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बजट 2019: भारत के बीमार स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहतर आवंटन से किया जाएगा दुरुस्त

देश में विकास के प्रमुख सामाजिक संकेतकों में से एक के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट के आवंटन को लेकर एक समग्र उत्साह है.

बजट 2019: भारत के बीमार स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहतर आवंटन से किया जाएगा दुरुस्त

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Published : Jun 29, 2019, 6:05 PM IST

Updated : Jun 29, 2019, 6:10 PM IST

मुंबई: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन (एनडीए) सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करने जा रही है. देश में विकास के प्रमुख सामाजिक संकेतकों में से एक के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट के आवंटन को लेकर एक समग्र उत्साह है.

भारत अपने सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 1.4 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो श्रीलंका (1.6 प्रतिशत) और भूटान (2.5 प्रतिशत) जैसे विकासशील देशों से भी कम है.

हाल के दिनों में एक सकारात्मक विकास के रूप में एनडीए 1 के दौरान 2019-20 के लिए प्रस्तुत अंतरिम बजट में स्वास्थ्य के लिए 61,398 करोड़ रुपये आवंटित किया जो, पिछले बार के समान अवधि के लिए 16.3 प्रतिशत अधिक है.

हालांकि इन आवंटन के लिए बहुत ही अधिक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए अंतरिम बजट में आयुष्मान भारत योजना के लिए आवंटन में काफी वृद्धि हुई, जो पिछले वित्तीय वर्ष में प्राप्त आवंटन की तुलना में 166 प्रतिशत अधिक है.

उसी समय, गैर-संचारी रोगों, चोट और आघात के लिए फ्लेक्सी पूल के लिए बजट, कैंसर के रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक में कटौती का सामना करना पड़ा. ये स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रमुख क्षेत्र हैं जिन्हें वास्तव में बड़े ध्यान और उच्च आवंटन की आवश्यकता है.

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हालांकि आयुष्मान भारत योजना के तहत देश की 40 फीसदी आबादी को प्रति परिवार 5 लाख रुपये का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देना एक अच्छी पहल है, लेकिन वहीं भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र की अन्य प्रमुख योजनाओं पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमी

स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में गंभीर रूप से कमी है जो उपेक्षा का शिकार है. 2016 के ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी के अनुसार, देश भर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की 22 प्रतिशत, स्वास्थ्य उप-केंद्रों की 20 प्रतिशत कमी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की 30 प्रतिशत कमी है.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि देश के सरकारी अस्पतालों में जनसंख्या-डॉक्टर अनुपात उस अनुपात से 25 गुना कम है, जिसकी सिफारिश विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की है.

बड़े बजटीय आवंटन की आवश्यकता

इन मोर्चों पर सुधार के लिए लगातार निगरानी और पर्यवेक्षण के साथ बड़े बजटीय आवंटन की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही अन्य क्षेत्र, जैसे मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर भी चिंता के अन्य विषय हैं. रवांडा और इथियोपिया जैसे गरीब देश इस मामले में न्यूनतम खर्च के साथ महान सबक प्रदान करते हैं.

प्रोत्साहन के साथ स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं की जवाबदेही

रवांडा ने स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों की जवाबदेही को प्रोत्साहन के साथ जोड़ने का प्रयास किया. उन्हें नैदानिक ​​दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए मौद्रिक रूप में कुछ प्रोत्साहन की पेशकश की गई थी. नतीजतन, उनके प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ. इसी समय, वहां की सरकार ने रवांडा में ग्रामीण आबादी के लिए स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता के बारे में जानकारी तक पहुंच में सुधार किया, जिससे सार्वजनिक जागरूकता बढ़ी.

प्रशिक्षित स्वास्थ्य विस्तार कार्यकर्ता

यहां तक ​​कि इथियोपिया अपनी स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति में सुधार में उपलब्धि के उदाहरण के रूप में खड़ा था. इसने एक साल के लिए हजारों स्वास्थ्य विस्तार कार्यकर्ताओं और ग्रामीण हाई स्कूल स्नातकों को प्रशिक्षित किया. बाद में, उन्हें अपने स्थानीय क्षेत्रों में वापस भेज दिया गया. परिणामस्वरूप, वे बाल मृत्यु दर में 32 प्रतिशत और मातृ मृत्यु दर में 38 प्रतिशत की कमी कर पाए.

भारत के बजट में आवंटन, विशेष रूप से, इन गरीब देशों की तर्ज पर इस तरह की पहलों के कारण, स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रदर्शन में काफी हद तक सुधार हो सकता है.

(लेखक: डॉ. महेंद्र बाबू कुरुवा, असिस्टेंट प्रोफेसर, एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड)

Last Updated : Jun 29, 2019, 6:10 PM IST

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