नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता.
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में जिस मराठा आरक्षण को असंवैधानिक बताया है उसके तहत मराठा समुदाय के लोगों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में आरक्षण दिया गया था. यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था. देश की सर्वोच्च अदालन ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है और मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है. साथ ही मराठा आरक्षण लागू करते वक्त 50 फीसदी की सीमा तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था.
क्या है पूरा मामला
नवंबर 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण दिया था. ओबीसी जातियों को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ था जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तक हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा साहनी केस में 1992 के शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा से भी इनकार कर दिया है. गौरतलब है कि साल 1992 में 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा तय की थी.