पटना:नेपाल में भूकंपने भारी तबाही मचाई है. इसका असर बिहार पर भी पड़ा है. राजधानी पटना, मुंगेर, मोतिहारी, नवादा, बक्सर, भोजपुर, जहानाबाद, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर और छपरा में लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए हैं. हालांकि बिहार में जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन तेज झटके ने बिहार वासियों को 1934 के 15 जनवरी की याद ताजा करा दी, जब एक झटके में हजारों लोगों की जान चली गई थी. सैकड़ों मकान जमींदोज हो गए थे.
1934 में बिहार में भूकंप ने मचाई तबाही: 15 जनवरी 1934 को आया भूकंप सबसे भयावह था. जान माल की भारी क्षति हुई थी. 1934 के खौफनाक मंजर को याद कर लोग आज भी सिहर जाते हैं. 1934 में रिक्टर स्केल पर तीव्रता 8.4 थी. उस दिन दोपहर 2:13 पर भूकंप के झटके आए थे और जोर-जोर की गड़गड़ाहट लोगों की कानों में सुनाई दे रही थी. भूकंप के झटके से पूरा बिहार दहल गया था.
भूकंप में 7253 लोगों की हुई थी मौत:सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1934 के भूकंप में 7253 लोग मौत के मुंह में समा गए थे. भूकंप का जहां सबसे ज्यादा प्रभाव था, मुंगेर, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और उत्तर बिहार के कई जिले शामिल हैं. 1934 के भूकंप के कारण राज्य को जो तबाही झेलनी पड़ी थी, उसे आज भी भूलना मुश्किल है. सबसे ज्यादा क्षति दरभंगा जिले में हुई थी, जहां 1839 लोगों की मौत दर्ज की गई थी. मुजफ्फरपुर में 1583 लोग मौत के मुंह में समा गए थे तो मुंगेर में मरने वालों की संख्या 1260 थी. कुल मिलाकर 72253 लोगों की मौत दर्ज की गई थी.
बड़े-बड़े मकान जमींदोज हो गए थे: वहीं, उत्तर बिहार का राजनगर तो खंडहर में तब्दील हो गया था. राजनगर का रामेश्वर विलास पैलेस पूरी तरह जमींदोज हो गया था. 1934 का भूकंप इतना भयानक था कि जमीन 6 से 12 फुट तक लहर मार रही थी. 27 फीट से लेकर 50 फीट गहराई की दरारें पड़ गईं थीं. नदियों के पाट सिकुड़ गए थे, जिस वजह से मिट्टी नदी के बीच में आ गई थी और पीने के पानी तक गायब हो गए थे.
गांधी जी और राजेंद्र बाबू मदद के लिए आए सामने: मुंगेर शहर पर भूकंप का व्यापक प्रभाव पड़ा था और मानो पूरा मुंगेर शहर मलबे में तब्दील हो गया था. उन दिनों मलबे को हटाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, और सरोजिनी नायडू जैसे महान शख्सियतों ने कुदाल और फावड़ा उठा लिए थे. मुंगेर जिले का जमालपुर रेलवे स्टेशन पूरी तरह से तबाह हो गया था.