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इन अफसरों ने यूपी सरकार से लिया पंगा, ये हुआ हश्र - up Government took action against officers who opposed

आज हम आपको बताते हैं कि किन अफसरों ने यूपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला. इसमें से कई को रिटायर कर दिया गया तो कई ने स्वेच्छा से अपना इस्तीफा दे दिया. वहीं, इन सबने सोशल मीडिया के जरिए सरकार को घेरा. आइए जानते हैं ऐसे ही अफसरों की कहानी...

यूपी सरकार
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Published : Jun 11, 2021, 12:58 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में कई ऐसे प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं, जिन्होंने सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया. इनमें से किसी को जबरन रिटायर कर दिया गया तो किसी ने स्वेच्छा से अपना पद त्याग दिया. कुछ तो पद पर रहते हुए भी सरकार की नीतियों पर लगातार सवाल उठाते रहे. इन सब में एक खास बात यह रही कि सभी ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाया और सरकार को घेरा. हालांकि, कुछ अफसरों पर आरोप लगते रहे हैं कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते उन लोगों ने पहले जिन पार्टियों की तारीफ की, बाद में उसी के दुश्मन बन गए.

अनिल त्रिपाठी की रिपोर्ट.

आइए डालते हैं ऐसे ही चंद अफसरों पर एक नजर

रिटायर्ड IPS अमिताभ ठाकुर
IPS अमिताभ ठाकुर यूपी के चर्चित अफसर रहे हैं. इन्हें साहित्य लेखन में भी रुचि है. बोकारो झारखंड में जन्मे अमिताभ ने आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. आईपीएस बनने के बाद वे बस्ती, देवरिया, बलिया, महाराजगंज, गोंडा, ललितपुर और फिरोजाबाद समेत उत्तर प्रदेश के 10 जिलों में कप्तान रह चुके हैं. राज्य के सीएम रहे मुलायम सिंह यादव से उन्होंने सीधी टक्कर लेकर खूब सुर्खियां बटोरीं और भाजपा की तारीफ की. फिर भाजपा की सत्ता आते ही योगी सरकार में भी वह मुखर हो गए. साल 2021 में सरकार ने उन्हें जबरन रिटायर कर दिया. सरकार के इस फैसले के बाद भी अमिताभ ठाकुर पूरे दम से अपनी बात रख रहे हैं.

वर्ष 2006 में मुलायम सिंह की नाराजगी के हुए शिकार
वर्ष 2006 में जब अमिताभ ठाकुर फिरोजाबाद के एसपी थे, उसी दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह किसी बात को लेकर उनसे नाराज हो गए और उनका तबादला कर दिया. मुलायम सिंह की नाराजगी ही थी कि अमिताभ ठाकुर को किसी भी बड़े जिले में बतौर कप्तान तैनाती नहीं मिली. इसके बाद अमिताभ ठाकुर ने एक लंबी लड़ाई लड़ी और आखिरकार अखिलेश सरकार ने साल 2013 में इनका डाइरेक्ट प्रमोशन एसपी से आईजी के पद पर कर दिया. उन्होंने कई आरटीआई भी सरकारी कार्यों के लिए दाखिल कीं और कई पीआईएल कीं, जिनमें कुछ में कोर्ट की फटकार भी सुनने को मिली.

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मुलायम सिंह यादव के खिलाफ दर्ज कराई थी एफआईआर
अमिताभ ठाकुर नेशनल आरटीआई फोरम के संस्थापक भी हैं. उनकी पत्नी डॉ. नूतन ठाकुर प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वर्ष 2015 में 10 जुलाई को लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उन्हें फोन पर धमकी दी थी. इसका टेप सार्वजनिक होते ही कुछ ही घंटों के भीतर उन पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराकर उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. पुलिस ने इस मामले में पहली बार अक्टूबर 2015 में अंतिम रिपोर्ट लगाई थी, लेकिन कोर्ट के आदेश पर दोबारा जांच में यूपी पुलिस ने मुलायम सिंह यादव को फिर से क्लीन चिट दे दी.

आय से अधिक संपत्ति की भी जांच का किया सामना
उत्तर प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई (ईओडब्ल्यू) ने अमिताभ ठाकुर पर आय से अधिक संपत्ति के मामले की भी जांच की थी. बाद में उनको आरोपों से बरी कर दिया गया था. विवेचना में उन्हें आय से अधिक संपत्ति का दोषी नहीं पाया गया.

योगी राज में भी रिटायर्ड कर दिए गए अमिताभ
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राज्य के 24 से अधिक आईपीएस अधिकारियों को प्रमोशन दिया गया. वर्ष 1996 बैच के कुछ आईपीएस अफसर जो आईजी रहे उन्हें एडीजी बना दिया गया, लेकिन वर्ष 1992 बैच के आईपीएस अमिताभ ठाकुर को प्रमोशन नहीं दिया. वर्ष 2021 में अमिताभ को योगी सरकार ने जबरन निलंबित कर दिया.

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रिटायर्ड IAS सूर्य प्रताप सिंह
यूपी काडर 1982 बैच के IAS सूर्य प्रताप सिंह ने रिटायरमेंट से छह माह पूर्व वर्ष 2015 में BRS ले लिया था. बुलंदशहर के रहने वाले सूर्य प्रताप रिटायर्ड होने के बाद भी लगातार केंद्र और यूपी सरकार की नीतियों पर हमला बोलते रहते हैं. उनके ट्वीट के आधार पर यूपी सरकार ने 12 माह में छह FIR भी दर्ज कर चुकी है. हालांकि, FIR के बाद भी सूर्य प्रताप सिंह अपनी आवाज बुलंद किए हुए हैं. यूपी की सपा सरकार की नीतियों की लगातार आलोचना कर सुर्खियों में आए. हालांकि, उस समय सूर्य प्रताप भारतीय जनता पार्टी की तारीफ करते नहीं थकते थे, लेकिन भाजपा सत्ता में आई तो अचानक सूर्य प्रताप ने योगी सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया.

IAS में सेलेक्ट होने से पहले भारतीय पुलिस सेवा के रहे अधिकारी
आईएएस में शामिल होने से पहले सूर्य प्रताप सिंह ने भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी के रूप में कार्य किया. सेवा में रहने के दौरान वे एक लोकप्रिय अधिकारी थे. लोगों ने कथित तौर पर जिलों से उनके तबादले के दौरान विरोध प्रदर्शन किया था और यहां तक कि कुछ मामलों में सड़कें तक बाधित कर दी थीं. एक सूत्र के मुताबिक, नैनीताल से उनका तबादला होने के बाद वहां तो एक हफ्ते तक बंद रखा गया था.

अखिलेश सरकार में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने पर दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
सूर्य प्रताप सिंह के एक करीबी सूत्र ने बताया कि उन्होंने समाजवादी पार्टी की सरकार के समय जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब भी सरकार पर सवाल उठाए थे. उन्होंने 2017 में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) में चल रहे घोटाले का मुद्दा विशेष तौर पर उठाया था. पूर्व अधिकारी ने माना कि सत्तारूढ़ सरकार से सवाल करना उनके लिए नया नहीं था, लेकिन यह पहली बार है, जब सरकार ने उनके खिलाफ मामले दर्ज किए.

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पोस्टिंग के दौरान 54 बार ट्रांसफर
पूर्व अधिकारी के मुताबिक, 25 साल के करिअर में उनका 54 बार तबादला हुआ है. उनकी अंतिम पोस्टिंग यूपी सरकार के सार्वजनिक उद्यम विभाग में प्रमुख सचिव और सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो के महानिदेशक के रूप में थी. इसी दौरान सूर्य प्रताप ने अपना दर्द साझा करते हुए फेसबुक पर पोस्ट लिखा था कि ट्रांसफर ही नहीं 5 कालिदास पर मेरे जैसे 'महत्वहीन' विभाग की समीक्षा के बहाने बुलाकर मेरा अपमान भी किया गया. फोन पर तो मुझे गाली-गलोज लगभग रोज ही दी जाती है. नकल रोको अभियान के दौरान एक VIP जनपद तथा एक पूर्वी उ.प्र. के जनपद में मारने-पीटने के उदेश्य से घेरा भी गया था. मेरे घर पर भी लोग भेजे गए. सूर्य प्रताप ने अपने पोस्ट में आशंका जताई थी कि इससे पार्टी कार्यकर्ताओं समेत कुछ लोग 'आकाओं' को खुश करने के लिए उनकी हत्या भी कर सकते हैं.

जून 2020 में दर्ज किया दूसरा मामला
उन्होंने ट्वीट किया था कि एक वरिष्ठ नौकरशाह ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मिलने के बाद एक डिस्ट्रिक्ट मैनेजर को और अधिक कोविड टेस्ट का प्रस्ताव देने के लिए डांटा था. सूर्य प्रताप सिंह ने राज्य में कोविड केस की संख्या कम रखने के लिए कम टेस्ट करने की सरकार की रणनीति पर भी सवाल उठाया था. वहीं, अगले ही महीने यानी जुलाई 2020 में गोरखपुर जिले में बिजली मीटरों के मामले में भ्रष्टाचार को लेकर कथित तौर पर गलत सूचना ट्वीट करने के लिए सेवानिवृत्त अधिकारी के खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

अक्टूबर 2020 में तीसरा मामला दर्ज
कासगंज में हत्या के मामले को लेकर ट्वीट करने के बाद अक्टूबर 2020 में सूर्य प्रताप सिंह के खिलाफ तीसरा मामला दर्ज किया गया. इसमें एक मां और बेटी की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत हो गई थी. हालांकि, पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा था कि यह सामूहिक बलात्कार का मामला है, लेकिन बाद में उन्होंने ट्वीट को हटा दिया.

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पूर्व IAS योगी सरकार के लिए भी बने मुसीबत
पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह पिछले एक साल से ज्यादा समय से लगातार योगी आदित्यनाथ सरकार की आलोचना करते आ रहे हैं. अभी तक उन पर 12 माह में छह मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. दो मुकदमे तो मई 2021 में ही दर्ज किए गए. उनके खिलाफ सबसे ताजा मामला इस हफ्ते के शुरू में दर्ज किया गया था, जब उन्होंने कथित तौर पर कुछ छेड़छाड़ के साथ तैयार एक ऑडियो साझा किया था. इसमें ट्विटर पर दो अज्ञात लोगों को यूपी के मुख्यमंत्री का समर्थन करने के लिए पैसे की मांग करते सुना जा सकता है.

सूर्य प्रताप सिंह ने अपने ट्वीट में ऑडियो को 'योगी का टूलकिट' करार दिया था. इस मामले में कानपुर पुलिस ने अतुल कुशवाहा की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की थी. वहीं, दूसरा मुकदमा उन्नाव में दर्ज किया गया था. इसमें सूर्य प्रताप ने एक समाचार पत्र की गंगा में शवों की उतराते फोटो शेयर की थी. मुकदमे के विवेचक सहित पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने बीते शनिवार को लखनऊ स्थित आवास पर सूर्य प्रताप सिंह से चार घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की गई.

पूर्व DSP शैलेन्द्र सिंह
पंजाब की जेल में बंद उत्तर प्रदेश के माफिया और विधायक मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाने वाले सैयदराजा क्षेत्र के फेसुड़ा गांव निवासी व पूर्व पुलिस उपाधीक्षक शैलेन्द्र सिंह वर्तमान में जैविक खेती कर रहे हैं. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे दादा रामरूप सिंह और पुलिस अफसर पिता स्वर्गीय जगदीश सिंह से बहादुरी विरासत में मिली थी इसलिए माफिया से मोर्चा लेने में तनिक भी नहीं हिचकिचाए. इसके चलते नौकरी छोड़नी पड़ी, फिर भी जीवन में निराशा को हावी नहीं होने दिया. अभी हाल ही में उन्हें अदालत से बड़ी राहत मिली है और उनके खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस लेने के आदेश दिए गए हैं.

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शैलेन्द्र सिंह को क्यों छोड़नी पड़ी थी नौकरी
शैलेन्द्रसिंह ने लाइट मशीन गन की रिकवरी की थी. ये पूरा काम सरकार के आदेश पर हुआ था. इस रिकवरी के बाद सभी ने उन्हें बधाई दी, लेकिन किसी को यह मालूम नहीं था कि इसमें पोटा लगा हुआ है. थोड़ी देर बाद शासन को जब इसकी खबर लगी, तब इस मामले में मुख्तार दोषी नजर आ रहे थे. मुख्तार के दबाव से उन्हें इस केस को वापस लेने को कहा गया. शैलेन्द्र सिंह ने इस केस में एफआईआर होने की बात कहकर इसे वापस लेने से मना कर दिया.

उन्हें इन्वेस्टिगेशन के दौरान मुख्तार अंसारी का नाम लेने से भी मना कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने अपने बयान से पलटने से इनकार कर दिया. मुख्तार अंसारी का एलएमजी में सीधा कनेक्शन था, लेकिन सरकार ने शैलेन्द्र सिंह के इस्तीफा देने के बाद मुख्तार पर लगा पोटा हटा दिया. फिर मुख्तार ने कहा कि हमने तो उसे पकड़वाने के लिए फोन पर बात की, जिससे मुख्तार बच गए.

10 दिनों में दो इस्तीफे
उसके बाद उन्हें लखनऊ बुला लिया गया और उन्हें तमाम तरीकों से प्रताड़ित करने लगे. स्थिति गंभीर होने के बाद उन्होंने 11 फरवरी को अपना पहला इस्तीफा दे दिया. इसमें उन्होंने लिखा कि राजनीति का इतना प्राधिकरण बढ़ गया है कि अपराधी बैठकर यह निर्णय ले रहे हैं कि हमें किस तरह से काम करना चाहिए. इससे अच्छा है कि हम अपनी नौकरी छोड़ दें. यह लिखकर शैलेन्द्र ने अपना इस्तीफा भेजा था. मुलायम सिंह की सरकार के दौरान उन्होंने दूसरा इस्तीफा यह कहते हुए दिया कि मुझे इस प्रकार से आप लोगों के साथ काम नहीं करना है.

17 साल की कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी
शैलेन्द्र सिंह बताते हैं कि मुलायम सिंह इस मामले से बहुत नाराज हुए थे, जिससे रातो-रात बनारस जोन के आईजी, डीआईजी, एसएसपी का तबादला करा दिया गया. आगे वो बताते हैं कि इस केस को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए यह तबादले अचानक से कराए गए थे. इतना ही नहीं कई मामलों को लेकर शैलेंद्र को बाद में भी जेल भेजा गया था. शैलेन्द्र सिंह ने वर्तमान सरकार से अपील की थी कि इस मामले में ऐसे अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए. इस केस में उनका 17 साल का कीमती समय बर्बाद हुआ, जिससे उनके पूरे परिवार को बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अब योगी सरकार और कोर्ट के फैसले के बाद राहत मिली है.

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राजनीति में आजमाया दांव
1991 बैच के पीपीएस रहे शैलेन्द्र सिंह ने मुख्तार प्रकरण के बाद 2004 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद राजनीति में दाव आजमाया. 2004 में वाराणसी से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़े. इसके बाद 2006 में कांग्रेस में शामिल हुए. इसके बाद उन्हें यूपी आरटीआई का प्रभारी बनाया गया. 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चंदौली से लोकसभा का चुनाव लड़े. हालांकि, चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे. 2012 में सैयदराजा विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़े. इस बार भी पराजय हाथ लगी. 2014 में नरेंद्र मोदी के संपर्क में आए और भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य बने. उन्हें लोकसभा चुनाव में वार रूम की जिम्मेदारी मिली.

किसानों की आय बढ़ाने की सोच
नौकरी छोड़ने के बाद शैलेन्द्र सिंह ने बेसहारा पशुओं को सहारा देने का काम किया. वे सड़कों पर और किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले बेजुबानों को अपनी गोशाला में आश्रय देते हैं. कृषि का आधार रहे बैलों के जरिए बिजली भी पैदा कर रहे हैं. अभी छोटे स्तर पर यह काम चल रहा है, लेकिन भविष्य में एक मेगावाट बिजली तैयार करने की उनकी योजना है. बैलों को निर्धारित गोला में घुमाकर अल्टीनेटर के जरिए बिजली बनाई जा रही है. वे लखनऊ स्थित अपने आवास पर रहकर धान, गेहूं और सब्जी की जैविक विधि से खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि जैविक उत्पाद से उनको बेहतर कीमत मिल रही है. भविष्य में किसानों की कृषि लागत कम करने और आमदनी दोगुनी करने के लिए जैविक विधि को बढ़ावा देने की योजना बनाई है.

सीएम आवास से घूसखोर बीएसए को दबोचा
पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. 2003 में हजरतगंज सीओ के पद पर तैनाती के दौरान उन्हें सूचना मिली कि बस्ती के बीएसए घूस का पैसा लेकर लखनऊ जा रहे हैं. इस पर उन्होंने बीएसए का पीछा किया. पुलिस को देखकर बीएसए भागकर मुख्यमंत्री आवास में घुस गए, लेकिन डीएसपी ने सीएम आवास से गिरफ्तार किया. इसके बाद शैलेन्द्र का तबादला कर दिया गया.

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