हैदराबाद: कोरोना वायरस की मार के चलते पूरी दुनिया के कारोबार पर असर पड़ा है. कच्चे तेल की कीमतें कम हो रही हैं. लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. बढ़ती कीमतों के बीच पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है.
दरअसल, जून 2017 में सरकार ने दाम को लेकर अपना नियंत्रण हटा लिया था और कहा था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतार-चढ़ाव के हिसाब से रोजाना कीमतें तय होंगी. दरअसल, कच्चे तेल की कीमतें गिरने की वजह से डीजल-पेट्रोल के दाम भी कम होने थे. लेकिन सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर उन्हें स्थिर रखा है.
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जुलाई में इंडियन बास्केट कच्चे तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है. लेकिन भारत में डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ती जा रहीं हैं. इसी का असर है कि पिछले महीने डीजल की कीमत में 11.23 रुपए/लीटर और पेट्रोल के दाम में 9.17 रुपए/लीटर की बढोतरी हुई है.
भारत में पेट्रोल-डीजल दोनों की कीमत रोजाना बाजार के हिसाब से तय होती है. विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें क्या हैं, इस आधार पर रोज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है. इन्हीं मानकों के आधार पर तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल के रेट रोज तय करती है.
भारत में 80 प्रतिशत कच्चे तेल का आयात होता है. कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल में होती है. एक बैरल में 159 लीटर क्रूड ऑयल होता है. भारत में मुख्य तौर पर डीजल-पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी, वैट और डीलर कमीशन होते हैं.
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जब भी विश्व में कच्चे तेल की कीमत में कमी होती है तो सरकार इस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल भले ही सस्ता हो जाए, लेकिन आपको पेट्रोल की कीमत ज्यादा ही चुकानी पड़ती है क्योंकि, सरकार अपना टैक्स बढ़ा देती है, ताकि कंपनियों को तय मानक से ज्यादा फायदा न हो सके. तो आइए जानते हैं डीजल-पेट्रोल पर कौन-कौन से टैक्स लगते हैं.
एक्साइज ड्यूटी (उत्पाद कर)
एक्साइज ड्यूटी एक तरह का टैक्स है, जो भारत के अंदर कोई प्रोडक्ट प्रोड्यूस करने या उसे बेचने पर लगाया जाता है. सरकार उस पैसे से रेवेन्यू जनरेट करती है और फिर उससे समाज कल्याण के काम में इस्तेमाल करती है.
ड्यूटी
ड्यूटी का मतलब किसी सामान के बॉर्डर पार करने पर लगने वाले टैक्स से होता है. जैसे आयात होने वाले सामानों पर इम्पोर्ट ड्यूटी या आयात शुल्क होता है. साथ ही किसी सामान के बनकर तैयार होने पर उस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी भी इसमें शामिल है.
दरअसल, लोगों के पास जो डीजल और पेट्रोल आता है उसे कई प्रक्रियाओं से गुजरकर तैयार किया जाता है, जिसमें लागत भी आती है. फिर इसमें डीलर का कमीशन, केंद्र और राज्य सरकारों का टैक्स और परिवहन लागत को जोड़ा जाता है, जिसके कारण इसकी कीमत लगभग दोगुनी भी हो जाती है.
ऐसे तय होती हैं कीमतें
केंद्र सरकार के पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ (Petroleum Planning and Analysis Cell) के मुताबिक, सरकार रिफाइन होने के बाद सभी कीमतों को मिलाकर 1 लीटर तेल की बेस प्राइस 18 रुपए रखती है. अब इसमें केंद्र सरकार द्वारा 33 रुपए की एक्साइज ड्यूटी लगाई गई. राज्य सरकार द्वारा 19 रुपए का वैट भी जोड़ दिया गया. फिर इसमें 4 रुपए डीलर का कमीशन जोड़ा गया. इन सभी टैक्स को मिलाने के बाद उपभोक्ताओं से एक लीटर पेट्रोल के लिए 74 रुपए वसूले जाते हैं. इसी तरह राज्य सरकार डीजल पर 12 रुपए वैट वसूलती है.
कच्चे तेल की कीमत क्यों कम हो रही
देश-दुनिया में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दुनियाभर में 'ब्लैक गोल्ड' के नाम से मशहूर कच्चा तेल 1 अप्रैल 2020 को (25 डॉलर/बैरल) पानी से भी सस्ता हो गया था. दरअसल, रूस तेल प्रोडक्शन घटाने के पक्ष में नहीं था, जबकि ओपेक देश (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) प्रोडक्शन घटाने की बात कह रहे थे. यही असहमति प्राइस वॉर का कारण बन गई. जिसे लेकर सऊदी अरब ने रूस के साथ क्रूड को लेकर प्राइस वॉर छेड़ दिया है, जिसकी वजह से कीमतें घट रही हैं.
ओपेक क्या है