हैदराबाद : दुनिया भर में, हर 42 सेकंड में एक बच्चे की निमोनिया से मौत हो जाती है. निमोनिया किसी भी अन्य संक्रामक बीमारी की तुलना में अधिक बच्चों की जान लेता है. वैश्विक आंकड़ों के अनुसार हर साल पांच साल से कम उम्र के 700000 (सात लाख) से अधिक बच्चों की जान ले लेता है. यानि हर दिन लगभग 2,000 बच्चों की जान निमोनिया के कारण चली जाती है. इसमें 200000 (दो लाख) से अधिक नवजात शिशु शामिल हैं. इनमें से लगभग सभी मौतें रोकी जा सकती हैं. इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है.
दक्षिण एशिया में निमोनिया की समस्या ज्यादा गंभीर
विश्व स्तर पर, प्रति 100,000 (एक लाख) बच्चों पर निमोनिया के 1,400 से अधिक मामले या हर साल प्रति 71 बच्चों पर 1 मामला होता है, जिसमें सबसे अधिक पीड़ित बच्चे दक्षिण एशिया (प्रति 100,000 बच्चों पर 2,500 मामले) और पश्चिम और मध्य अफ्रीका (प्रति 100,000 बच्चों पर 1,620 मामले) में होती है.
भारत में निमोनिया की समस्या
वैश्विक निमोनिया के बोझ का 23 फीसदी हिस्सा भारत का है. वहीं मामले में मृत्यु दर 14 से 30 फीसदी तक है. 2020 के दौरान देश में पंजीकृत प्रमाणित मौतों की संख्या 81,15,882 थी. देश में कुल मौतों में से 42 फीसदी (18,11,688) से अधिक मौतें का कारण तीन बीमारी-हृदय रोग, निमोनिया और अस्थमा शामिल है.
निमोनिया का खतरा किसे है?
स्वास्थ्य मामलों के जानकारों के अनुसार वैसे तो निमोनिया किसी को भी और कहीं भी और कभी भी हो सकता है. कुछ स्थितियों में इसका खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है. यदि आप इलाज के लिए अस्पताल में गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती हैं, विशेषकर ऐसी मशीन पर जो आपको सांस लेने में मदद करती है (वेंटिलेटर), आपको निमोनिया हो सकता है. इसके अलावा कई बार अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) या हृदय रोग के मरीजों में निमोनिया का खतरा होता है.