हैदराबाद :केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) किसी केस को हाथ में लेती है तो यह माना जाता है कि असलियत सामने आएगी. मगर ऐसा नहीं है. भारत में कई ऐसे चर्चित घटनाएं हुई हैं, जिसकी जांच सीबीआई ने की, मगर कोई नतीजा नहीं आया. इस जांच एजेंसी के पास हजारों मामले लंबित हैं. सीबीआई ने खुद सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में यह स्वीकार किया है कि 31 दिसंबर, 2020 तक उसके पास 9,757 के पेंडिंग थे. इनमें से 3,249 मामले 10 से अधिक वर्षों से लंबित हैं. 500 मामले में 20 साल बाद भी सुनवाई के चल रही है.
दरअसल, 4 सितंबर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम सुंदरेश की बेंच ने सीबीआई को सफलता दर पर आंकड़ा सौंपने को कहा था. CBI के निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए हलफनामे में बताया कि एजेंसी ने 2019 में 69.83 प्रतिशत और 2020 में 69.19 प्रतिशत मामलों को अंजाम तक पहुंचाया और दोषियों को सजा मिली. एक्सपर्ट सीबीआई के सफलता के दावे से सहमत नहीं हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के के अनुसार 2020 में आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज मामलों में सजा का दर 59.2 प्रतिशत रहा.
क्यों सुस्त है सीबीआई का कन्विक्शन रेट :पिछले कुछ वर्षों में सीबीआई के पास ज्यादा केस रेफर होने लगे हैं. सीवीसी की रिपोर्ट के अनुसार काम की अधिकता, मैनपावर की कमी, करप्शन केसेज में कागजातों के वेरिफिकेशन, फारेंसिक लैब से रिपोर्ट मिलने में देरी और गवाहों के लापता होने के कारण जांच में देरी होती है. केंद्र में विपक्ष में रहने वाली पार्टी सीबीआई पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह केंद्र सरकार के इशारों पर काम करती है. इस कारण कई मामलों की जांच सुस्त पड़ जाती है. सरकार के दखल के कारण ही विपक्ष के राजनेताओं के घर पर छापे मारे जाते हैं. पूर्व सीबीआई चीफ जोगिंदर सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि चारा घोटाले में उन पर केंद्र सरकार का भारी दबाव था.
सीबीआई को लेकर केंद्र और राज्यों में टकराव :सीबीआई किस राज्य में केस की जांच करेगी, यह केंद्र और राज्य के बीच अक्सर विवाद का मुद्दा बनता रहा है. अक्सर राज्य सरकारें सीबीआई को डायरेक्ट एंट्री की परमिशन देती है. मगर विवाद होने पर राज्यों को हक है कि वह केंद्रीय जांच एजेंसी की सीधी एंट्री को रोक ले. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट की धारा-6 के अनुसार, राज्यों में जांच शुरू करने से पहले सीबीआई को स्टेट गवर्नमेंट से परमिशन मांगनी पड़ती है. अभी गैर बीजेपी शासित राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र पर दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सीबीआई की डायरेक्ट एंट्री बंद कर रखी है.
क्या सीबीआई जांच खुद से शुरू कर सकती है :सीबीआई गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है. वह किसी भी मामले की जांच शिकायत मिलने और एफआईआर दर्ज करने ही शुरू कर सकती है. इसके लिए जरूरी है कि उसे केंद्र सरकार, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जांच करने का आदेश दे. राज्यों में वह राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर जांच तब शुरू करती है, जब गृह मंत्रालय इसकी इजाजत दे.
ऐसे मामले, जिसमें सीबीआई नतीजे तक नहीं पहुंची :जब भी कोई हाई प्रोफाइल वित्तीय घोटाला या क्राइम की घटना होती है तो मामला सीबीआई तक पहुंचता है. मगर कोयला आवंटन घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, टू जी घोटाला, जैन हवाला कांड और आरुषि मर्डर केस समेत कई बहुचर्चित मामलों में सीबीआई किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी . माल्या कर्ज मामला, लालू प्रसाद रेलवे होटल बिक्री, अगुस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाला, शारदा और नारद जैसे घोटालों की जांच भी सीबीआई पूरी नहीं कर सकी है. रिपोर्टस के अनुसार, सीबीआई की विभिन्न अदालतों में सांसदों, विधायकों और राजनेताओं से जुड़े 123 मामले लंबित हैं. उत्तरप्रदेश से जुड़े गोमती रीवर फ्रंट घोटाला, हाथरस गैंगरेप केस, उन्नाव गैंगरेप कांड, देवरिया गर्ल शेल्टर सेक्स रैकेट, दिल्ली-सहारनपुर एक्सप्रेसवे घोटाले में भी सीबीआई के हाथ खाली ही हैं.