नई दिल्ली: दुनिया में चावल के सबसे बड़े निर्यातक भारत को अब अफ्रीकी बाजार में चीन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. चावल का आयातक देश चीन अब निर्यातक बन गया है और वह सस्ते दर पर चावल का अपना पुराना स्टॉक विदेशी बाजारों में उतार रहा है. अफ्रीकी देश गैर-बासमती चावल के लिए भारत के सबसे बड़े बाजार रहे हैं, लेकिन इन देशों में चीन का चावल पहुंचने से भारत के सामने नया प्रतिस्पर्धी खड़ा हो गया है.
उद्योग भवन के नीति निर्माताओं से लेकर भारत में चावल के बड़े निर्यातकों तक को इस बात की जानकारी पहले से ही है कि चीन भारी मात्रा में अफ्रीकी बाजारों में अपना चावल उतार चुका है.
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के निर्यात संभाग के एक अधिकारी ने बताया, "हमें इस बात की जानकारी मिली है कि चीन आमतौर पर चावल का आयात करता है, लेकिन अब वह भारी मात्रा में चावल निर्यात करने लगा है."
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानी एपीडा के एक अधिकारी ने बताया, "चीन के लोग लसलसा चावल यानी स्टिकी राइस खाना पसंद करते हैं. लेकिन भंडार में रखा हुआ चावल जब पुराना हो जाता है तो उसमें लसलसापन नहीं रह जाता है. यही कारण है कि चीन अपने गोदामों में पड़ा पुराना चावल विदेशों में बेच देता है."
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जानकार सूत्रों के मुताबिक, बीते छह महीनों में चीन के सरकारी गोदामों से तकरीबन 30 लाख टन चावल निर्यात हो चुका है और उसके चावल की खेपें लगातार अफ्रीकी बाजारों में पहुंच रही हैं.
चीन द्वारा वैश्विक बाजार में सस्ती दरों पर चावल उतारने से मिल रही चुनौती का जिक्र करते हुए उत्तराखंड के बड़े चावल निर्यातक लक्ष्य अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, "हम (भारत) करीब 400 डॉलर प्रति टन गैर-बासमती चावल निर्यात करते हैं. लेकिन चीन इससे काफी कम कीमत पर चावल उपलब्ध करा रहा है. ऐसे में भारत के सामने प्रतिस्पर्धा में रहना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि हमारे यहां धान का एमएसपी ज्यादा होने के कारण चावल महंगा है. यही कारण है कि इस साल गैर-बासमती चावल के निर्यात में कमी आई है."