हैदराबाद:जहां एक तरफ देश बेसब्री से मोदी सरकार की दूसरी पारी के पहले बजट का इंतजार कर रहा है, वहीं रोजगार के मोर्चे पर सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, जून 2019 में भारत की बेरोजगारी दर 8.1 प्रतिशत है. अध्ययन के अनुसार, पिछले दो वर्षों में लगभग 47 लाख नौकरियां खो गईं.
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि देश में 68 प्रतिशत बेरोजगार 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग के युवा हैं, जो भारत के 'जनसांख्यिकीय लाभांश' को खतरे में डाल रहे हैं.
यह संभावित कारणों की पहचान करने और देश में नौकरियों के संकट से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तलाशने का समय है.
विकास में गिरावट और असफल क्षेत्र
भारत हाल ही में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा है. हालांकि, नौकरियों के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में आर्थिक विकास के साथ पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं हो रही थीं. यह उच्च विकास लेकिन कम नौकरियों वाली स्थिति थी.
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2018-19 की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास में गिरावट और 2019-20 के शुरुआती तीन महीनों में 5.8 प्रतिशत की मंदी के साथ नौकरी का संकट, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे कम दर्ज की गई विकास दर है.
दूसरी ओर, कृषि क्षेत्र में उत्पादकता लगातार गिर रही है और कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में 2018-19 में केवल 2.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जबकि 2017-18 के दौरान यह 5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी.
यहां तक कि विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन 2011-16 में 58.9 मिलियन से 2015-16 में 48.3 मिलियन से निरपेक्ष रूप से गिरने वाली विनिर्माण नौकरियों के साथ उत्साहजनक नहीं रहा है. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के एक निराशाजनक प्रदर्शन ने नौकरी के संकट को और बढ़ा दिया.