हैदराबाद : जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया की जैव विविधता खतरे में आ गई है. ताजा अध्ययन के अनुसार वर्ष 2025 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण होने जा रहे आर्थिक नुकसान में से 5.4 ट्रिलियन डॉलर के लिये जीवाश्म ईंधन के 21 प्रमुख उत्पादक जिम्मेदार होंगे. प्रतिवर्ष के हिसाब से देखें तो यह धनराशि औसतन 209 बिलियन डॉलर होगी. मार्को ग्रासो (मिलान-बिकोका विश्वविद्यालय) और सीएआई के रिचर्ड हीडे के एक ताजा अध्ययन में यह बात कही गयी है. इसे वन अर्थ : टाइम टू पे द पाइपर नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.
जीवाश्म ईंधन उत्पादक मुख्य कंपनियां अध्ययन जलवायु परिवर्तन जनित आपदाओं के पीड़ित लोगों को क्षतिपूर्ति देने के लिये उन कंपनियों की जिम्मेदारी तय करने के लिये पुख्ता सुबूत सामने रखता है जो जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपात स्थितियों के लिये सबसे ज्यादा दोषी हैं. यह पहला अध्ययन है जो सऊदी अरामको, एक्जोनमोबिल, शेल, बीपी, शेवरॉन और जीवाश्म ईंधन के अन्य प्रमुख उत्पादकों की वजह से जलवायु परिवर्तन को हो रही क्षति का ‘प्राइस टैग’ पेश करता है.
टॉप 21 जीवाश्म ईंधन उत्पादक कंपनियां वैज्ञानिक साहित्य में, जलवायु से जुड़े आंदोलनों में और नीति सम्बन्धी चर्चाओं में अक्सर यह सवाल उठता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई किसे करनी चाहिये. खासतौर पर लॉस एण्ड डैमेज तंत्र के लिहाज से. यह अध्ययन तेल, गैस और कोयला उत्पादकों की इस क्षतिपूर्ति के प्रति नैतिक जिम्मेदारी को समझने की जरूरत की तरफ इशारा करता है. साथ ही जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने वाली शीर्ष कंपनियों के लिये वर्ष 2025 से 2050 के बीच सालाना भुगतान की राशि को पहली बार निर्धारित किया है.
यह अध्ययन कार्बन मेजर्स डेटाबेस पर आधारित है. इस डेटाबेस में सबसे बड़े कार्बन प्रदूषण करने वालों द्वारा किये जाने वाले उत्सर्जन का लेखा-जोखा रखा जाता है. यह अध्ययन वर्ष 2025 से 2050 के बीच दुनिया की शीर्ष 21 जीवाश्म ईंधन उत्पादक कंपनियों द्वारा उनकी गतिविधियों तथा वर्ष 1988 से 2022 के बीच उनके उत्पादों द्वारा होने वाले उत्सर्जन के कारण उत्पन्नचरम मौसमी स्थितियों से होने वाले तथा जलवायु परिवर्तन संबंधी अन्य अनुमानित नुकसान की भरपाई की सालाना मात्रा का आकलन करता है. दुनिया के 738 जलवायु अर्थशास्त्रियों द्वारा किए गए एक सर्वे के आकलन के मुताबिक वर्ष 2025 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन की वजह से वैश्विक स्तर पर 99 ट्रिलियन डॉलर का कुल नुकसान होने का अनुमान है.
अगर गैर जीवाश्म ईंधन वाले स्रोत के चलते उत्पन्न होने वाली वार्मिंग को अलग कर दें तो वर्ष 2025 से 2050 के बीच जीवाश्म ईंधन से जुड़े उत्सर्जन के कारण 69.6 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है. यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान के एक तिहाई हिस्से को सीधे तौर पर वैश्विक जीवाश्म ईंधन उद्योग के साथ जोड़ता है जब कि सरकार और उपभोक्ताओं पर एक तिहाई-एक तिहाई का जिम्मा डालता है.
इस तरह वैश्विक जीवाश्म ईंधन उद्योग को वर्ष 2025 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाले प्रभाव के परिणाम स्वरूप जीडीपी को होने वाले अनुमानित नुकसान के 23.2 ट्रिलियन डॉलर के बराबर के लिए जिम्मेदार पाया गया है. प्रतिवर्ष देखें तो यह आंकड़ा 893 बिलियन है. एकल कंपनियों की जिम्मेदारी की गणना करने के लिए अध्ययन के लेखकों ने वर्ष 1988 (जब आईपीसीसी का गठन हुआ) सेलेकर अब तक उनके द्वारा किए गए कुल उत्सर्जन का संदर्भ लिया है.
इसमें दलील दी गई है कि 'वर्ष 1988 से कार्बन उत्सर्जनके परिणामों के बारे में वैज्ञानिक अनिश्चितता के दावे स्थिर नहीं हैं.' अब तक महसूस की गई कुल वार्मिंग का करीब आधा हिस्सा 1988 से उत्पन्न हुआ है और आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाले प्रभावों का एक बड़ा हिस्सा वर्ष 1980 के दशक के अंत में हुए उत्सर्जन से संचालित होगा.
वर्ष 1988 से 2022 के बीच हुए कुल उत्सर्जन में इन 21 सबसे बड़ी तेल, गैस और कोयला उत्पादक कंपनियों की हिस्सेदारी के आधार पर देखें तो वर्ष 2025 से 2050 के बीच ये कंपनियां जीडीपी को होने वाले 5444 बिलियन डॉलर या प्रतिवर्ष 209 बिलियन डॉलर के नुकसान के लिए जिम्मेदार होंगी. सऊदी अरामको ने वर्ष 1988 से 2022 के बीच प्रत्यक्ष और उत्पाद संबंधी स्रोतों से अब तक सबसे ज्यादा मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन किया है और इसे जीडीपी को होने वाले कुल नुकसान में से सालाना 43 बिलियन डॉलर के लिए जिम्मेदार माना गया है. यह एक मोटी धनराशि है लेकिन यह इस कंपनी द्वारा वर्ष 2022 में हासिल किए गए 604 बिलियन डॉलर के राजस्व और 161 बिलियन डॉलर के मुनाफे से काफी कम है.
एग्जोन, जो कि निवेशकों के स्वामित्व वाली एक अग्रणी कंपनी है, को जीडीपी को होने वाले कुल नुकसान में से प्रतिवर्ष 18 बिलियन डॉलर के लिए उत्तरदायी माना गया है लेकिन यह भी वर्ष 2022 में उसके द्वारा हासिल किए गए 399 बिलियन डॉलर केराजस्व और 56 बिलियन डॉलर के मुनाफे से काफी कम है. अध्ययन के लेखकों ने निम्न आय वाले देशों की चार कंपनियों को आर्थिक नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी के दायरे से बाहर रखा है. इसके अलावा मध्यम आय वाले छह देशों की कंपनियों पर निकल रहे कुल दायित्व की मात्रा को आधा कर दिया है.
अध्ययन में शीर्ष 21 जीवाश्म ईंधन उत्पादक कंपनियों के लिए एक प्रोत्साहन भी रखा गया है. अध्ययन के लेखकों ने यह प्रस्ताव किया है कि अगर वे प्रदूषणकारी ईंधन का उत्पादन तेजी से रोक दें या अपने प्रमाणित नेट जीरो लक्ष्यों को जल्द से जल्द हासिल कर लें तो उन्हें क्षतिपूर्ति वसूली में रियायत दी जा सकती है. मिलान बिकॉका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस अध्ययन के मुख्य लेखक मार्को ग्रासो ने कहा, 'क्षतिपूर्ति की मात्रा तय करने और जीवाश्म ईंधन उत्पादक प्रमुख कंपनियों की जिम्मेदारी निर्धारित करने संबंधी प्रस्तावित कार्य योजना दरअसल एक नैतिक सिद्धांत पर आधारित है और यह जीवाश्म ईंधन उद्योग द्वारा जलवायु परिवर्तन जनित आपदाओं के पीड़ितों के प्रति उनके वित्तीय कर्तव्य पर चर्चा के लिए एक शुरुआती बिंदु उपलब्ध कराती है. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस अध्ययन से भविष्य में जीवाश्म ईंधन उत्पादक कंपनियों द्वारा पीड़ित पक्षों को सीधे तौर परक्षतिपूर्ति करने के भविष्य के प्रयासों के लिए एक रास्ता मिलेगा.
क्लाइमेट अकाउंटेबिलिटी इंस्टीट्यूट के सह संस्थापक और निदेशक तथा इस अध्ययन के सह लेखक रिखार्ड ही ने कहा,- 'यह जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले दीर्घकालिक नुकसान, प्रदूषणकारी तत्वों के न्यूनीकरण और अनुकूलन की लागतोंका सिर्फ शुरुआती हिस्सा है, जहां तक वर्ष 2050 तक जीडीपी को होने वाले कुल नुकसान के हमारे पैमाने का सवाल है तो इसमें नष्ट होने वाली पारिस्थितिकी सेवाओं, विलुप्तियों, मानव जीवन और आजीविका को होने वाले नुकसान तथा जीडीपी में नहीं गिने जाने वाले अन्य कल्याणकारी घटकों तथा संभावित नुकसान के मूल्य को शामिल नहीं किया गया है.'
क्लाइमेट अकाउंटेबिलिटी इंस्टीट्यूट (सीएआई)
सीएआई मानव की गतिविधियों से उत्पन्न में जलवायु परिवर्तन जलवायु प्रणाली में किये जाने वाले खतरनाक हस्तक्षेप और वातावरणीय कार्बन डाइऑक्साइड में जीवाश्म ईंधन उत्पादकों केजरिए पैदा होने वाले कार्बन की मात्रा को लेकर शोध तथा सिखाने के कार्य करता है. इसमें जलवायु परिवर्तन का विज्ञान एकस्थिर जलवायु व्यवस्था से जुड़े नागरिक तथा मानवाधिकार शामिल हैं.
ये भी पढ़ें-जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर में प्रजातियों को खतरा : अध्ययन