नई दिल्ली: श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की मंजूरी के बिना कर्मचारियों की छंटनी या बंदी की अनुमति होनी चाहिए. औद्योगिक संबंध संहिता पर त्रिपक्षीय विचार-विमर्श में यह प्रस्ताव मतभेद का विषय रहा है. विशेषरूप से ट्रेड यूनियनों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है.
कोरोना वायरस की वजह से लागू राष्ट्रव्यापी बंद के बीच इस समिति ने बृहस्पतिवार को औद्योगिक संबंध संहिता, 2019 पर अपना प्रतिवेदन लोकसभाध्यक्ष ओम बिड़ला को आनलाइन सौंपा. समिति ने सिफारिश की है कि ले-आफ, छंटनी या कंपनी बंद करने से जुडे विशेष प्रावधन उन उद्योग प्रतिष्ठानों पर लागू होने होने चाहिए जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 300 है. अभी ये प्रावधान 100 कर्मचारियों वाली कंपनियों पर लागू होते है. समिति ने इसे बढ़ाकर 300 करने का सुझाव दिया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "समिति के संज्ञान में आया है कि कुछ राज्य सरकारों मसलन राजस्थान में इस सीमा को बढ़ाकर 300 किया गया है. मंत्रालय का कहना है कि इससे रोजगार बढ़ा है और छंटनियां कम हुई हैं."
समिति ने सिफारिश की है कि कर्मचारियों की इस सीमा को औद्योगिक (श्रम) संबंध संहिता में ही बढ़ाया जाए. समिति ने किसी ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के आवेदन की प्रक्रिया को पूरा करने और उस पर फैसला करने के लिए 45 दिन की समयसीमा का सुझाव दिया है.
समिति का कहना है कि जांच का नतीजा बेशक कुछ भी आए, इसकी समययसीमा 45 दिन की होनी चाहिए. समिति ने हड़तालों पर उदार रुख अपनाते हुए इसे औद्योगिक कार्रवाई की आजादी बताया है. समिति को अंशधारकों से इस तरह के सुझाव मिले थे कि हड़ताल के लिए नोटिस की अवधि को 14 से बढाकर 21 दिन किया जाए. बीजू जनता दल सांसद भर्तुहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि उद्योगों पर कर्मचारियों को लॉकडाउन की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता.