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प्रयागराज में होली को विजय पर्व के रूप में मानते हैं लोग, जानें क्या है इसके पीछे की कहानी - डॉ. शशिकेंद्र प्रताप सिंह

प्रयागराज में मुगल शासक के सिपहसालार के जुल्मों का अंत होली के दिन किया गया था. तभी से जमुनीपुर कोटवा इलाके में होली के दिन विजय जुलूस निकालकर पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आजतक चलती आ रही है.

In Prayagraj, people consider Holi as the festival of victory
प्रयागराज में होली को विजय पर्व के रूप में मानते हैं लोग

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Published : Mar 18, 2022, 7:46 PM IST

प्रयागराज: प्रयागराज में मुगल शासक के सिपहसालार के जुल्मों का अंत होली के दिन किया गया था. तभी से जमुनीपुर कोटवा इलाके में होली के दिन विजय जुलूस निकालकर पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आजतक चलती आ रही है. जिस वजह से इलाके में लोग रंग खेलने की जगह पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों के साथ विजय जुलूस में शामिल होते हैं और हर्षोल्लास के साथ होली के दिन को विजय पर्व के रूप में मनाते हैं. दरअसल, संगम नगरी में होली के दिन विजय जुलूस निकाल कर रंगोत्सव मनाने की परंपरा करीब तीन सौ सालों से चली आ रही है. जमुनीपुर कोटवा इलाके में लोग अस्त्र-शस्त्र लेकर पारंपरिक तरीके से जुलूस निकालकर होली का पर्व मनाते हैं.

प्रयागराज में होली को विजय पर्व के रूप में मानते हैं लोग

साथ ही यहां होली के दिन ग्रामीण नए कपड़े पहनकर पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र लेकर विजय जुलूस में सपरिवार शामिल होते हैं. कोटवा से महर्षि दुर्वासा आश्रम तक निकलने वाले विजय जुलूस में यहां के कई गांवों के लोग शामिल होते हैं. वहीं, दुर्वासा आश्रम के पास बनी मुगल शासक के जालिम सिपहसालार मोहम्मद जफर सईद की कब्र पर जाकर ये विजय जुलूस खत्म होता है, जहां जुलूस में शामिल लोग उसकी कब्र पर अपना आक्रोश प्रकट करते हैं.

जानें क्या है इसके पीछे की कहानी

कोटवा के रहने वाले रिटायर शिक्षक महेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि तीन सौ साल पहले मुगल शासनकाल के दौरान प्रयागराज अवध प्रांत में आता था. उस वक्त अवध प्रांत की बागडोर मुगल शासक नवाब वाजिद अली शाह के पास थी. नवाब ने प्रयागराज के गंगापार इलाके में मोहम्मद जफर सईद को कर वसूलने के लिए सिपहसालार के रूप में तैनात किया था, जो लोगों से लगान वसूली का काम करता था. लेकिन जफर सईद कर वसूलने के लिए जनता के ऊपर तमाम तरह के अत्याचार करने लगा था.

इतना ही नहीं जो लोग लगान नहीं दे पाते थे, उनके घरों के पुरुषों के साथ ही महिलाओं पर भी जफर जुल्म ढाने लगा था. बताया यहां तक जाता है कि जफर शादी के बाद नई दुल्हन को एक रात अपनी हवेली में गुजारने को बुला लेता था. यही नहीं उसके खिलाफ किसी ने आवाज उठायी तो उसे वो तोप से बांधकर गोले से उड़ा देता था. लगान के नाम पर जफर के बढ़ते जुल्म से परेशान होकर यहां के लोग ठाकुर नजर सिंह से मदद मांगने पहुंचे थे.

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ठाकुर नजर सिंह के वंशज डॉ. शशिकेंद्र प्रताप सिंह के मुताबिक जब ग्रामीणों ने ठाकुर नजर सिंह से मदद मांगी तो उन्होंने जनता की मदद करने का फैसला किया और हमले की योजना बनाई. जिसके बाद ठाकुर नजर सिंह के नेतृत्व में जनता ने होली के दिन अलसबुह जफर की हवेली पर हमला बोल दिया. इधर, जफर और उसके सैनिक तोप चला पाते कि उससे पहले ही एक टीम के लोगों ने तोप तक पहुंचकर पहले उसे बर्बाद कर दिया था. ठाकुर नजर सिंह के नेतृत्व में हुए इस हमले में मोहम्मद जफर सईद और उसके सैनिक मारे गए, जबकि कई सैनिक जफर के मरते ही भाग गए.

दूसरी तरफ इस लड़ाई में कई ग्रामीणों घायल हुए और एक नव युवक की मौत भी हो गई थी. जिसके बाद उसकी नई नवेली दुल्हन गांव के बाहर जाकर सती हो गई थी. इसके बाद से ही यहां होली के दिन विजय जुलूस निकालने की परंपरा शुरू हुई. सुबह जहां लोग अस्त्र-शस्त्रों के साथ जाकर विजय जुलूस निकालते हैं और वो विजय जुलूस जालिम की कब्र पर जाकर तब समाप्त होता है जब लोग उसकी कब्र पर गुस्सा उतार लेते हैं. जबकि शाम के वक्त गांव के लोग उस हमले में शहीद हुए युवक की पत्नी जिस स्थान पर जाकर सती हुई थी, वहां सती चौरा पर पूजा-पाठ करते हैं और फिर जश्न मनाते हैं. इस दौरान यहां शाम को मेले जैसा माहौल होता है.

विजय जुलूस निकालकर देते हैं एक-दूसरे को बधाई

होली के दिन जहां शाम को लोग नए कपड़े पहनकर एक-दूसरे के घर जाते हैं, वहीं इस इलाके में दिन में ही लोग नए कपड़े पहनकर विजय जुलूस में शामिल होते हैं. जिसके बाद शाम को सती चौरा पर पूजा-पाठ करने के उपरांत लोग नाचते गाते हैं और हर्षोल्लास के साथ होली को विजय पर्व के रूप में मनाते हैं.

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