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Published : Oct 30, 2021, 9:09 PM IST

Updated : Oct 31, 2021, 12:13 PM IST

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वीर सावरकर के नाम से क्यों भड़कती है कांग्रेस, क्या DU के कॉलेज का नाम बदलकर बीजेपी उसे चिढ़ा रही है ?

दिल्ली यूनिवर्सिटी में कॉलेज के नामकरण के बहाने बीजेपी फिर सावरकर को सेंट्रल स्टेज पर ले आई है. पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सावरकर पर एक बयान दिया था. इसमें उन्होंने कहा था कि सावरकर ने गांधी के कहने पर माफीनामा लिखा था. इसके बाद कांग्रेस और अधिक हमलावर हो गई. अब वह सावरकर से जुड़े इतिहास के सारे पन्ने खंगाल रही है. इस बीच भाजपा और सावरकर पर हमला करने का उसे एक और मुद्दा मिल गया है. लेकिन सवाल यही है कि कांग्रेस सावरकर को लेकर इतनी अधिक चिढ़ती क्यों है. आजादी के तुरंत बाद कांग्रेस उनको लेकर इतनी अधिक आक्रामक नहीं थी. पढ़िए एक विश्लेषण.

कांग्रेस सावरकर
कांग्रेस सावरकर

हैदराबाद :दिल्ली विश्वविद्यालय ने नए बनने वाले कॉलेजों के नाम स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर और दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज के नाम पर रखने का फैसला किया है. यूनिवर्सिटी के कुलपति ने बताया कि यह निर्णय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद में लिया गया है.

यूनिवर्सिटी प्रशासन के इस फैसले के बाद विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस का छात्र संगठन एनएसयूआई डीयू में सावरकर की प्रतिमा को लेकर 2019 में काफी बवाल काट चुकी है. तब एनएसयूआई ने सावरकर की प्रतिमा पर कालिख भी पोती थी.

2019 में सावरकर की प्रतिमा पर एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने कालिख पोत दिया था.

हाल के दिनों में जब राजनाथ सिंह ने सावरकर को लेकर बयान दिया, तब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने अपना तगड़ा विरोध दर्ज कराया था. इन नेताओं ने सावरकर को अंग्रेजों से माफी मांगने और बदले में सरकारी पेंशन लेने के आरोप लगाए थे. कई इतिहासकारों ने दावा किया है कि अंडमान की सेल्युलर जेल में रहते हुए सावरकर ने 1911 से 1924 के बीच अंग्रेज अधिकारियों को 5 माफीनामा लिखे.

क्या सावरकर का विरोध कांग्रेस के लिए आइडियोलॉजिकल डिफरेंस का मसला है या राजनीतिक मजबूरी है. सावरकर हिंदू और हिंदुत्व की बात रखने वाले शुरुआती नेताओं में से एक थे. उन्होंने 1915 में हिंदू महासभा की स्थापना की थी. वाल्टर के एंडरसन और श्रीधर दामले ने अपनी किताब द ब्रदरहुड इन सैफ्रन, दि आरएसएस एंड द हिंदू रिवाइवलिज्म में दावा किया कि वह हिंदू महासभा को कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प बनाना चाहते थे.

महात्मा गांधी की हत्या के बाद सावरकर गिरफ्तार किए गए थे और हिंदू महासभा के साथ आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया था.

इसके अलावा कांग्रेस के नेता सावरकर को द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के लिए जिम्मेदार मानते हैं. उनका मानना है कि आरएसएस जिस हिंदुत्व की बात करती है, वह सावरकर की देन है. इससे इतर एक तथ्य यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलिराम हेडगवार ने हिंदू महासभा बनने के 10 साल बाद की थी. स्थापना के समय ही हेडगवार ने इसे सांस्कृतिक संगठन के तौर परिभाषित किया था.

आजादी के पहले तक कांग्रेस का नजरिया सावरकर के लिए ऐसा नहीं था, जैसा अभी है. दिसंबर 1919 में ब्रिटिश सरकार ने राजनीतिक बंदियों को रिहा किया था. मगर वीर सावरकर और उनके भाई को रिहाई नहीं दी गई. तब महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में दोनों को रिहा करने की वकालत की थी. सावरकर के बड़े भाई के निधन के बाद 22 मार्च 1945 को सेवाग्राम से लिखी एक चिट्ठी लिखकर महात्मा गांधी ने शोक संवेदना भी व्यक्त की थी.

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कांग्रेस सावरकर पर महात्मा गांधी की हत्या में शामिल होने का आरोप भी लगाती है. महात्मा गांधी की हत्या के बाद विनायक दामोदर सावरकर को हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. हांलाकि उन्हें फ़रवरी 1949 में बरी कर दिया गया था. बताया जाता है कि इस केस में सावरकर की गिरफ्तारी के पक्ष में नेहरू मंत्रिमंडल के कई सदस्य नहीं थे. जवाहर लाल नेहरू के राज में सावरकर नेपथ्य में ही रहे. पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्‍त्री जब प्रधानमंत्री बने तो उन्‍होंने सावरकर को मासिक पेंशन देने का आदेश जारी किया.

सावरकर के नाम पर डाक टिकट 1970 में जारी किया गया था, तब इंदिरा गांधी की सरकार थी.

26 फरवरी 1966 में सावरकर का निधन हो गया, तब तक देश की हुकूमत इंदिरा गांधी के हाथों में चली गई थी. इंदिरा गांधी ने 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था. साथ ही सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपये दान किए थे. 80 और 90 के दशक में सावरकर को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ. बीजेपी अपने कार्यक्रमों में उनकी तस्वीर लगाती रही.

संसद के केंद्रीय कक्ष में सावरकर की प्रतिमा के अनावरण के दौरान हुए कार्यक्रम में सोनिया गांधी नहीं गई थीं.

सावरकर के नाम पर विवाद दोबारा उस समय शुरू हुआ, जब एनडीए के शासनकाल 2003 में बीजेपी ने संसद में उनकी तस्वीर लगाई. तब कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को चिट्ठी लिखकर इसका विरोध किया. तत्कालीन मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, कांग्रेस के दिग्गज नेता शिवराज पाटिल और प्रणव मुखर्जी ने इसका समर्थन किया था, तब सोनिया गांधी ने उन्हें फटकार लगाई थी.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में सावरकर की प्रतिमा, जिस पर 2019 में विवाद हुआ था.

इस घटना के बाद सावरकर को लेकर कांग्रेस का रवैया पूरी तरह बदल गया. 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो अंडमान के सेल्युलर जेल से सावरकर से जुड़ी तख्तियां हटा दी गईं. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने इसका कड़ा विरोध किया था.

कांग्रेस नेता अब अक्सर पार्टी की ओर से खींची गई लकीर पर चलते नजर आते हैं. राहुल गांधी ने भी रामलीला मैदान में आयोजित रैली में कहा था कि मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं है, राहुल गांधी है. मैं सच्चाई के लिए कभी माफी नहीं मांगूंगा. 2018 में लाहौर में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने सावरकर के बारे में कहा कि 1923 में वी डी सावरकर नाम के एक शख्‍स ने अपनी किताब में एक शब्‍द ईजाद किया, जो किसी धार्मिक किताब में नहीं है, 'हिंदुत्‍व. दो राष्‍ट्र के सिद्धांत का पहला प्रस्‍तावक उन लोगों का वैचारिक गुरु है, जो अभी भारत में सत्‍ता में हैं.

रामलीला मैदान में राहुल गांधी ने सावरकर पर टिप्पणी की थी.

हाल में ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ही विनायक दामोदर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चलाई गई. आज के समय में वास्तव में वीर सावरकर के बारे में सही जानकारी का अभाव है. दरअसल, निशाना कोई व्यक्ति नहीं था बल्कि राष्ट्रवाद था. फिलहाल दिल्ली यूनिवर्सिटी में सावरकर के नाम पर कॉलेज बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई है. एक बार फिर सावरकर को लेकर राजनीति में इतिहास खंगाले जाएंगे.

Last Updated : Oct 31, 2021, 12:13 PM IST

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