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यूपी विधानसभा चुनाव : क्या बाकी बचे दो चरणों में बीजेपी करेगी नुकसान की भरपाई ?

उत्तरप्रदेश में पांच चरण के चुनाव हो चुके हैं. दो चरण की वोटिंग बाकी है. राजनीतिक विश्लेषकों को उम्मीद है कि इन दो चरणों में बीजेपी पिछले पांच दौर में हुए नुकसान की भरपाई कर सकती है. क्या रहा पांचवें फेज चुनाव का समीकरण, बता रहे हैं श्रीनंद झा.

UP assembly elections
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Published : Mar 1, 2022, 3:32 PM IST

नई दिल्ली : उत्तरप्रदेश में पांचवे चरण के तहत 12 जिलों की 61 सीटों के लिए रविवार को वोटिंग हुई. इससे पहले इन इलाकों में गाय एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरी. यह मुद्दा क्यों बनी, इसके कई कारण हैं. छठे और सातवें फेज में पूर्वांचल के जिन इलाकों में मतदान होना है, वह देश के सबसे अधिक गरीबी से त्रस्त और पिछड़े क्षेत्रों में से एक है. इन इलाकों में प्रति व्यक्ति जमीन सिर्फ 600 वर्ग मीटर है जबकि देश का औसत प्रति व्यक्ति 1.1 हेक्टेयर है. पांचवें, छठे और सातवें चरण में मतदाताओं की जमीन भी छोटी और बिखरी हुई है, इसलिए आवारा घूमते गोवंश चिंता के गंभीर विषय बन गए हैं.

पांचवें चरण के लिए अयोध्या, अमेठी, चित्रकूट, रायबरेली और श्रावस्ती समेत 12 जिलों में 55 फीसदी वोटिंग हुई. इस गरीब इलाके में लाभार्थी फैक्टर ( beneficiary factor) का असर दिखने की संभावना थी. माना गया था कि जिन गरीबों के खाते में सीधी रकम डाली गई, वे चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लेंगे. लेकिन सवाल यह है कि क्या पांचवें चरण से भाजपा पहले के चार चरणों के कथित नुकसान की भरपाई कर पाएगी?

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने गठबंधन सहयोगी अपना दल के साथ क्षेत्र की 61 सीटों में से 50 पर जीत हासिल की थी, जबकि समाजवादी पार्टी का सफाया हो गया था और बहुजन समाज पार्टी ने केवल 3 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस क्षेत्र में सपा के परंपरागत वोटर यादव और मुस्लिम की तादाद अपेक्षाकृत कम है. इन इलाकों में दूसरी ओबीसी जाति कुर्मी और कोयरी की बहुसंख्यक हैं. दलित बिरादरी का वोटिंग में 22.5 फीसदी हिस्सा रहा है. दलित समुदाय जाटव, पासी, धोबी और कोरी सहित अन्य पिछड़े समुदायों के बीच बंटा हुआ है. जाटव बीएसपी प्रमुख मायावती के परंपरागत वोट बैंक हैं.

पिछले चुनाव में बीजेपी गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को एकसाथ लाने में कामयाब हुई थी. मगर माना जा रहा है कि इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजपूत समुदाय को बढ़ावा देने के कारण पासी और मौर्य मतदाताओं का एक वर्ग भाजपा से दूर चला गया है, जबकि कुर्मियों सहित ओबीसी जातियों का भी भगवा पार्टी से मोहभंग हो गया है.

इसके अलावा पिछड़े और ओबीसी मतदाताओं का एक वर्ग के मोहभंग होने के कई कारण हैं. इनकी शिकायत है कि केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देकर आरक्षण नीति को "कमजोर" किया है. ग्राउंड रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि ओबीसी और दलितों का एक बड़ा वर्ग बीजेपी से दूर हो गए हैं क्योंकि यूपी सरकार की ठोको नीति का खमियाजा इसी समुदाय को सबसे ज्यादा भुगतना पड़ा.

अभी उत्तरप्रदेश में दो चरणों का मतदान होना बाकी है. संकेत मिल रहे हैं कि इस दो फेज में भगवा पार्टी की स्थिति सुधरेगी. पिछले दिनों कुछ दिलचस्प घटनाएं हुईं, गोरखपुर में लगाए गए पार्टी के पोस्टर और बैनर से योगी आदित्यनाथ ही गायब हो गए. गौरतलब है कि गोरखपुर में लगे पार्टी के होर्डिंग्स और पोस्टरों में मोदी के साथ मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी नजर आने लगी हैं. उमा भारती पार्टी का ओबीसी चेहरा रही हैं और मध्य प्रदेश में ओबीसी के साथ-साथ बुंदेलखंड में भी उनके समर्थक हैं. उन्हें पूर्वी यूपी में पेश करना इस बात का संकेत है कि बीजेपी थिंक टैंक को मालूम है कि हिंदुत्व का मुद्दा पहले जैसा प्रभावी नहीं है.

गोरखपुर में छठे चरण में वोटिंग होनी है. इस बीच भाजपा ने अपने नारे में भी बदलाव किया है. पहले नारा था, सोच इमानदार, काम दमदार, अबकी बार योगी सरकार. बदलाव के बाद नारा है कि सोच इमानदार, काम दमदार, अबकी बार बीजेपी सरकार. खास बात यह है कि रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ही नाम पर वोट मांगे थे.

हालिया एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन युद्ध का मुद्दा उठाया. उन्होंने लोगों से पूछा कि क्या- इस अशांत समय में लोग एक मजबूत प्रधान मंत्री नहीं चाहते थे? पीएम मोदी ने अपने रैलियों में नमक का हक भी मांगा. उनका इशारा केंद्र सरकार की ओर से गरीबों को दिए जाने वाले मुफ्त भोजन की ओर था. एक सभा में तो उन्होंने भावनात्मक अपनी कर दी कि 'कुछ लोग उन्हें मरना चाहते थे'.

योगी आदित्यनाथ यकीनन प्रधानमंत्री मोदी के बाद भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं. इसलिए, इस चुनाव के लिए पार्टी का प्रचार उनके नेतृत्व में लड़ा गया है. प्रधानमंत्री ने 'योगी है, उपयोगी है' और 'आएगा तो योगी ही' जैसे नारे भी लगाए हैं.

बता दें कि बीजेपी नेतृत्व को कई मौकों पर योगी को डाउनप्ले करती रही है. पिछले महीने राजनीतिक चर्चा योगी के इर्द-गिर्द घूमती रही है. योगी अयोध्या से चुनाव लड़ना चाहते थे और यहां तक कि अयोध्या से चुनाव लड़ने की तैयारी भी की थी, लेकिन इस कदम को अंतिम समय में केंद्रीय पार्टी नेतृत्व ने रोक दिया.

इन सबका नतीजा यह है कि भाजपा की चुनावी मशीनरी इस बार पहले की तरह एकजुट और मजबूत नहीं दिखी. पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी है. 10 मार्च को वोटों की गिनती होने पर भी भाजपा बहुमत के निशान तक पहुंच सकती है, लेकिन पार्टी की ताकत विधानसभा में अपनी पहले जैसे रहने की संभावना नहीं है.

डिस्क्लेमर - यह लेखक के निजी विचार है, ईटीवी भारत इस आलेख में प्रकाशित सामग्री के लिए जिम्मेदार नहीं है.

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