शिमला : पिता-पुत्री का रिश्ता संसार के सबसे सुंदर रिश्तों में से एक है. फादर्स डे पर हम एक ऐसे पिता की मर्मस्पर्शी कहानी यहां दर्ज कर रहे हैं, जिनकी सांस-सांस मरीजों की सेवा में समर्पित है. यही संस्कार उनकी डॉक्टर बेटी में भी उतर आए हैं. डॉक्टर पिता-पुत्री की इस जोड़ी से हिमाचल में हर कोई परिचित है. पिता डॉ. रमेश चंद और बेटी डॉ. क्षितिजा, सेवा के संसार के ये दो उजले नाम हैं.
लंबे समय से डॉ. रमेश दे रहे अपनी सेवाएं
विख्यात कवि स्व. मधुकर भारती ने लिखा है...
खाली नहीं हुआ है मंच
नहीं रुका है सृजन क्रम
नहीं छोड़ा है ऋतुओं ने अपना परिवर्तन चक्र
नए लोग आ रहे हैं...
भारती की इन पंक्तियों के आलोक में डॉ. क्षितिजा जैसे युवा नई पीढ़ी के सेवाभावी डॉक्टर हैं. इनके पिता डॉ. रमेश चंद इन दिनों राज्य के स्वास्थ्य निदेशालय में डिप्टी डॉयरेक्टर हैं. वे पहले आईजीएमसी अस्पताल के सीनियर एमएस रहे हैं. अपने लंबे सेवाकाल में उन्होंने मरीजों की जी-जान से सेवा की है. डॉ. रमेश ने अनेक बार रक्तदान किया है. आपात परिस्थितियों में भी वे जरूरतमंद लोगों के काम आए हैं.
रक्तदान के लिए 12 किमी पैदल चल अस्पताल पहुंचे थे डॉ. रमेश
एक दफा नरेश नामक युवा को रक्त की जरूरत पड़ी. ये सर्दियों की बात थी और शिमला में चार फीट तक बर्फ पड़ी थी. डॉ. रमेश का ब्लड ग्रुप दुर्लभ ग्रुप ओ-नेगेटिव है. दिल की बीमारी के पीडि़त युवा नरेश को जरूरत के समय रक्तदान के लिए डॉ. रमेश बर्फ में 12 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंचे और मरीज की जान बच गई. सेवा रूपी यज्ञ में डॉ. रमेश ने ऐसी-ऐसी कई आहूतियां डाली हैं. जाहिर है, यही संस्कार उनकी बेटी के लहू में भी दौड़ रहे हैं.
डॉ रमेश और उनकी बेटी डॉ क्षितिजा (फाइल) मेडिकल उपकरणों को स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंचाने का लिया जिम्मा
कोरोना काल में क्षितिजा की ड्यूटी आईजीएमसी अस्पताल के आपात विभाग में रही. इसी साल बर्फ में वे भी पैदल चलकर ड्यूटी पर पहुंची. क्षितिजा का कहना है कि उनके पिता हमेशा सेवाभाव की बात करते हैं. कोरोना के संकटपूर्ण समय में भी वे दिन-रात निदेशालय में रहकर अपने काम में लीन रहे. मूल रूप से मंडी जिला से संबंध रखने वाले रमेश के पास इन दिनों कोरोना के इलाज में काम आने वाले मेडिकल उपकरणों, ऑक्सीजन सिलेंडर्स और अन्य सामान को प्रदेश के सभी स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है.
रमेश को भी अपनी चिकित्सक बिटिया पर गर्व है. वे कहते हैं-बेटी का पिता होना गौरव की बात है. अच्छा लगता है जब लोग बेटी और उन्हें एक ही प्रोफेशन में होते हुए सेवाभाव के लिए याद करते हैं.
आईजीएमसी से ही की डॉक्टरी की पढ़ाई
रमेश चंद ने आईजीएमसी अस्पताल से ही एमबीबीएस और डीसीएच किया है. अस्पताल प्रबंधन में भी उनके पास डिग्री है. क्षितिजा एमबीबीएस पास करने के बाद शिमला में ही तैनात हैं. संघर्ष से सफलता तक की मंजिल तय करने वाले रमेश चंद ने अपनी बेटी को भी पीड़ित मानवता की सेवा के संस्कार दिए हैं. कहा जा सकता है- इस डॉक्टर बिटिया के लहू में दौड़ रहे डॉक्टर पिता की सेवा के संस्कार. फादर्स डे पर ऐसे उदाहरण इस संवेदनशील समय में मानवता पर भरोसा और दृढ़ करते हैं.
डॉ रमेश और उनकी बेटी डॉ क्षितिजा (फाइल)