लखनऊ: उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ब्रजलाल खाबरी आज यानी शनिवार को पार्टी कार्यालय में पद संभालने राजधानी आएंगे. उन्हीं के साथ सभी 6 प्रांतीय अध्यक्ष भी कुर्सी संभालेंगे. खाबरी के स्वागत के लिए जहां एक तरफ पार्टी कार्यालय को कार्यकर्ताओं ने सजाया है तो जालौन से अपने अध्यक्ष को लखनऊ तक लाने के लिए पार्टी ने 500 गाड़ियों के काफिले को तैयार किया है. कांग्रेस नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए एक अक्टूबर को दलित वर्ग से बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. वहीं, ब्राह्मण, मुस्लिम और ओबीसी का समीकरण बनाते हुए छह प्रांतीय अध्यक्ष नियुक्त किए. इनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, अजय राय, वीरेंद्र चौधरी, अनिल यादव व योगेश दीक्षित शामिल हैं.
कौन हैं ब्रजलाल खाबरी
यूपी में जालौन की कोंच तहसील के खाबरी गांव के दलित परिवार में 10 मई 1961 को जन्मे बृजलाल ने छात्र जीवन में राजनीति में एंटी की थी. इतिहास व राजनीति शास्त्र से परास्नातक करने वाले खाबरी ने दयानंद वैदिक महाविद्यालय उरई में 1986-87 में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा. लेकिन, हार गए. इसी साल कांशीराम के मिशन BS4 से जुड़े. इनको बाबू रामाधीन BS4 में लेकर आए. पहली बार रामनगर में BS4 कैडर की बैठक में भाग लिया. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
जब पहली बार सांसद बने थे ब्रजलाल
साल 1996 में बृजलाल खाबरी को बसपा का जिला अध्यक्ष बनाया गया. साल 1999 में खाबरी ने बसपा से जालौन लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा को करारी शिकस्त दी थी. 2004 के लोकसभा चुनाव में हार गए थे. इसके बाद खाबरी को बसपा ने दिल्ली का प्रभारी बनाया. बाद में 2016 तक उन्होंने आंध्र प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पुदुचेरी, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में प्रभारी के पद पर जाकर बसपा को मजबूत करने का काम किया.
टिकट बंटवारे का विवाद हुआ तो मायावती ने पार्टी से निकाला
साल 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले टिकट बंटवारे को लेकर बसपा चीफ मायावती से खाबरी का विवाद हो गया. इस पर उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. 2007 में जब बहुजन समाजवादी पार्टी सत्ता में लौटी तो पार्टी में अंदरूनी विवाद उभरने लगे. इस दौरान उन्हें एक बार फिर 2008 में बसपा में शामिल किया गया और पार्टी ने इन्हें राष्ट्रीय महासचिव के साथ राज्यसभा भेजकर बड़ी जिम्मेदारी दी. साल 2016 में खाबरी ने बसपा छोड़कर कांग्रेस जॉइन की थी. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में खाबरी ने प्रियंका गांधी को लेकर बुंदेलखंड के हर जिले में दौरा किया था.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी: बृजलाल खाबरी की टीम में शामिल बहुजन समाज पार्टी के बड़े चेहरे रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी कभी मायावती के बेहद करीबी रहे थे. लेकिन, आज प्रियंका गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हैं. कांग्रेस में भी उनका कद लगातार बढ़ रहा है. मायावती से बेहद अच्छे ताल्लुक रखने वाले उनकी सरकार में कद्दावर मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जब बसपा सुप्रीमो ने तगड़ा झटका दिया तो उन्होंने हाथी से उतरकर हाथ थाम लिया. 2018 में बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर कांग्रेस के दरबार में दस्तक दी.
नकुल दुबे: बहुजन समाज पार्टी की जब उत्तर प्रदेश में सरकार बनी तो मायावती का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाले बसपा के नेताओं में एक नेता थे नकुल दुबे. लखनऊ की महोना विधानसभा सीट से विधायक बने. मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गए. मायावती नकुल दुबे पर विश्वास भी करती थीं. बसपा सुप्रीमो ने उन्हें सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नहीं लड़ाया, बल्कि 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव भी लड़ाया. लेकिन, एक चुनाव ही अब तक जीत पाने में नकुल दुबे सफल हुए. ज्यादा दिन तक मायावती नकुल को सहन नहीं कर सकीं. नकुल दुबे मायावती को छोड़कर कांग्रेस की प्रियंका गांधी के साथ कदमताल कर रहे हैं.
वीरेंद्र चौधरी: वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की बात करें तो पार्टी के सिर्फ दो ही विधायक हैं. उनमें से एक है वीरेंद्र चौधरी. उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की उम्मीदों को जिंदा रखा है. विधायक बनने का ही प्रतिफल उन्हें प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी से मिला है. हालांकि, वीरेंद्र चौधरी भी विशुद्ध कांग्रेसी नहीं हैं. उनका भी तालुक बहुजन समाज पार्टी से रहा है. वीरेंद्र चौधरी तीन बार बसपा से और दो बार कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके हैं. हाथी पर सवार होकर वे कामयाब नहीं हुए, लेकिन हाथ ने उनका साथ दिया और वह सदन पहुंचने में सफल हुए. फरेंदा विधानसभा सीट पर इस बार उन्हें जीत मिली.
अनिल यादव: पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष बनाए गए अनिल यादव 1999 से कांग्रेस से जुड़े. अनिल यादव इससे पहले 1990 में इटावा लोकसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. 2002 में कांग्रेस के टिकट पर जसवंतनगर विधानसभा से चुनाव लड़ा. 2007 से लेकर 2008 तक पार्टी के जिलाध्यक्ष पद पर तैनात रहे. कहने का मतलब है कि अनिल यादव भी बहुजन समाज पार्टी से ही कांग्रेस में प्रवेश करने वाले नेता हैं.
अजय राय: कांग्रेस पार्टी में नेता के रूप में अजय राय को बहुत महत्व दिया जाता है. पार्टी ने राय को अहमियत देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लगातार दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ाया. हालांकि, जीत उनसे कोसों दूर रही. लेकिन, अजय राय पांच बार विधायक जरूर रह चुके हैं. अब पार्टी ने उन्हें प्रांतीय अध्यक्ष बनाया है. लेकिन, अजय राय भी कांग्रेस में ही पैदा होकर यहां तक नहीं पहुंचे हैं, बल्कि उन्होंने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से की थी और इसके बाद वे समाजवादी पार्टी से होते हुए कांग्रेस का दरवाजा खटखटाने आए थे. अब कांग्रेस ने उन्हें और भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है.
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योगेश दीक्षित: कांग्रेस की प्रदेश टीम की अगर बात करें तो इस टीम में एकमात्र ऐसा चेहरा है, जिस पर कांग्रेसी विश्वास करते हैं. जो कांग्रेस की शुद्ध विचारधारा के नेता हैं. योगेश कांग्रेस में पले, बढ़े और यहां तक पहुंचे हैं. किसी भी परिस्थिति में उन्होंने हाथ का साथ नहीं छोड़ा. आज भी वह हाथ को ही थामे हुए हैं. राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के काफी करीबी माने जाते हैं और अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम देते हैं. शायद इसी के चलते पार्टी ने एकमात्र कांग्रेसी नेता के रूप में उन्हें प्रांतीय अध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है.