प्रयागराज: प्रयागराज में मुगल शासक के सिपहसालार के जुल्मों का अंत होली के दिन किया गया था. तभी से जमुनीपुर कोटवा इलाके में होली के दिन विजय जुलूस निकालकर पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आजतक चलती आ रही है. जिस वजह से इलाके में लोग रंग खेलने की जगह पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों के साथ विजय जुलूस में शामिल होते हैं और हर्षोल्लास के साथ होली के दिन को विजय पर्व के रूप में मनाते हैं. दरअसल, संगम नगरी में होली के दिन विजय जुलूस निकाल कर रंगोत्सव मनाने की परंपरा करीब तीन सौ सालों से चली आ रही है. जमुनीपुर कोटवा इलाके में लोग अस्त्र-शस्त्र लेकर पारंपरिक तरीके से जुलूस निकालकर होली का पर्व मनाते हैं.
साथ ही यहां होली के दिन ग्रामीण नए कपड़े पहनकर पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र लेकर विजय जुलूस में सपरिवार शामिल होते हैं. कोटवा से महर्षि दुर्वासा आश्रम तक निकलने वाले विजय जुलूस में यहां के कई गांवों के लोग शामिल होते हैं. वहीं, दुर्वासा आश्रम के पास बनी मुगल शासक के जालिम सिपहसालार मोहम्मद जफर सईद की कब्र पर जाकर ये विजय जुलूस खत्म होता है, जहां जुलूस में शामिल लोग उसकी कब्र पर अपना आक्रोश प्रकट करते हैं.
जानें क्या है इसके पीछे की कहानी
कोटवा के रहने वाले रिटायर शिक्षक महेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि तीन सौ साल पहले मुगल शासनकाल के दौरान प्रयागराज अवध प्रांत में आता था. उस वक्त अवध प्रांत की बागडोर मुगल शासक नवाब वाजिद अली शाह के पास थी. नवाब ने प्रयागराज के गंगापार इलाके में मोहम्मद जफर सईद को कर वसूलने के लिए सिपहसालार के रूप में तैनात किया था, जो लोगों से लगान वसूली का काम करता था. लेकिन जफर सईद कर वसूलने के लिए जनता के ऊपर तमाम तरह के अत्याचार करने लगा था.
इतना ही नहीं जो लोग लगान नहीं दे पाते थे, उनके घरों के पुरुषों के साथ ही महिलाओं पर भी जफर जुल्म ढाने लगा था. बताया यहां तक जाता है कि जफर शादी के बाद नई दुल्हन को एक रात अपनी हवेली में गुजारने को बुला लेता था. यही नहीं उसके खिलाफ किसी ने आवाज उठायी तो उसे वो तोप से बांधकर गोले से उड़ा देता था. लगान के नाम पर जफर के बढ़ते जुल्म से परेशान होकर यहां के लोग ठाकुर नजर सिंह से मदद मांगने पहुंचे थे.