हैदराबाद: हालांकि टैक्स सेविंग्स के लिए कई स्कीमें हैं, लेकिन एक्सपर्टस का कहना है कि शेयर बाजार (stock market) में निवेश करना बेहतर है. इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) को अच्छी तरह समझने के बाद निवेश करते हैं तो इससे लॉन्ग टर्म बेनिफिट प्राप्त करना मुश्किल नहीं है.
टैक्स सेविंग्स (Tax Savings) : फाइनेंशियल प्लानिंग में टैक्स सेविंग्स अहम हैं. हालांकि टैक्स सेविंग्स के लिए कई योजनाएं उपलब्ध हैं, लेकिन इक्विटी-लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस) शेयर बाजार में निवेश के जरिये टैक्स का बोझ कम करने का विकल्प प्रदान करती है. टैक्स प्लानिंग फाइनैंशियल ईयर के पहले महीने से शुरू होना चाहिए, हालांकि ज्यादातर लोग इसके बारे में जनवरी के बाद ही सोचना शुरू करते हैं. अगर आप इस समय भी पूरी समझ के साथ सही प्लान का चुनाव करते हैं तो लंबी अवधि का फायदा मिलना मुश्किल नहीं है.
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (Equity-Linked Savings Scheme) : इक्विटी से जुड़ी सेविंग स्कीम अन्य योजनाओं की तुलना में लाभ ज्यादा मिलता है, इसलिए यह निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर रही है. आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत किया गए निवेश में टैक्स से छूट मिलती है. याद रखें कि इसकी लिमिट 1,50,000 रुपये से अधिक है. इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम रेग्युलर म्यूचुअल फंड स्कीम जैसी ही हैं, लेकिन विशेषता यह है कि इसमें कम से कम तीन साल के लिए लॉक इन पीरियड होता है. इनमें ग्रोथ, डिविडेंड और डिविडेंड रीइन्वेस्टमेंट विकल्प (ELSS Equity-Linked Savings Scheme) शामिल हैं. जब इक्विटी में एक साल से अधिक समय तक निवेश किया जाता है और इससे होने वाली आय एक फाइनेंशियल ईयर में 1 लाख रुपये से अधिक है, तो 10 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है. तब यह नियम ईएलएसएस पर भी लागू होता है.
सही निवेश चुनना:कैपिटल ग्रोथ के लिए सही निवेश चुनना महत्वपूर्ण है. अन्य टैक्स सेविंग स्कीमों में आमतौर पर पांच साल की लॉक-इन अवधि होती है. इनकी तुलना में ELSS का लॉक-इन पीरियड सिर्फ तीन साल का होता है. इसलिए, यदि आप टैक्स सेविंग्स के लिए शॉर्ट टर्म स्कीम चाहते हैं तो ELSS सही विकल्प है. यह सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट स्कीम (SIP) में निवेश करने के लिए उपयुक्त हैं. तीन साल बाद निवेश की गई राशि निकाली जा सकती है या आप चाहें तो इसे जारी भी रख सकते हैं. मगर तीन साल की समाप्ति के बाद पहले महीने की एसआईपी की राशि निकाली जा सकती है और दोबारा स्कीम में निवेश किया जा सकता है. इस तरह, इन्वेस्टमेंट सर्किल को जारी रखा जा सकता है और ग्रोथ का अवसर मिलता है. एसआईपी से स्थिर रिटर्न मिलने की संभावना बढ़ जाती है और तीन साल का लॉक-इन होने से काफी फायदा होता है.
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