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भारत को अफ्रीकी बाजार में चावल पर चीन से चुनौती

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के निर्यात संभाग के एक अधिकारी ने बताया, "हमें इस बात की जानकारी मिली है कि चीन आमतौर पर चावल का आयात करता है, लेकिन अब वह भारी मात्रा में चावल निर्यात करने लगा है."

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भारत को अफ्रीकी बाजार में चावल पर चीन से चुनौती

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Published : Jan 4, 2020, 6:11 PM IST

नई दिल्ली: दुनिया में चावल के सबसे बड़े निर्यातक भारत को अब अफ्रीकी बाजार में चीन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. चावल का आयातक देश चीन अब निर्यातक बन गया है और वह सस्ते दर पर चावल का अपना पुराना स्टॉक विदेशी बाजारों में उतार रहा है. अफ्रीकी देश गैर-बासमती चावल के लिए भारत के सबसे बड़े बाजार रहे हैं, लेकिन इन देशों में चीन का चावल पहुंचने से भारत के सामने नया प्रतिस्पर्धी खड़ा हो गया है.

उद्योग भवन के नीति निर्माताओं से लेकर भारत में चावल के बड़े निर्यातकों तक को इस बात की जानकारी पहले से ही है कि चीन भारी मात्रा में अफ्रीकी बाजारों में अपना चावल उतार चुका है.

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के निर्यात संभाग के एक अधिकारी ने बताया, "हमें इस बात की जानकारी मिली है कि चीन आमतौर पर चावल का आयात करता है, लेकिन अब वह भारी मात्रा में चावल निर्यात करने लगा है."

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानी एपीडा के एक अधिकारी ने बताया, "चीन के लोग लसलसा चावल यानी स्टिकी राइस खाना पसंद करते हैं. लेकिन भंडार में रखा हुआ चावल जब पुराना हो जाता है तो उसमें लसलसापन नहीं रह जाता है. यही कारण है कि चीन अपने गोदामों में पड़ा पुराना चावल विदेशों में बेच देता है."

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जानकार सूत्रों के मुताबिक, बीते छह महीनों में चीन के सरकारी गोदामों से तकरीबन 30 लाख टन चावल निर्यात हो चुका है और उसके चावल की खेपें लगातार अफ्रीकी बाजारों में पहुंच रही हैं.

चीन द्वारा वैश्विक बाजार में सस्ती दरों पर चावल उतारने से मिल रही चुनौती का जिक्र करते हुए उत्तराखंड के बड़े चावल निर्यातक लक्ष्य अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, "हम (भारत) करीब 400 डॉलर प्रति टन गैर-बासमती चावल निर्यात करते हैं. लेकिन चीन इससे काफी कम कीमत पर चावल उपलब्ध करा रहा है. ऐसे में भारत के सामने प्रतिस्पर्धा में रहना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि हमारे यहां धान का एमएसपी ज्यादा होने के कारण चावल महंगा है. यही कारण है कि इस साल गैर-बासमती चावल के निर्यात में कमी आई है."

बाजार सूत्रों के अनुसार, चीन 300 डॉलर से 320 डॉलर प्रति टन की दर से चावल (गैर-बासमती) का निर्यात कर रहा है.

लक्ष्य अग्रवाल ने आगे कहा, "भारत और चीन की दरों में काफी अंतर है. अगर ऐसा ही जारी रहा तो हमारा निर्यात प्रभावित होगा."

भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यात है और दूसरे, तीसरे व चौथे नंबर पर क्रमश: थाईलैंड, वियतनाम और पाकिस्तान आते हैं. लेकिन, भारत से गैर-बासमती चावल का निर्यात जिस तरह घटता जा रहा है, उससे शीर्ष निर्यातक के स्थान को बनाए रखना मुश्किल होगी.

चालू वित्त वर्ष 2019-20 में भारत का गैर-बासमती चावल निर्यात शुरुआती आठ महीनों में पिछले साल के मुकाबले 35 फीसदी से ज्यादा घट चुका है. वर्ष 2019 के अप्रैल से नवंबर के दौरान भारत ने 9,028.34 करोड़ रुपये के गैर-बासमती चावल का निर्यात किया. जबकि 2018 में भी इसी अवधि के दौरान 14,059.51 करोड़ रुपये के गैर बासमती चावल का निर्यात हुआ था.

वित मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वैश्विक स्तर पर चावल का निर्यात करने वाली लॉबी का सुझाव है कि सरकार को भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई के गोदामों में पड़ा पुराने चावल का स्टॉक उसी तर्ज पर निकालना चाहिए, जिस तर्ज पर चीन निकाल रहा है. मतलब, देश के चावल निर्यातक चाहते हैं कि सरकार एफसीआई के पास पड़े चावल का आधिक्य भंडार सस्ते दाम पर निर्यात करे.

गौरतलब है कि देश में सरकार हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर बड़े पैमाने पर धान खरीद करती है, जिसका चावल बनाकर भंडारण किया जाता है और इस भंडार के एक बड़े हिस्से का उपयोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के जरिए सस्ती दरों पर खाद्यान्न मुहैया कराने में होता है.

एफसीआई के गोदामों में दिसंबर 2019 के दौरान 212.79 लाख टन चावल और 259.11 लाख टन धान का भंडार उपलब्ध था.

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