नई दिल्ली : आईआईटी कानपुर द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में उत्तर पश्चिम भारत के 4,000 से अधिक भूजल वाले कुओं के आंकड़ों का उपयोग किया गया है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि पंजाब और हरियाणा राज्यों में भूजल स्तर पिछले चार-पांच दशकों में खतरनाक स्तर तक गिर गया है.
भारत सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए दुनियाभर में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है. भारत में कुल वार्षिक भूजल अपव्यय लगभग 245 किमी है. जिसमें से लगभग 90 प्रतिशत की खपत सिंचाई में होती है. अध्ययन में कहा गया है कि गंगा के मैदानी इलाकों के कई हिस्से फिलहाल भूजल के इसी तरह के अत्यधिक दोहन से पीड़ित हैं और यदि भूजल प्रबंधन के लिए उचित रणनीति तैयार की जाए तो स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है.
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा और उनके पीएचडी के छात्र सुनील कुमार जोशी के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में बताया गया कि पंजाब और हरियाणा राज्य सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र हैं. इसके अनुसार ऊपरी भूजल 1974 के दौरान जमीनी स्तर से 2 मीटर नीचे था जो 2010 में गिरकर लगभग 30 मीटर नीचे हो गया. यह भूजल में विशेष रूप से 2002 के बाद से 50 किमी3 (1.0 किमी3/वर्ष) की गिरावट को दर्शाता है.
अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की स्थिति भी समान रूप से खराब है जो कृषि प्रधान राज्य हैं और जहां भूजल प्रबंधन रणनीतियां अभी भी काफी पुरानी हैं. अध्ययन से पता चलता है कि हरियाणा में चावल की खेती का क्षेत्र 1966-67 के 1,92,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2017-18 में 14,22,000 हेक्टेयर हो गया जबकि पंजाब में यह 1960-61 के 2,27,000 के मुकाबले 2017-18 में बढ़कर 30,64,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है.
नतीजतन, मांग को पूरा करने के लिए भूजल अवशोषण बढ़ गया. इसके अलावा, भूजल स्तर में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट घग्गर-हकरा पैलियोचैनल (कुरुक्षेत्र, पटियाला और फतेहाबाद जिले) और यमुना नदी घाटी (पानीपत और करनाल जिलों के कुछ हिस्सों) में दर्ज की गई है.