मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने सोमवार को कहा कि केंद्रीय बैंक को उन नियमों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, जो बड़े कॉरपेारेट घरानों को बैंकों का प्रवर्तक बनने से रोकते हैं.
उन्होंने कहा कि अवश्यक सुरक्षा उपायों के साथ बैंकों में किसी एक निकाय को हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से ऊंचा करने की मंजूरी दी जानी चाहिये.
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताएं व आकांक्षाएं इस प्रकार की है जिसको देखते हुए बैंकिंग क्षेत्र में बड़ी पूंजी के स्रोतों को प्रवेश देने पर विचार करने की जरूरत है. इससे बड़ी परियोजनाओं की मदद में आसानी हो सकती है.
उन्होंने संपूर्ण सेवा बैंकिंग माडल पर फिर ध्यान देने की भी वकालत की. गांधी रिजर्व बैंक के अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण बैंकिंग विनियमन और पर्यवेक्षण कार्यों की जिम्मेदारी संभाला करते थे.
उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक ने बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन की निरंतर खुली व्यवस्था चार साल से चल रही है, लेकिन इसके बाद भी कोई गंभीर आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है.
गांधी की यह टिप्पणी ऐसे समय आयी है, जब रिजर्व बैंक ने निजी बैंक के स्वामित्व तथा नियंत्रण को लेकर इस महीने की शुरुआत में एक आंतरिक कार्य समूह का गठन किया है. यह समूह प्रवर्तकों की हिस्सेदारी, हिस्सेदारी कम करने की आवश्यकताएं, नियंत्रण और मतदान के अधिकार जैसे पहलुओं पर विचार करेगा.
गांधी ने भुगतान कंपनी ईपीएस द्वारा आयोजिक एक सेमिनार में कहा, "मेरे विचार में, स्पष्ट रूप से, एक प्रवर्तक या रणनीतिक निवेशक के लिये 26 प्रतिशत जैसी गंभीर हिस्सेदारी निश्चित रूप से बैंक और बैंकिंग उद्योग के दीर्घकालिक हित के लिये अच्छी होगी."
कोटक महिंद्रा बैंक को दी गयी छूट का हवाला देते हुए, गांधी ने कहा कि रिजर्व बैंक ऐसे कदमों पर गौर कर सकता है. कोटक महिंद्रा बैंक के मामले में प्रवर्तक समूह को लंबी अवधि में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने की अनुमति दी गयी है, लेकिन उसके मतदान के अधिकार 15 प्रतिशत तक सीमित होंगे.