गोरखपुर: टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) रोग कोरोना से भी खतरनाक है. साल भर में टीबी से मौत का आंकड़ा, कोरोना के मौत से कई गुना ज्यादा है. इसके बाद भी लोग टीबी को लेकर सावधानी और इलाज कराने में गंभीरता नहीं अपना रहे. इसका परिणाम है कि भारत में हर 3 मिनट में 2 मरीजों की मौत हो रही है. यही नहीं दुनिया के सर्वाधिक टीबी पेशेंट वाला देश भारत है और यहां मौत का आंकड़ा भी सबसे अधिक है. गोरखपुर के मशहूर चेस्ट फिजीशियन डॉ. नदीम अरशद ने यह जानकारी दी.
बता दें कि डॉ. नदीम टीबी यानी कि ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में पूर्वांचल के ख्यातिप्राप्त चिकित्सक हैं, और ऑल इंडिया चेस्ट फिजिशियन एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य हैं. उन्होने 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर लोगों को जागरूक करने, इसके बचाव के उपाय और पीएम मोदी के साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने वाले लक्ष्य को हासिल करने के लिए मीडिया के जरिए लोगों से अपील की. इस दौरान उन्होंने कहा कि समय से जागरूकता और इलाज इस बीमारी को नियंत्रित कर देता है. लापरवाही मौत की ओर ले जाती है. लोग इसके प्रति लापरवाह बने हुए हैं, जबकि पूरी दुनिया मे हर साल करीब 15 लाख और भारत मे 4 लाख 35 हजार लोगों की मौत टीबी से होती है.
ऐसे करें पहचान: डॉ. नदीम ने बताया कि यह संक्रामक रोग है, जो बैक्टीरिया की वजह से होता है. बैक्टीरिया शरीर के सभी अंगों में प्रवेश कर जाता है. हालांकि यह ज्यादातर फेफड़ों में ही पाया जाता है. इसके अलावा आंतों, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा और हृदय भी टीबी से ग्रसित हो सकते हैं. साधारण तरीके से लोग इसकी पहचान कर सकते हैं. अगर दो हफ्ते से ज्यादा खांसी आ रही हो, बुखार जो अक्सर शाम को बढ़ता हो, छाती में तेज दर्द इसके लक्षण हैं. इसके साथ ही अचानक वजन घटना, भूख में कमी, बलगम के साथ खून आना, फेफड़ों में बहुत ज्यादा इन्फेक्शन होना, सांस लेने में तकलीफ होना भी इसके लक्षण हैं.
तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर जाकर इसकी जांच कराई जा सकती है, जो पूरी तरह निशुल्क है. सरकार इसका पूरा खर्च उठाती और 500 रुपये महीने सहयोग भी करती है. इसलिए इन सुविधाओं के होते हुए भी लोगों को इस बीमारी के प्रति लापरवाह नहीं होना चाहिए. खुद को और समाज को बचाने के लिए आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि अब जांच में भी समय कम लग रहा है. कई तरह की नई तकनीक भी विकसित हो गई हैं.
ऐसे होती है जांच: डॉ. नदीम ने बताया कि टीबी की जांच के लिए छाती का एक्सरे, बलगम की जांच, स्किन टेस्ट होता है. इसके अलावा आधुनिक तकनीक के माध्यम से मॉलिक्यूलर टेस्ट, जेनेक्सपर्ट और एलपीए से भी टीबी का पता लगाया जा सकता है. इसके तहत देशभर में डॉट्स केंद्र बने हैं. इन केंद्रों की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां मरीज को केंद्र पर ही दवाई खिलाई जाती है, जिससे इलाज में किसी तरह की कोताही न हो.
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