नई दिल्ली: सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. (बीपीसीएल) की मोजाम्बिक के एक गैस ब्लाक में निवेश करने की योजना पर गौर कर रही है लेकिन कंपनी को इस पर व्यय की मंजूरी नहीं मिली है. सूत्रों ने यह जानकारी दी.
बीपीसीएल की अनुषंगी इकाई भारत पेट्रो रिर्सोसेज लि. (बीपीआरएल) ने अगस्त 2008 में मोजाम्बीक के रोवुमा ब्लाक के अपतटीय एरिया-1 की दस प्रतिशत हिस्सेदारी अमेरिकी ऊर्जा कंपनी एनाडार्को पेट्रोलियम कॉरपोरेशन से 7.5 करोड़ डॉलर में खरीदी थी.
निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनी वीडियोकॉन ने भी अपनी एक अनुषंगी के जरिये उसकी ब्लाक में उसी माह 10 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी. मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा कि एनाडार्को ने शुरू में बीपीसीएल को एरिया-1 में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी की पेशकश की थी लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ने केवल आधी हिस्सेदारी खरीदी और शेष हिस्सेदारी वीडियोकॉन ने खरीदी.
वीडियोकॉन ने 2013 में अपने शेयर 2.475 अरब डॉलर में ओएनजीसी विदेश लि. को बेच दिए. सूत्रों के अनुसार सरकार उन कारणों पर गौर कर रही है कि आखिर बीपीसीएल ने एनाडार्को की तरफ से पेश पूरी 20 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण क्यों नहीं किया.
सरकार इस बात को भी देख रही है कि अगर कंपनी खोज जोखिम को कम करना चाहती थी तो उसने ओएनजीसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य कंपनी को क्यों नहीं शामिल किया.
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इन सब कारणों से सरकार ने एरिया-1 में खोजे गये गैस फील्ड के विकास के लिये औपचारिक रूप से बीपीसीएल को 2.2 से 2.4 अरब डॉलर के और निवेश को अभी मंजूरी नहीं दी है.
गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में अनौपचारिक मंत्री स्तरीय समिति ने इस साल जून में इस प्रस्ताव की समीक्षा की. उल्लेखनीय है कि भाजपा नीत राजग सरकार 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस की अगुवाई संप्रग सरकार के कार्यकाल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी द्वारा रोवुमा ऑफशोर एरिया-1 में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिये करीब 6 अरब डॉलर के व्यय की आलोचक रही है.
इसका कारण तेल और गैस कीमतों में गिरावट को देखते हुए इतने बड़े निवेश को लेकर सवाल थे. वीडियोकॉन की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने के अलावा ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) की विदेश इकाई ओएनजीसी विदेश लि. ने परियोजना परिचालक अमेरिका की एनाडर्को से 2.64 अरब डॉलर में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था.
बाद में कंपनी ने वीडियोकॉन से ली गई हिस्सेदारी में 4 प्रतिशत ऑयल इंडिया लि. को बेचा. वीडियोकॉन इस परियोजना में अपनी हिस्सेदारी 2012 में थाइलैंड की एक कंपनी पीटीटी एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन और कोव एनर्जी के बीच 8.5 प्रतिशत शेयर के लिए हुए सौदे से थोड़ा ही ज्यादा प्रीमियम पर बेचने को तैयार थी.
थाई कंपनी ने वह अधिग्रहण 1.9 अरब डालर में किया था. सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ओवीएल सौदा भी जांच के घेरे में आया था. कंपनी पर आरोप था कि उसने वीडियोकॉन को कथित तौर पर अधिक भुगतान किया. हालांकि ओवीएल ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया और उसके बाद मामले का क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला.