नई दिल्ली :रिपब्लिक डे एक दिन बाद यानी 27 जनवरी को पीएम मोदी सेंट्रल एशिया के पांच देशों के राष्ट्रपतियों के साथ एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेंगे. माना जा रहा है कि इस सम्मेलन से भारत का संबंध इन देशों के साथ मजबूत होगा.
हाल के वर्षों में, भारत और सेंट्रल एशिया के देशों के बीच संबंधों में कई बदलाव हुए हैं. पश्चिम एशिया और यूरेशिया में हो रहे बदलावों के कारण यह जरूरी है कि भारत के संबंध सोवियत संघ के इन पांच पूर्व देशों से बेहतर हों. रूस और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू के डॉ राजन कुमार का कहना है कि सोवियत संघ के पतन के बाद इन मध्य एशिया में कई देशों का जन्म हुआ. विदेशी इन्वेस्टर्स इन नए नवेले देशों में निवेश करने को तैयार नहीं थे. इसके अलावा रूस ने भी अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को पूर्व सोवियत संघ से निकले देशों में एंट्री नहीं करने दी. हालांकि भारत ने पिछले 30 वर्षों में अपनी संसाधन क्षमता का उपयोग करने के लिए पूर्व सोवियत संघ के देशों (सीएएस) के साथ कारोबारी रिश्ते बनाने की कोशिश की है. मगर इस दौरान भारत और सीएएस के बीच का व्यापार लगभग 2 अरब डॉलर पर अटका पड़ा है, जबकि चीन ने इन देशों में अपना प्रभाव काफी बढ़ा लिया है. बीआरआई परियोजना शुरू करने के बाद पूर्व सोवियत देशों के साथ चीन का व्यापार 100 अरब डॉलर से अधिक है. डॉ राजन कहते हैं कि चीन अपनी अग्रेसिव पॉलिसी के तहत पूर्व सोवियत संघ के उन देशों को लोन देता है, जो रूस के रणनीतिक और मजबूत प्रभाव की उपेक्षा करता है. आने वाले 10 से 15 वर्षों में चीन इस पॉलिसी को बनाए रखेगा. पिछले तीस साल में चीन इन देशों में बड़ा खिलाड़ी के तौर पर उभरा है. 2013 में बीआरआई प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से चीन ने सोवियत रिपब्लिक के देशों में भारी निवेश किया है.
भारत के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि भारत का इन देशों से (CAS) से सीधा संपर्क नहीं है. अफगानिस्तान में तालिबान के आने से पहले भारत ने इस कमी को दूर करने के लिए चाबहार और इंटरनेशनल साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने की तैयारी की थी. अगर प्लानिंग सफल रहती तो भारत ईरान, अफगानिस्तान, ईरान में चाबहार बंदरगाह और कॉरिडोर के माध्यम से भी सेंट्रल एशिया के देशों से जुड़ जाता. लेकिन अब अफगानिस्तान में तालिबान के अचानक कब्जे के बाद चाबहार का ज़ाहेदान को जोड़ने वाला हिस्सा रुक गया है. डॉ. राजन कहते हैं कि रेलवे की प्लानिंग भी अधर में लटकी है क्योंकि अब अफगानिस्तान से जुड़ने का कोई मतलब नहीं है.