हैदराबाद : भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जहां भी प्रचार किया, वहां भारतीय तिरंगा फहराया गया क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं का प्रतीक था. हालांकि, पार्टी को झंडा फहराने के लिए भी काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा था. ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रतिबंध के बावजूद मांड्या के शिवपुर में एक झंडा अभियान सफल रहा.
कांग्रेस पार्टी ने सोचा कि अगर विदुरश्वाथा में 'झंडा सत्याग्रह' का आयोजन किया जाए, तो कई लोग पार्टी की ओर आकर्षित हो सकते हैं. हालांकि, झंडा सत्याग्रह को रोकने के लिए पुलिस ने एक महीने पहले ही योजना बना ली थी. 1938 के उस दिन स्वतंत्रता सेनानी झंडा फहराने वाले थे. हालांकि पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया. 32 से अधिक लोग मारे गए जिन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जान गंवाने वाला शहीद कहा गया.
इतिहासकार प्रोफेसर गंगाधर ने इस घटना को याद करते हुए कहा, पहली बार मैसूर के शिवपुरा में ध्वज सत्याग्रह आयोजित किया गया था. ब्रिटिश द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद यह कार्यक्रम सफल रहा. पुराने मैसूर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने इसमें भागीदारी की थी. इस घटना ने पूरे संघर्ष को नई दिशा दे दी.
पंजाब के जलियांवाला बाग की घटना के 19 साल बाद चिकबल्लापुर के गौरीबिदानुर के पास विदुरश्वाथा में गोलीबारी की घटना हुई. यहां पर जलियांवाला बाग की तरह बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता था. इसे बंद करने के बाद लोग बाहर नहीं निकल सकते थे. पुलिस ने हॉल की खिड़कियों से गोली चलाई. विदुरश्वाथा और जलियांवाला बाग के बीच यह एक साम्यता है. बाद में इस जगह का नाम कर्नाटक का जलियांवाला बाग कर दिया गया.