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US Default : 1 जून की है डेडलाइन, वरना डिफॉल्टर साबित होगा सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका

सुपरपावर कहे जाने वाले देश अमेरिका पर 31,400 अरब डॉलर का कर्ज है. जिसे चुकाने की समयावधि वह पार कर चुका है. वह डिफॉल्टर होने की कगार पर पहुंच गया है. लेकिन वह डिफॉल्ट देश होने से बच सकता है, अगर 1 जून से पहले कर्ज लेने की सीमा को बढ़ा दे तो. लेकिन बाइडेन सरकार ऐसा कर नहीं पा रही है, आखिर क्यों, जाननें के लिए पढ़ें पूरी खबर....

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अमेरिका डिफॉल्टर होने की कगार पर

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Published : May 17, 2023, 10:58 AM IST

वाशिंगटन : दुनिया की सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में से एक अमेरिका डिफॉल्ट होने की कगार पर है. उसका राजकोषीय भंडार खत्म होने की कगार पर है. इस बात की चेतावनी आईएमएफ के बाद खुद अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन दे रही है. उन्होंने कहा कि देश अप्रत्याशित आर्थिक और फाइनेंशियल संकट के मुहाने पर खड़ा है. इस संकट के चलते सरकारी कामकाज ठप्प पड़ सकता है. एयर ट्रैफिक कंट्रोल से लेकर लेकर कानून व्यवस्था, सीमा सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और टेलीकम्यूनिकेशन सिस्टम्स तक में समस्या पैदा हो सकती है. कारोबार ठप हो सकता है, लोगों को वेतन के संकट का सामना करना पड़ सकता है.

अमेरिका क्यों डिफॉल्ट होने की कगार पर पहुंचा
अमेरिका का राजकोषीय भंडार खत्म होने वाला है. जिसका मतलब है कि अमेरिकी सरकार के पास अपने बिलों का भुगतान करने और अपने कर्ज चुकाने के लिए खजाने में पैसे नहीं बचे हैं. यूएस ट्रेजरी के खत्म होने की चेतावनी पिछले सप्ताह अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने दी थी. उन्होंने बाइडेन सरकार से कहा कि वह कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाए, ताकि सरकार अगले महीने बिल का पेमेंट कर सके. आपको बता दें कि अमेरिका पर फिलहाल 31,400 अरब डॉलर का कर्ज है. अमेरिकी सरकार उधार लेने की तय सीमा को पार कर चुकी है. अब उसके पास 1 जून तक का समय है. अगर सरकार इस समय तक कर्ज भुगतान नहीं करती है, तो वह डिफॉल्ट हो सकती है.

बाइडन क्यों नहीं निकल पा रहे इस मुसीबत से

बाइडन क्यों नहीं निकल पा रहे इस मुसीबतसे
अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने बाइडन सरकार को सुझाव दिया कि भुगतान जारी रखने के लिए सरकार को कर्ज लिमिट बढ़ानी होगी. लेकिन इस मुद्दे को लेकर अमेरिका की दो प्रमुख पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक में मतभेद है. दोनों पार्टियों के विचार अलग-अलग हैं. राष्ट्रपति Jo Biden की डेमोक्रेटिक पार्टी कर्ज सीमा बढ़ाने के पक्ष में है. लेकिन ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी की मांग है कि सरकार बजट में महत्वपूर्ण कटौती करें, जिसके लिए सरकार तैयार नहीं है और मामला अमेरिका के रिप्रजेंटेटिव्स हाउस (अपर हाउस) में लटका हुआ है. गौरतलब है कि अपर हाउस में ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के पास बहुमत हैं. जो 1 दशक में 4.8 ट्रिलियन डॉलर खर्च में कटौती की मांग कर रहे हैं.

अमेरिका के डिफाल्ट होने पर वैश्विक असर
अगर अमेरिका डिफॉल्ट करता है तो इसका असर न सिर्फ अमेरिका पर बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों पर भी पड़ेगा. अमेरिका के डिफॉल्ट करने से देश में मंदी आ सकती है. कारोबार ठप्प पड़ सकता है, जिससे लोगों की अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ सकता है, नौकरी नहीं तो लोगों को वेतन के संकट का सामना करना पड़ सकता है. इसे हम अमेरिका में आई बैंकिंग संकट और वैश्विक स्तर पर पड़े उसके प्रभाव से समझ सकते हैं. क्योंकि आज के समय में कोई देश स्वतंत्र व्यापार नहीं कर सकता. कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक- दूसरे से जुड़ी हुई है. अमेरिका के डिफाल्ट होने पर भारत पर इसका व्यापक असर हो सकता है क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. IMF की कम्यूनिकेशन डायरेक्टर जूली कोजैक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "अगर अमेरिका डिफॉल्ट होता है तो इससे केवल अमेरिका को ही नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे."

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