नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश में वर्ष 2021-22 के लिए अधिसूचित मानदंड के अनुसार नीट-पीजी की काउंसलिंग शुरू करने की अनुमति दे दी है. साथ ही ओबीसी, ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 06 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखने के बाद कहा था कि राष्ट्रहित में NEET PG काउंसलिंग शुरू होनी जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा NEET PG के लिए शिक्षण सत्र 2021-22 में ईडब्ल्यूएस मानदंड पूर्व की अधिसूचना के अनुसार ही होंगे, और आगे के लिए इस पर निर्णय लिया जाएगा.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि उसने OBC की वैधता बरकरार रखी है. EWS में भी वर्तमान क्राइटेरिया बरकरार रखा गया है ताकि इस अकादमिक सत्र के लिए एडमिशंस में दिक्कत न आए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह पांडेय समिति की सिफारिशों को अगले साल से लागू करने को मंजूरी देती है. बेंच ने मार्च के तीसरे हफ्ते में याचिका पर अंतिम सुनवाई करने का फैसला किया. तब पांडेय समिति की ओर से तय EWS क्राइटेरिया की वैधता तय की जाएगी.
बता दें कि डॉक्टरों के एक संगठन ने उच्चतम न्यायालय का रुख करते हुए नीट-पीजी काउंसलिंग (NEET PG Counselling) शुरू करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया था तथा प्रक्रिया के अंत में OBC और EWS आरक्षण मानदंड में संशोधन (Amendment in OBC and EWS Reservation quota) से अंतिम चयन में और देरी होगी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी मेडिकल सीटों के लिए NEET में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय कोटा सीटों में OBC के लिए 27 प्रतिशतऔर EWS श्रेणी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्र के फैसले से संबंधित याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा था. साथ ही शीर्ष अदालत के समक्ष मामला लंबित होने के कारण नीट-पीजी काउंसलिंग रोक दी गई थी.
इससे पहले फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने लंबित याचिका में पक्ष बनाने का अनुरोध करते हुए दाखिल एक अर्जी में कहा था कि हर साल लगभग 45,000 उम्मीदवारों को राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातकोत्तर (नीट-पीजी) के माध्यम से स्नातकोत्तर डॉक्टरों के रूप में चुना जाता है.
FORDA ने कहा कि 2021 में इस प्रक्रिया को रोक दिया गया क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के कारण NEET PG परीक्षा सितंबर महीने तक टल गई. संगठन ने कहा है कि चूंकि इस वर्ष किसी भी जूनियर डॉक्टर को शामिल नहीं किया गया है इसलिए दूसरे और तीसरे वर्ष के पीजी डॉक्टर मरीजों को देख रहे हैं. अर्जी में कहा गया है कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जहां डॉक्टर प्रति सप्ताह 80 घंटे से अधिक काम कर रहे हैं और उनमें से कई अब कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं.
अर्जी में कहा गया कि यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तीन वर्षों से अधिक का होता है. प्रथम वर्ष के स्नातकोत्तर डॉक्टरों को शामिल करने में बाधा से स्नातकोत्तर डॉक्टरों के चिकित्सा कार्यबल में लगभग 33 प्रतिशत की कमी हुई है. अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के आरक्षण के मुद्दे पर संगठन ने कहा है कि केंद्र द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति का सुझाव उचित है कि आरक्षण के मौजूदा कार्यक्रम में बदलाव अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू किया जाना उपयुक्त होगा.
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