मुंबई: हालिया बालाकोट हवाई हमलों के बाद भारत-पाकिस्तान सीमा पर पर बढ़ें तनाव के मद्देनजर भारत की सशस्त्र सेना सुर्खियों में रही. केंद्र में इस समय राष्ट्रवादी भावनाओं वाली सरकार है, जो बड़े पैमाने पर सशस्त्र बलों के समर्थन के लिए जानी जाती है, अपनी दूसरी पारी के पहले बजट की तैयारी में लगी है.
इस बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटन की प्रकृति, सरंचना और दिशा को देखने के लिए लोगों में बहुत रुचि होगी. वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ इस बार उम्मीदे अपने चरम पर है क्योंकि वह पूर्व रक्षा मंत्री भी थीं, जिससे उन्हें देश के रक्षा क्षेत्र द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों और चिंताओं की जानकारी होगी.
रक्षा क्षेत्र पर भारत का खर्च
भारत का रक्षा बजट एनडीए-1 सरकार द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट में 3 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया, जो पिछले साल के संशोधित अनुमानों से 6.96 प्रतिशत अधिक था. हालांकि जब वित्त मंत्री सदन में बजट पेश करने जा रही हैं, तो यह याद रखना चाहिए कि भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत से कम रक्षा पर खर्च करता है. यह चीन (2.5 प्रतिशत) और पाकिस्तान (3.5 प्रतिशत) के खर्च से भी कम है.
बढ़ती मुद्रास्फीति और बढ़ती विनिमय दर की अस्थिरता का प्रभाव
दूसरी ओर बढ़ती मुद्रास्फीति और बढ़ती विनिमय दर की अस्थिरता के मद्देनजर, हथियारों और अन्य सैन्य उपकरणों के अधिग्रहण पर खर्च होने वाली राशि वास्तव में इसकी आवश्यकता से कम होगी। पिछली प्रतिबद्ध देनदारियों के आवंटन में भी उनकी हिस्सेदारी होगी और इसलिए बजटीय आवंटन का काफी हद तक उपभोग करेंगे.
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इसके अलावा, वन रैंक वन पेंशन के कार्यान्वयन, सातवें वेतन आयोग के तहत बढ़ी हुई तनख्वाह, पेंशन और बकाया का भुगतान आवंटित बजट पर एक हिस्सा ले रहा होगा.