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भूकंप से निपटने के लिए विश्व के चार देशों में है वार्निंग सिस्टम, भारत भी प्रोजेक्ट को कर रहा डेवलप

अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम डेवलप कर हम भूकंप की तबाही को कम कर सकते हैं. फिलहाल यह सिस्टम विश्व के केवल चार देशों में ही है. भारत में भी इस प्रोजेक्ट पर काम हुआ है, लेकिन फिलहाल वो बंद है.

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 6, 2023, 1:46 PM IST

talk with Dr PK Khan Senior Faculty of IIT ISM
talk with Dr PK Khan Senior Faculty of IIT ISM

आईआईटी आईएसएम के सीनियर फैकल्टी डॉक्टर पीके खान से खास बातचीत

धनबादः नेपाल में भूकंप के कारण तबाही का मंजर देखने को मिला. जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई, जबकि सैकड़ों घायल हैं. आखिर क्यों आते हैं भूकंप, इससे निपटने के क्या उपाय हैं, इन सारे मुद्दों पर आईआईटी आईएसएम जियो फिजिक्स के सीनियर फैकल्टी डॉक्टर पीके खान ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

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डॉक्टर पीके खान ने बताया कि अर्थ के एटमॉस्फेयर में एनर्जी एक्युमुलेट होने के कारण पत्थरों में कंपन्न होना शुरू हो जाता है. जिसकी वजह से जमीन में भी कंपन होता है. उसके बाद बिल्डिंग गिरने लगती है. यह ऊर्जा जितनी दूर तक जाएगी, उसके आस पास के दायरे को अपनी चपेट में ले लेगी.

हिस्टोरिकल रिपोर्ट बताते हैं कि नेपाल में भूकंप बहुत पहले से ही आ रहा है. नेपाल और सिक्किम इलाके में सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं. इसके साथ हिमालय से सटे इलाकों में भूकंप का खतरा बना रहता है. हिमालय से सटे इलाकों में भूकंप आता है. इसका मुख्य कारण है कि हिमालय के इंडियन प्लेट्स खिसक रहे हैं. इंडियन प्लेट्स खिसकने के कारण ही भूकंप की स्थिति पैदा होती है. यह एक प्राकृतिक घटना है इसे रोका नहीं जा सकता है.

उन्होंने बताया कि फोकास्ट के माध्यम से भूकंप के दौरान होने वाली तबाही से बचा जा सकता है. मानव जीवन को हम बचा सकते हैं. अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम के जरिए बहुत हद तक लोगों की जान बचाई जा सकती है. अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम विश्व में 4 देशों के पास मौजूद है. उन्होंने बताया कि यदि 8 मेग्नीट्यूट अर्थक्वेक होता है और वहां एक हजार लोगों की जान जाने की आशंका है तो, इस सिस्टम को अपनाकर हम सात सौ से आठ सौ लोगों की जान बचा सकते हैं.

अमेरिका, जापान, इटली और इजरायल में यह सिस्टम है. डॉक्टर पीके खान ने बताया कि हमारे द्वारा इंडिया में भी इसे डेवलप किया जा रहा था. तीन साल इस प्रोजेक्ट के ऊपर काम भी चला. भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए डेढ़ करोड़ की राशि निर्गत की थी. लेकिन बीच में दो साल के दौरान कोरोना संक्रमण के कारण यह प्रोजेक्ट रुक गया. आईआईटी आईएसएम में इस प्रोजेक्ट के लिए सभी एक्यूपिमेंट पड़ा हुआ है. इस प्रोजेक्ट पर कार्य के लिए इजरायल यूनिवर्सिटी से कॉलेब्रेशन भी हुआ था. इजरायल द्वारा डेवलप अर्ली वार्निंग सिस्टम अमेरिका और जापान से थोड़ा अच्छा है. भारत में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था, जो कोरोना के कारण अवरुद्ध हो गया. लेकिन फिर से इस प्रोजेक्ट को शुरू किया जाएगा.

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