नई दिल्ली: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने पांच दशक पुराने नीतिगत नुस्खे पर बहस छेड़ दी जब उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक से भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए 'हेलीकॉप्टर मनी' की नीति अपनाने को कहा.
'हेलिकॉप्टर मनी' शब्द का प्रयोग पहली बार 1968 में अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन द्वारा किया गया था. जिन्होंने इसे एक ऐसी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए अंतिम उपाय के रूप में सुझाया था जो मंदी की चपेट में है और ऐसी स्थिति में जहां कीमतें लगातार गिर रही हैं, कम मांग, कम उत्पादन, कम मजदूरी और परिणामस्वरूप कम कीमतों का एक चक्र बना हुआ है.
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हेलीकाप्टर मनी क्या है? क्या आरबीआई बहुत पैसों को प्रिंट कर सकता है और उन्हें आम लोगों के बीच बांट सकता है? सिस्टम में पैसा डालते समय आरबीआई कौन से सिद्धांत अपनाता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी से बात की.
हेलीकॉप्टर मनी क्या है?
हेलिकॉप्टर मनी का उपयोग आमतौर पर सामाजिक कल्याण उपायों और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च को कहा जाता है. जब इसे कई क्षेत्रों में व्यापक तरीके से वितरित किया जाता है, तो इसे हेलीकॉप्टर मनी कहा जाता है.
अमेरिका के पूर्व फेड चेयरमैन बेन बर्नानके को भी इस नीति का प्रस्तावक माना जाता है. उन्होंने 2002 में अर्थशास्त्रियों के एक समूह को नीति का संदर्भ देने के लिए हेलीकॉप्टर बेन का उपनाम अर्जित किया जब वह यूएस फेड के गवर्नर थे. बर्नानके ने सुझाव दिया था कि जापान में वित्त पोषण कर कटौती अनिवार्य रूप से मिल्टन फ्रीडमैन के प्रसिद्ध 'हेलिकॉप्टर ड्रॉप' की मौद्रिक नीति के जैसे थी.
2014 से 2017 के बीच रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे राम सुब्रमण्यम गांधी बताते हैं कि जब लोग हेलिकॉप्टर मनी शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में भारी मात्रा में पैसा डालना.
आमतौर पर इस शब्द का उपयोग सेंट्रल बैंक के लिए नहीं किया जाता है. एक केंद्रीय बैंक के लिए क्वांटिटेटिव ईजिंग (क्यूई) मानक शब्दावली है. इसका मतलब है कि सेंट्रल बैंक को अर्थव्यवस्था में अधिक पैसा लगाने के लिए परिसंपत्तियों, बांडों और सरकारी प्रतिभूतियों को बड़े पैमाने पर खरीदना चाहिए.
हालांकि, उन्होंने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक के विपरीत, पश्चिमी देशों के कई केंद्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों खरीदने के साथ-साथ कॉर्पोरेट बॉन्ड और कुछ मामलों में इक्विटी में भी निवेश करते हैं.
किस तरह के आर्थिक पैकेज की तलाश में है तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने देश के सकल घरेलू उत्पाद के 5 फीसदी के बराबर राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है. जीडीपी के पांच प्रतिशत के बराबर के पैकेज का मतलब है 10 लाख करोड़ से अधिक का प्रोत्साहन पैकेज है.
कुछ अन्य नेताओं ने भी जीडीपी के 10-12 प्रतिशत के पैकेज के लिए कहा है. जिसका मतलब पैकेज का कुल आकार 20-24 लाख करोड़ रुपये के आसपास है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने 1.7 लाख करोड़ रुपये के पीएम गरीब कल्याण पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि के तहत कई मौजूदा योजनाएं भी शामिल थीं.
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों ने विशेष रूप से किसानों के लिए अधिक समर्थन और नरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि करने की मांग की है.
रिजर्व बैंक कैसे बनाता है पैसा ?
आर गांधी बताते हैं कि सेंट्रल बैंक सिस्टम में पैसा प्रदान करता है. लेकिन पैसा बनाने का मतलब केवल भौतिक मुद्रा को छापना नहीं है. यह पूरे मूल्य का एक छोटा सा हिस्सा है.
जब भी रिजर्व बैंक सिस्टम में पैसा बनाता है तो उस पैसे का केवल एक-छठा हिस्सा करेंसी नोटों के रूप में छापा जाता है और लगभग पांच-छठा हिस्सा खातों की किताबों में प्रविष्टियों के रूप में होता है.
कैसे मुद्रित और परिचालित होती है मुद्रा?
आरबीआई या कोई अन्य सेंट्रल बैंक बहुत अधिक मुद्रा छापते हैं और वे इसे स्टॉक में रखते हैं और जब भी अर्थव्यवस्था भौतिक नकदी चाहता है तो बैंक नकद प्रदान करता है.
फिलहाल भारतीय प्रणाली में कितने पैसे हैं?
मार्च 2020 में सिस्टम में उपलब्ध कुल मुद्रा 24.39 लाख करोड़ रुपये आंकी गई थी, जो वित्त वर्ष 2019-20 के जीडीपी (204 लाख करोड़ रुपये) के 12 प्रतिशत से कम थी.
केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 में 10 प्रतिशत नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था. इससे सकल घरेलू उत्पाद का कुल आकार 225 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
आरबीआई के पूर्व अधिकारियों के अनुसार बैंक डिजिटल भुगतान, नकदी का उपयोग, सरकार की नीतियों और कई अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए नए नोटों की छपाई का काम करता है.
हालांकि, पिछले तीन वर्षों में कैश-टू-जीडीपी अनुपात में लगातार वृद्धि देखी गई है. नवंबर 2016 में किए गए नोटबंदी के कारण मार्च 2017 में यह घटकर 8.69 प्रतिशत रह गया था.
हालांकि, मार्च 2018 में कैश-टू-जीडीपी अनुपात 10.7 प्रतिशत और मार्च 2019 में 11.23 प्रतिशत हो गया, जो अंत में मार्च 2020 के अंत में 12.2 प्रतिशत पर पहुंच गया.
क्या आरबीआई अपने हिसाब से बहुत सारे पैसे छाप सकता है?
कुछ लोग यह मान सकते हैं कि केंद्र सरकार या आरबीआई बहुत अधिक मुद्रा छाप सकते हैं और और सिस्टम में मुद्रा आपूर्ति बढ़ा सकते हैं. हालांकि, वास्तविकता इससे थोड़ी अलग है और आमतौर पर ऐसा नहीं होता है, क्योंकि इसके कई दुष्प्रभाव हैं.