मुंबई: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन (एनडीए) सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करने जा रही है. देश में विकास के प्रमुख सामाजिक संकेतकों में से एक के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट के आवंटन को लेकर एक समग्र उत्साह है.
भारत अपने सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 1.4 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो श्रीलंका (1.6 प्रतिशत) और भूटान (2.5 प्रतिशत) जैसे विकासशील देशों से भी कम है.
हाल के दिनों में एक सकारात्मक विकास के रूप में एनडीए 1 के दौरान 2019-20 के लिए प्रस्तुत अंतरिम बजट में स्वास्थ्य के लिए 61,398 करोड़ रुपये आवंटित किया जो, पिछले बार के समान अवधि के लिए 16.3 प्रतिशत अधिक है.
हालांकि इन आवंटन के लिए बहुत ही अधिक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए अंतरिम बजट में आयुष्मान भारत योजना के लिए आवंटन में काफी वृद्धि हुई, जो पिछले वित्तीय वर्ष में प्राप्त आवंटन की तुलना में 166 प्रतिशत अधिक है.
उसी समय, गैर-संचारी रोगों, चोट और आघात के लिए फ्लेक्सी पूल के लिए बजट, कैंसर के रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक में कटौती का सामना करना पड़ा. ये स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रमुख क्षेत्र हैं जिन्हें वास्तव में बड़े ध्यान और उच्च आवंटन की आवश्यकता है.
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हालांकि आयुष्मान भारत योजना के तहत देश की 40 फीसदी आबादी को प्रति परिवार 5 लाख रुपये का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देना एक अच्छी पहल है, लेकिन वहीं भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र की अन्य प्रमुख योजनाओं पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमी
स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में गंभीर रूप से कमी है जो उपेक्षा का शिकार है. 2016 के ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी के अनुसार, देश भर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की 22 प्रतिशत, स्वास्थ्य उप-केंद्रों की 20 प्रतिशत कमी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की 30 प्रतिशत कमी है.