नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट में बृहस्पतिवार को भी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि साधन साध्य के अनुरूप होने चाहिए. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले का बचाव करते हुए दलीलें शुरू कीं.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे एजी ने केंद्र की ओर से यह कहते हुए अपना बयान शुरू किया कि अक्सर ऐसा होता है कि किसी की जान बचाने के लिए किसी अंग को काट दिया जाता है, लेकिन किसी अंग को बचाने के लिए जान नहीं दी जाती है और वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि संविधान को संरक्षित रखा जाए. प्रक्रियाएं और उचित प्रक्रिया और दूसरी ओर राष्ट्र को खोने का परिदृश्य था.
इस मौके पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'मिस्टर अटॉर्नी जनरल, हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां साध्य साधन को भी उचित ठहरा दे. साधन को साध्य के अनुरूप होना चाहिए. अगस्त 2019 में संविधान से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया और पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द कर दिया गया. एजी ने उत्तर दिया कि हम सभी इसे समझते हैं और यह प्रश्न सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन दोनों में हमारे सामने आता है. एजी ने तर्क दिया कि अक्टूबर 1947 में भारत सरकार के साथ विलय पत्र (आईओए) पर हस्ताक्षर करने के बाद, जम्मू-कश्मीर ने संप्रभुता के सभी निशान खो दिए थे. वेंकटरमणी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर जैसे सीमावर्ती राज्य भारत के क्षेत्रों का एक विशेष वर्ग बनाते हैं और उनके पुनर्गठन पर विशेष विचार की आवश्यकता है.
मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र के वकील को बताया कि सरदार वल्लभाई पटेल की प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के संयोजन से 562 रियासतें भारत संघ में आ गईं, लेकिन जम्मू और कश्मीर ने अनुच्छेद 370 का मार्ग अपनाया. मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर इशारा किया कि याचिकाकर्ताओं के वकील की दलीलों का सार यह है कि उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने बाहरी संप्रभुता छोड़ दी है, और इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन आंतरिक संप्रभुता नहीं है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 को अपनाने से यह संकेत मिलेगा कि बाहरी संप्रभुता तो छोड़ी जा रही थी, लेकिन तत्कालीन महाराजा द्वारा प्रयोग की जाने वाली आंतरिक संप्रभुता भारत को नहीं सौंपी गई थी.