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ब्याज दर कम होने से बढ़ेगी मांग, समर्थन के और उपायों की जरूरत: उद्योग जगत - भारतीय रिजर्व बैंक

उद्योग जगत ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के बीच आर्थिक वृद्धि को सहारा देने के लिये रिजर्व बैंक और सरकार दोनों से निरंतर आधार पर अधिक समर्थन की आवश्यकता होगी. रिजर्व बैंक ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुये शुक्रवार को रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती की.

ब्याज दर कम होने से बढ़ेगी मांग, समर्थन के और उपायों की जरूरत: उद्योग जगत
ब्याज दर कम होने से बढ़ेगी मांग, समर्थन के और उपायों की जरूरत: उद्योग जगत

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Published : May 22, 2020, 7:34 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय उद्योग जगत ने रिजर्व बैंक के रेपो दर घटाने के कदम की सराहना करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह न सिर्फ छोटे व्यवसायों को बहुत जरूरी राहत प्रदान करेगा बल्कि यह मांग को भी पुनर्जीवित करेगा.

हालांकि, उद्योग जगत ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के बीच आर्थिक वृद्धि को सहारा देने के लिये रिजर्व बैंक और सरकार दोनों से निरंतर आधार पर अधिक समर्थन की आवश्यकता होगी. रिजर्व बैंक ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुये शुक्रवार को रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती की.

केंद्रीय बैंक ने कर्ज की किस्तें चुकाने में दी गयी राहत अवधि को तीन महीने के लिये बढ़ाकर 31 अगस्त 2020 तक कर दिया. इसके साथ ही आरबीआई ने बैंकों के लिये कॉरपोरेट को कर्ज देने की सीमा नेटवर्थ के मौजूदा 25 प्रतिशत के स्तर से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दी है. रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती की गयी है और यह दर अब चार प्रतिशत पर आ गयी है, जो कि 2000 के बाद का इसका निचला स्तर है.

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने शुक्रवार को यहां यह टिप्पणी की. कुमार ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संवाददाताओं से कहा, "सरकार और आरबीआई का पूरा प्रयास अर्थव्यवस्था को वृद्धि की पटरी पर वापस लाना है. इसके साथ ही सरकार और रिजर्व बैंक का प्रयास उन चुनौतियों की पहचान करने का भी है, जिनके कारण उद्योगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. रेपो दर में कमी, कर्ज की किस्तें चुकाने में राहत अवधि का विस्तार और कॉरपोरेट कर्ज की सीमा में वृद्धि...ये सारे उपाय अर्थव्यवस्था को उबारने की दिशा में मददगार हैं."

भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) ने शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक के नीतिगत दर में कटौती, ऋण किस्त चुकाने पर तीन महीने की और मोहलत समेत अन्य कदमों की घोषणा को निर्यात क्षेत्र के लिए राहत पहुंचाने वाला बताया. उसने कहा कि इससे निर्यात क्षेत्र को कोविड-19 संकट से पैदा हुई बाधाओं से पार पाने में मदद मिलेगी.

निर्यातकों के लिए विशेष प्रावधान करते हुए निर्यात से पहले और बाद में दिए जाने वाले ऋण की अवधि को 12 महीने से बढ़ाकर 15 महीने करने की घोषणा भी की.

फियो के अध्यक्ष शरद कुमार सर्राफ ने कहा कि इन कदमों से निर्यातकों के पास अधिक नकदी उपलब्ध होगी. इससे उन्हें इस परीक्षा की घड़ी में अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने में मदद मिलेगी.

उद्योग संगठन सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि रिजर्व बैंक को कर्ज की किस्तें चुकाने से राहत का लाभ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को देने पर भी विचार करना चाहिये, क्योंकि एनबीएफसी क्षेत्र गहरे संकट से जूझ रहा है.

उन्होंने कहा, "आरबीआई जिस एक अन्य कदम पर विचार कर सकता है, वह संकट से जूझ रहे व्यवसायों को राहत देने के लिये ऋण का एक बार का पुनर्गठन है. कॉरपोरेट कर्ज की सीमा को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जाना एक अन्य स्वागतयोग्य कदम है. इससे बैंकों को निजी क्षेत्र की कर्ज मांग पूरा करने में मदद मिलने का अनुमान है."

एसोचैम के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने कहा, "लॉकडाउन के बाद से आरबीआई की तरफ से लगातार किये जा रहे उपायों से निजी उपभोग बढ़ाने और कोविड-19 महामारी की चपेट में आये सभी क्षेत्रों तक तरलता पहुंचाने में मदद मिलेगी. ये उपाय लॉकडाउन द्वारा प्रभावित मांग को पुनर्जीवित करने में मदद करेंगे."

उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के प्रयासों से वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी.

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पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष डॉ डी के अग्रवाल ने वृद्धि दर नकारात्मक रहने की आशंका पर चिंता व्यक्त करते हुए अर्थव्यवस्था को उबारने में मदद करने वाले उपायों के लिये रिजर्व बैंक की सराहना की.

उन्होंने कहा, "हमें अभी भी इस बात की उम्मीद है कि सरकार और आरबीआई द्वारा किये गये विभिन्न उपायों से भारत को अपनी वृद्धि दर शून्य से ऊपर बनाये रखने में मदद मिलेगी. रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती से तरलता की स्थिति को और आसान होगी."

फिक्की की अध्यक्ष संगीता रेड्डी ने कहा, "आर्थिक वृद्धि का परिदृश्य बहुत अनिश्चित है और आरबीआई खुद स्वीकार कर रहा है कि चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर नकारात्मक हो सकती है. ऐसे में फिक्की को लगता है कि आरबीआई और सरकार दोनों से निरंतर आधार पर अधिक समर्थन की आवश्यकता होगी."

(पीटीआई-भाषा)

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