नई दिल्ली : 22वें विधि आयोग (लॉ कमीशन) द्वारा सुझाव मांगे जाने के बाद से समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी) का विषय एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. कमीशन ने आम लोगों और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों से इस विषय पर अपनी राय देने को कहा है. उन्हें 30 दिनों का समय दिया गया है. यूसीसी- यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है- भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए समान कानून का होना, फिर चाहे उनका धर्म या उनकी जाति कुछ भी क्यों न हो.
समान नागरिक संहिता अगर लागू हो जाती है, तो धर्म के आधार पर निजी कानूनों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. फिर शादी हो या तलाक या फिर विरासत विवाद, सबके लिए कानून एक होगा. अभी तलाक, शादी और संपत्ति के वारिस को लेकर अलग-अलग कानून हैं. संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख किया गया है. यह संविधान के नीति निर्देशक सिद्धान्तों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी) के तहत उल्लिखित है. संविधान निर्माताओं ने यह उम्मीद की थी कि इस विषय पर जब पूरा देश एकमत हो जाएगा, फिर इसे लागू किया जाएगा.
अभी शादी, तलाक और जमीन का बंटवारा या फिर वारिस को लेकर अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग कानून हैं. इस वजह से कोर्ट पर बोझ बढ़ता जा रहा है. अलग-अलग धर्मों में इन मामलों को लेकर अलग-अलग प्रावधान हैं, इसलिए इनसे उठे हुए विवाद सालों तक लटके रहते हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड इस समस्या का निदान कर देगा. इससे देश की एकता भी मजबूत होगी. हर व्यक्ति चाहे उसका धर्म जो भी हो, एक ही कानून से निर्देशित होगा. आम लोगों को कानूनों के मकड़जाल से मुक्ति मिल पाएगी. जटिल मुद्दे सरल हो जाएंगे. क्योंकि निजी कानून खत्म हो जाएंगे, इसलिए किसी के साथ भी कोई पक्षपात नहीं हो पाएगा.
कानूनी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द का प्रयोग किया गया है, इसका मतलब है कि स्टेट किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करेगा और सभी धर्मों के साथ बराबर का भाव रखा जाएगा. यह तभी संभव होगा, जब यूसीसी की व्यवस्था अपनाई जाए.
विरोधियों का कहना है कि क्योंकि देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं, लिहाजा उनका ही कानून पूरे देश पर होगा. यूसीसी उसका एक जरिया है. उनकी राय में यूसीसी संविधान प्रदत्त मूल अधिकार के भी खिलाफ है. उनके अनुसार अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 25, दोनों का उल्लंघन होगा. अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष समानता की अवधारणा है. अनुच्छेद 25 में अपने धर्म को मानने या फिर प्रचार करने की स्वतंत्रता है.
वैसे, यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि देश की अलग-अलग अदालतों ने कई ऐसे फैसले दिए हैं, जिस दौरान कोर्ट ने इसकी ओर इशारा किया है. खुद केंद्र सरकार भी कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट में इसके पक्ष में अपनी राय रख चुकी है.
उत्तराखंड ने इस बाबत एक पहल की है. उत्तराखंड सरकार ने जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है. उत्तराखंड में इसे कैसे लागू किया जाए, कमेटी इस पर अपनी रिपोर्ट देगी. इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार आगे बढ़ सकती है. कमेटी ने स्टेक होलर्डरों से राय मांगी थी. यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. अब इसे संकलित किया जा रहा है. भाजपा शासित मध्य प्रदेश और गुजरात ने भी इसे लागू करने का वादा किया है.