मुबई :देश में रेलवे ड्राइवर, पायलट, सेना जैसी जगहों पर आमतौर पर पुरूषों का ही साम्राज्य रहा है. वहीं एक महिला हैं जिन्होंने सबसे पहले पुरूषों के इस एकाधिकार को तोड़ा और अपनी जगह बनाई. वो महिला हैं एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर (Woman Train Driver) बनकर इतिहास रचने वाली सुरेखा यादव (Surekha Yadav). 52 साल की सुरेखा शंकर यादव लगभग तीन दशक पहले 1988 में भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनीं. सुरेखा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी भी वही ट्रेनिंग हुई है जो अन्य पुरुष ड्राइवरों की होती है. उनका चयन इसलिए हुआ है क्योंकि वो ये काम ठीक से करने में सक्षम हैं.
सुरेखा यादव कहती हैं कि एशिया महाद्वीप की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर होने पर मुझे गर्व है, लेकिन इससे भी बढ़कर बात यह है कि मेरे प्रोत्साहन से, कई युवा लड़कियां ट्रेन में चढ़ने की हिम्मत कर रही हैं. सुरेखा यादव ने मुंबई में मध्य रेलवे की मुंबई उपनगरीय सेवा में पहली महिला ड्राइवर, इंजन ड्राइवर, लोको पायलट, सहायक ड्राइवर और ड्राइवर के रूप में अपना करियर शुरू किया. ईटीवी भारत से बात करते हुए सुरेखा यादव ने कहा कि मुझे पहली बार सेंट्रल रेलवे के मुंबई सेक्शन में ड्राइवर के रूप में चुना गया था. इसके बाद उन्होंने सितंबर 1989 में एक मालगाड़ी के लिए सहायक इंजन चालक के रूप में नौकरी की. मार्च 1993 तक वहां काम किया. मार्च 1993 से अगस्त 1993 तक, इगतपुरी घाट और सितंबर 1993 से अप्रैल 1994 तक लोनावला घाट. घाटों पर ट्रेन चलाना बहुत मुश्किल है. लेकिन सिग्नल, स्टेशन, ट्रेन की गति, जोड़ों को बदलते समय ध्यान रखना होता है. सभी चक्र एक ही समय में सिर में घूमते हैं.
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गाड़ी चलाते समय मुझे डर नहीं लगा. अगस्त 1994 से मार्च 1995 तक मैं मालगाड़ी की चालक थी. मुझे रेलवे की पहली महिला स्पेशल ट्रेन को पहली बार 1988 में चलाने का सम्मान भी मिला था. मेरे काम के लिए, मुझे भारत सरकार द्वारा प्रथम महिला पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. महाराष्ट्र के सतारा की रहने वाली सुरेखा का जन्म 2 सितंबर 1965 को हुआ था. उन्होंने सेंट पॉल कॉन्वेंट हाई स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद एक व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (Vocational Training Course) में प्रवेश लिया. इसके बाद उन्होंने सतारा के पॉलिटेक्निक गवर्नमेंट कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने का फैसला किया. सुरेखा ने अपने एक इंटव्यू में बताया था कि उन्हें बचपन से ही मैथ्स काफी पसंद था. वो आगे की पढ़ाई गणित में ही करना चाहती थी. लोको पायलट बनने से पहले उनका सपना भी देश की लाखों आम लड़कियों की तरह शिक्षक बनना था. वो बीएड की डिग्री हासिल करना चाहती थी. हालांकि, जब उन्हें भारतीय रेलवे में काम करने का मौका मिला, तो उन्होंने पायलट बनने का फैसला किया.
उन्होंने 1986 में कराड में सरकारी पॉलिटेक्निक में प्रवेश किया और इलेक्ट्रिकल अध्ययन में डिग्री प्राप्त की. बचपन से ही टेक्निकल बैकग्राउंड और ट्रेनों के लिए अपने पैशन को देखते हुए सुरेखा ने पायलट के लिए फॉर्म भरने का फैसला लिया. साल 1986 में पायलट के लिए रिटेन परीक्षा दी. जल्द ही कल्याण ट्रेंनिंग स्कूल में सहायक चालक के रूप में नियुक्त हुईं. सुरेखा ने अगले छह महीनें तक इस स्कूल में ट्रेनिंग ली और 1989 में एक नियमित सहायक ड्राइवर बन गई. अब सुरेखा दिन में दस घंटे काम करती हैं, और पूरे एशिया में पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनने के लिए कई मौकों पर उन्हें सम्मानित भी किया गया है. दोपहिया या चार पहिया वाहन चलाने का कोई अनुभव नहीं होने के कारण, वह एक ट्रेन की तरह भारी वाहन की बागडोर संभालकर कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई. वर्ष 2011 का महिला दिवस, सुरेखा यादव को जीवन का सबसे बड़ा उपहार दे गया. इस दिन उन्हें एशिया की पहली महिला ड्राइवर होने का खिताब हासिल हुआ. सुरेखा ने पुणे के डेक्कन क्वीन से सीएसटी रूट पर ड्राइविंग की थी. इसे सबसे खतरनाक रास्ता माना जाता है. इस पटरी पर रेलगाड़ी चलाने के बाद ही सुरेखा को यह सम्मान मिला.