मंडला : मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के मनकहणि गांव के जमींदार राव जुझार सिंह (Jujhar Singh) के घर 16 अगस्त 1831 काे एक बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम अन्तोबाई रखा गया.
गांव में ही बेटी की शिक्षा दीक्षा के साथ ही उसे घुड़सवारी, तलवारबाजी के भी गुर सिखाए जाने लगे. बेहद बहादुर और साहसी अन्तो की बहादुरी के किस्से उम्र के साथ चारों तरफ फैलने लगे. पिता को अब उनके विवाह की चिंता हुई. अन्तो बाई 1848 में रामगढ़ रियासत ( Princely State Of Ramgarh) की कुलवधु बनीं जहां इन्हें नया नाम अवंतीबाई लोधी (Rani Avantibai Lodhi) मिला.
रामगढ़ रियासत की कुलवधु बनीं रानी अवंती बाई
साल 1851 में रामगढ़ रियासत के राजा और वीरांगना अवंतीबाई लोधी के ससुर लक्ष्मण सिंह की मृत्यु हो गई. जिसके बाद अवंतीबाई के पति राजकुमार विक्रम जीत सिंह का रामगढ़ रियासत के राजा के रूप में राजतिलक किया गया. कुछ समय बाद अवंती बाई ने दो बेटों को जन्म दिया, जिनका नाम अमान सिंह और शेर सिंह रखा गया.
अवंती बाई को पति और राजकुमार विक्रम जीत सिंह (Vikram Jeet Singh) राजकाज से ज्यादा धार्मिक अनुष्ठान और पूजा पाठ में ध्यान देते थे. कुछ सालों बाद राजा विक्रम जीत सिंह अस्वस्थ्य रहने लगे. उनके दोनों पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह अभी छोटे थे. जिससे राज्य का सारा भार रानी अवंतीबाई लोधी (Rani Avantibai Lodhi) के कन्धों पर आ गया. 1851 से 1855 तक राज करने के बाद एक दुर्घटना में विक्रम जीत सिंह की मृत्यु हो गई. राजकुमार अमान सिंह और शेर सिंह के नाबालिग होने से राजकाज रानी ने अपने हाथों में ले लिया. जो अंग्रेजी हुकूमत को रास नहीं आया. इस दौरान अंग्रेजों ने रामगढ़ पर 'कोर्ट ऑफ वार्ड' लागू कर दिया.
अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ीं रानी अवंतीबाई क्या है कोर्ट ऑफ वार्ड ?
लार्ड डलहौजी की नीति थी कि वह किसी भी हाल में अंग्रेजी हुकूमत का विस्तार करना चाहता था, ऐसे में उसकी हड़प नीति में एक कानून बनाया गया था, जिसके तहत जिस साम्राज्य या राज्य का राजा शासन करने में अक्षम हो, राजा की मृत्यु हो गयी हो, या फिर कोई वारिस नहीं न हो, नाबालिग हो, या फिर राज्य को संभालने वाला कोई उत्तराधिकारी न हो, राजा विक्षिप्त हो ऐसे राज्य पर कोर्ट ऑफ वार्ड (court of ward) लागू कर दिया जाता था, लक्ष्मण सिंह की मृत्यु के बाद, 1851 में विक्रमजीत सिंह रामगढ़ के राजा बने और 1855 तक जीवित रहे.
'कोर्ट ऑफ वॉर्डस' के तहत अंग्रेजों ने किया कब्जा
1853 में अंग्रेजों ने राजा विक्रम जीत सिंह को विक्षिप्त घोषित कर दिया था. इस समय अमान सिंह और शेर सिंह नाबालिक थे, रामगढ़ का राज्य हड़पने की दृष्टि से अंग्रेज शासकों ने यहां कोर्ट ऑफ वॉर्डस (court of ward) की कार्रवाई की, रानी और उनके दोनों नाबालिग पुत्र रामगढ़ राज्य के उत्तराधिकारी थे, लेकिन जबलपुर के तत्कालीन कमिश्नर मेजर इस्काईन ने सागर और नर्बदा क्षेत्र (Narbada Area) के सेक्रेटरी को हटाकर परगना कोर्ट स्थापित किया और इस आशय का एक पत्र 13 दिसंबर 1853 को आगरा से भेजा गया. जिसमें रामगढ़ राज्य रियासत कोर्ट ऑफ वॉर्डस के कब्जे में चली गई, जिससे रानी तिलमिला गई. अंग्रेज शासकों ने राज्य पर कब्जा करने के लिए सरबराहकार शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा.
रानी अवंती बाई ने किया गुप्त सम्मेलन
कोर्ट ऑफ वॉर्ड लागू कर अंग्रेज इस राज्य को पूरी तरह से हथियाना चाह रहे थे. रानी ने आसपास के लुटेरों और अंग्रेजों से निपटने के लिए राज्य की जनता को सुरक्षा का एहसास दिलाया और यहां के पलायन को रोका, लेकिन रानी इतने में ही शांत बैठने वाली नहीं थी. 1857 सागर और नरबदा टेरेटरी निर्माण के बाद रानी को अंग्रेजों को रोकना अब मुश्किल हो गया था. जिसके बाद मई 1857 में उन्होंने एक गुप्त सममेलन किया, जिसमें करीब 300 से ज्यादा राजाओं, परगनेदारों, जमींदारों और मालगुजारों को आमंत्रित किया गया.
इसकी जानकारी अंग्रेजों को मिलते ही इसकी खबर वाडिंग्टन को दी गई, लेकिन वाडिंग्ट किसी पर भरोसा नहीं करता था. उसने जबलपुर से अपने खबरियों को मंडला भेजा. जानकारी पूख्ता करने की बात कही.
अंग्रेज रहे बेखबर, रानी ने कर ली तैयारी
आजादी के परवाने अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिए विद्रोह की तैयारी कर रहे थे. ऐसे में अंग्रेज काफी सजग और सतर्क हो गए, लेकिन मंडला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन (Mandla Deputy Commissioner Waddington) मंडला में न रहकर जबलपुर में रहा करते थे, वाडिंग्टन को विद्रोह की तैयारियों की सूचना खबरियों के माध्यम मिली, लेकिन इसे पुख्ता करने के लिए रामगढ़ जाना जरुरी था, लेकिन जबलपुर से रामगढ़ राज्य की दूरी तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर थी और यहां आने-जाने के सुगम साधन भी नहीं थे.
मंडला में तहसीलदार और थानादार रहा करते थे. जो यहां की खबरें डिप्टी कमिश्नर तक पहुंचाया करते थे. लेकिन जब तक खबरें पहुंचती, विद्रोही अपनी तैयारियों को अंजाम दे चुके होते, ऐसे में जबलपुर से जब रामगढ़ और आसपास के राज्यों और तालुकों पर हमले होते उसके पहले ही तालुकदार, जमींदार और विद्रोही अपने सिपाहियों के साथ अंग्रेजों को इन राज्यों में घुसने से रोक देते, इसका ही नतीजा था, कि जब डिप्टी कमिश्नर वाशिंगटन (Deputy Commissioner Washington) ने मंडला पर हमला किया था. तो खैरी युद्ध (khair war) में उसे हार का सामना करना पड़ा था और वह सिवनी भागने को मजबूर हो गया था. वडिंगटन के बारे में कहा जाता है, कि वह खबरिया पर कम विश्वास किया करता था और मिली सूचनाओं को अपने तंत्र से उनकी सत्यता की जांच कराया करता था. जिससे विद्रोहियों को और भी ज्यादा समय अपनी तैयारियां करने के लिए मिल जाता था.
राजाओं को चिट्ठी के साथ भेजी कांच की चूड़ियां
1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा. तो क्रांतिकारियों का सन्देश रामगढ़ भी पहुंचा. रानी अवंतीबाई अंग्रेजों से पहले ही जली भुनी बैठी थी, क्योंकि उनका राज्य भी झांसी और अन्य राज्यों की तरह कोर्ट के अधीन कर लिया गया था और अंग्रेज रेजिमेंट उनके सभी कार्यों पर निगाह रखे हुए थे. जहां देश के दूसरे हिस्से में रोटी और कमल के जरिए क्रांति (Revolution) का संदेशा भेजा जा रहा था. वहीं रानी ने खुद अपनी रणनीति बनाई. रानी ने अपनी ओर से क्रान्ति का सन्देश देने के लिए अपने आसपास के सभी राजाओं और प्रमुख जमींदारों को चिट्ठी के साथ कांच की चूड़ियां भिजवाई, उस चिट्ठी में लिखा था कि 'देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो, या चूड़ी पहनकर घर में बैठो, तुम्हें धर्म ईमान की सौगंध, जो इस कागज का सही पता बैरी को दो'.
ऐसे में वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी मध्य भारत की क्रान्ति की प्रमुख नेता के रूप में उभरी, रानी के विद्रोह की खबर जबलपुर के कमिश्नर वाडिंग्टन को दी गई. तो वह आगबबूला हो उठा. उसने रानी को आदेश दिया, कि वह मंडला के डिप्टी कलेक्टर से मुलाकात कर ले. अंग्रेज पदाधिकारियों से मिलने की बजाय रानी ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी.
21 दिनों तक आजाद रहा मंडला
रानी अवंतीबाई और मध्य भारत के इस विद्रोह से अंग्रेज चिंतित हो उठे. वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने अपने साथियों के सहयोग से हमला बोलकर घुघरी, रामनगर, बिछिया क्षेत्रों से अंग्रेजी राज का सफाया कर दिया. इसके बाद रानी ने मंडला पर आक्रमण करने का निर्णय लिया. इस युद्ध में वारांगना अवंती बाई लोधी की मजबूत क्रान्तिकारी सेना और अंग्रेजी सेना में जोरदार मुठभेड़ें हुईं. इस युद्ध में रानी की सेना ने अंग्रेजों को धूल चटा दी. अंग्रेजों की सेना को भागना पड़ा. वाडिंग्टन सिवनी में जाकर छुप गया, तो उसके तहसीलदार और थानादार भी भाग गए, आजादी के एक सदी पहले मंडला आजाद हो चुका था. पूरे 21 दिन तक आजाद रहा.
अंग्रेजी सेना ने रामगढ़ किले पर किया हमला
मंडला आजाद होने से डिप्टी कमिश्वर वाडिंगटन बेहद परेशान था और अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपनी सेना के साथ रामगढ़ किले पर हमला बोल दिया. जिसमें रीवा नरेश (Rewa Naresh) की सेना भी अंग्रेजों का साथ दे रही थी. रानी अवंतीबाई की सेना अंग्रेजों की सेना के मुकाबले बेहद कमजोर थीं, लेकिन फिर भी वीर सैनिकों ने साहसी वीरांगना अवंतीबाई लोधी के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना का जमकर मुकाबला किया. आखिरकार स्थिति को भांपते हुए रानी ने किले के बाहर निकलकर देवहारगढ़ (Deohargarh) की पहाड़ियों की तरफ प्रस्थान किया. रानी के रामगढ़ (Ramgarh) छोड़ देने के बाद अंग्रेजी सेना ने रामगढ़ के किले को बुरी तरह से क्षति पहुंचाया, उसे ध्वस्त कर दिया और खूब लूटपाट की.
देवहार गढ़ की पहाड़ी पर रानी ने किया अंग्रेजों से युद्ध
अंग्रेजी सेना को जैसे ही पता चला कि रानी अवंतीबाई देवहार गढ़ की पहाड़ियों पर हैं, अंग्रेजी सेना वहां पहुंच गई, यहां रानी ने अपने सैनिकों के साथ पहले से ही मोर्चा संभाल रखा था. अंग्रेजों ने रानी के पास आत्मसमर्पण का संदेश भिजवाया, लेकिन रानी ने इसे अस्वीकार कर दिया, इसके साथ ही अंग्रेजों को संदेश भेजा, कि अगर लड़ते-लड़ते बेशक मरना पड़े, तो मरना स्वीकार है, लेकिन अंग्रेजों के भार से नहीं दबूंगी. वाडिंगटन ने चारों तरफ से रानी की सेना पर धावा बोला. कई दिनों तक रानी की सेना और अंग्रेजी सेना में युद्ध चलता रहा, जिसमें रीवा नरेश (Rewa Naresh) की सेना अंग्रेजों का पहले से ही साथ दे रही थी. रानी के पास कम सेना बल थी, लेकिन युद्ध में अंग्रेजी सेना पर अवंती बाई की सेना भारी पड़ी.
इस युद्ध में रानी की सेना के कई सैनिक घायल हो गए, रानी को खुद बाएं हाथ में गोली लगी. जिससे उनकी बन्दूक छूटकर गिर गई. अपने आप को चारों ओर से घिरता देख वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का अनुकरण किया, इसके बाद उन्होंने अपने अंगरक्षक से कटार छीनी, और खुद 20 मार्च 1858 को तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया.
'आजादी बिना रक्तदान के नहीं मिलती'
रानी के बलिदान के ठीक एक दिन बाद 21 मार्च 1858 को उनका अंतिम संस्कार किया गया. जिसके बाद रामगढ़ राज्य अंग्रेजों के आधीन हो गया, इसके साथ ही इस राज्य का पतन हो गया, लेकिन इस मर्दानी ने आजादी की जो मशाल जलाई थी, वो मशाल कभी नहीं बुझी.
रानी अवंतीबाई, जिसके इतिहास बनने के बाद कुछ उसी की तरह सरफरोशी की तमन्ना कहते भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया. सुभाष बाबू ने उन्हीं के तरीके से कहा था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. रानी अंवती बाई जिसका नाम आज भी मंडला जिले में पूरे सम्मान और गौरव से लिया जाता है. आज भी जब दुनिया में महिला जागरूकता और बराबरी के लिए विवाद जारी है. उस दौर में रानी पहचान थीं नारी शक्ति की.