी मां को खोया है. यह कहना अन्याय होगा कि एक 26 वर्षीय बेटी अपनी मां पर इसलिए निर्भर नहीं होती क्योंकि उसकी शादी हो गई है. इसलिए महिला की विवाहित बेटी का भी उस पर उतना अधिकार है जितना उसके बेटों का है. अधिवक्ता एलएन राव ने बताया कि एमएसीटी अदालत का यह आदेश बेहद ही महत्वपूर्ण है. इसमें एक तरफ जहां गृहणी महिला को न्यूनतम वेतन का हकदार बताया गया है तो वहीं दूसरी तरफ बेटी को भी मुआवजे में बेटे के बराबर हक दिया गया है. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट भी सिविल मामले में विवाहित बेटी को माता-पिता की प्रॉपर्टी पर बराबर का हकदार बता चुकी है. एलएन राव ने बताया कि इस मामले में पीड़ित परिवार उत्तर-पश्चिम दिल्ली का रहने वाला है. इस वजह से गाजियाबाद में हादसा होने के बावजूद दिल्ली में मुआवजे के लिये याचिका डाली गई थी. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हादसे में मरने वाले 40 से 45 वर्षीय शख्स के लिए मुआवजे में 14 साल के वेतन को फिक्स किया है. इस वजह से 43 वर्षीय मृतक महिला के लिए 14 वर्ष का वेतन मुआवजे में जोड़ा गया है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details