नई दिल्ली : गुजरात के सूरत की एक स्थानीय अदालत द्वारा साल 2019 के आपराधिक मानहानि के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद देश के प्रमुख विपक्षी नेता राहुल गांधी संसद की अपनी सदस्यता गंवा चुके हैं. संसद के सबसे प्रमुख यानी बजट सत्र के बीच हुआ यह घटनाक्रम ना सिर्फ भारतीय राजनीति में छाया हुआ है बल्कि विदेश के अखबारों की सुर्खियां भी बना हुआ है. इसी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर देश के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और 'सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी' (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम के सह-निदेशक प्रोफेसर सुहास पलशीकर से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब :-
सवाल: राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता समाप्त होने को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी?
जवाब:लोकसभा सचिवालय ने बहुत जल्दबाजी में कार्रवाई की. लेकिन तकनीकी तौर पर देखा जाए तो यह नियमों के दायरे में है. नियमों के दायरे में रहते हुए सरकार ने राहुल गांधी को किनारे लगाने की कोशिश की है. मेरी पहली प्रतिक्रिया यही है.
सवाल: सभी विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है और आरोप लगाया है कि वह राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से काम कर रही है. आप क्या कहेंगे?
जवाब: 'भारत जोड़ा यात्रा' की अपेक्षाकृत सफलता के बाद से ही सरकार राहुल गांधी को किनारे लगाने के रास्ते खोज रही थी. क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहे थे और सरकार को विभिन्न मुद्दों व उसकी असफलताओं पर घेर रहे थे. इसके लिए सरकार की तरफ से राहुल गांधी के लंदन में लोकतंत्र के संबंध में दिए गए बयान को मुद्दा बनाया गया. इसका एकमात्र उद्देश्य अडाणी से जुड़े विवाद पर चर्चा को टालना था.
कोशिश यह भी होती रही कि राहुल गांधी की छवि ऐसी बना दी जाए कि वह किसी को नेता के रूप में स्वीकार्य ना हो. सभी प्रकार के नियमों का हवाला देकर कोशिश की गई कि राहुल गांधी बोल ना सकें और उन्हें दोषी ठहराया जा सके.
सवाल: ऐसा ही है तो लोकसभा में राहुल गांधी की अनुपस्थिति से भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार को क्या फायदा होगा?
जवाब:यह निर्भर करता है राहुल गांधी पर कि वह कैसे आगे बढ़ते हैं और क्या रुख अख्तियार करते हैं. वह कहते है कि ठीक है...आपने (सरकार) जो करना था वह किया लेकिन मुख्य सवाल यह है कि आपका अडाणी से क्या रिश्ता है? क्यों सरकार इस मुद्दे से भाग रही है...राहुल कैसे आगे बढ़ते हैं यह उन पर निर्भर करेगा. यह उनकी नेतृत्व क्षमता की भी परीक्षा है.
सवाल: इस घटनाक्रम का भारतीय राजनीति पर क्या असर देखते हैं आप?
जवाब: इससे दो चीजें होंगी. पहला, सभी गैर-भाजपा दल एक साथ आएंगे जो अभी तक साथ नहीं आ रहे थे. राहुल की सदस्यता खत्म होने के बाद नेताओं की जो प्रतिक्रिया आई है, उससे भी इसके स्पष्ट संकेत मिले हैं. दूसरा, कांग्रेस कैसे इस मुद्दे पर आगे बढ़ती है क्योंकि उसके सबसे बड़े चेहरे को किनारे लगाया गया है. वास्तव में यह कांग्रेस के पुन: उद्भव में मददगार साबित हो सकता है. लेकिन इसका एक असर यह भी हो सकता है कि राहुल गांधी भारतीय राजनीति के केंद्र में आ जाएं और जो मुद्दा उन्होंने उठाया है... 'क्रोनी कैपिटलिज्म' (करीबियों को फायदा पहुंचाने वाली पूंजीवादी व्यवस्था) खासकर, अडाणी का मुद्दा...वह किनारे लग जाए.
सवाल: इस पूरे घटनाक्रम को आप कांग्रेस के लिए आपदा या अवसर के रूप में देखते हैं?
जवाब: मैं इसे अवसर के रूप में देखता हूं. सवाल कांग्रेस के राजनीतिक कौशल का है. अगर वह कौशल दिखाती है तो इसे अवसर के रूप में बदला जा सकता है. यह सब कांग्रेस पर निर्भर है. कांग्रेस क्या करेगी या नहीं यह मैं नहीं बता सकता लेकिन उसे जनता के बीच जाना चाहिए. अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को एकजुट करना चाहिए. यह सिर्फ दिल्ली में बैठकर संवाददाता सम्मेलन करने और ट्वीट करने से नहीं होगा और ना ही विपक्षी नेताओं के साथ बैठक करने से होगा. यह पर्याप्त नहीं होगा. जमीनी स्तर पर स्पष्ट संदेश देना होगा. कार्यकर्ताओं को संदेश देना होगा...कि यह एक अवसर है और हमें इसका उपयोग करना चाहिए. एक माहौल बनाना चाहिए. नहीं तो कोई मतलब नहीं है...इतिहास हमेशा अपने आप को दोहराता है, यह नहीं भूलना चाहिए.
(पीटीआई-भाषा)