लखनऊ : एक वक्त था जब उत्तर प्रदेश में भाजपा का मतलब कल्याण और कल्याण का मतलब भाजपा समझा जाता था, लेकिन साल 1999 में ऐसा भी दौर आया जब एक-दूसरे के पूरक रहे कल्याण सिंह और भाजपा धुरविरोधी बन गए. ऐसे भी घटनाक्रम हुए जिससे कल्याण को पार्टी से बाहर जाना पड़ा.
2012 के विधानसभा में कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी चुनाव में उतरी तो भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया और भाजपा 1991 के बाद अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई. उस चुनाव में भाजपा को महज 47 सीटें मिलीं. उधर, कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी इस चुनाव में सिर्फ वोट कटवा पार्टी बनकर रह गई. इसके बाद कल्याण और भाजपा को एक दूसरे की ताकत का एहसास हुआ.
ऐसे में साल 2013 में भाजपा नेतृत्व, खासकर नरेंद्र मोदी के पीएम पद की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद तत्कालीन बीजेपी के यूपी प्रभारी अमित शाह की पहल पर कल्याण की एक बार फिर पार्टी में वापसी हुई. जिसके बाद 2014 के चुनाव में बीजेपी ने यूपी के राजनीतिक इतिहास में वो करिश्मा कर दिखाया जो आज तक कोई नहीं कर पाया है.
बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने 2014 के चुनाव में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में 73 सीट जीती. जिसमें से बीजेपी ने अकेले 71 सीटों पर जीत दर्ज की. जिसके बाद 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी. इसके बाद 2017 के चुनाव में भी बीजेपी ने बड़ा करिश्मा करके दिखाया.
जब टूटा भाजपा और कल्याण का भ्रम
राजनीतिक विश्लेषक विजय शंकर पंकज कहते हैं कि राम मंदिर आंदोलन से कल्याण का कद इतना बड़ा हो गया था कि उन्हें अपने आगे सारे नेताओं का कद बौना लगने लगा था. मायावती के भाजपा को सत्ता हस्तांतरित नहीं करने और जोड़तोड़ कर भाजपा की सरकार बनने के बीच कल्याण की अपनी ही पार्टी के कई नेताओं से दूरियां बढ़ गयी थीं.
केंद्रीय नेताओं से तल्खियां इतनी बढ़ीं कि कल्याण को भाजपा से बाहर होना पड़ा. विजय शंकर पंकज कहते हैं कि कल्याण को यह भ्रम था कि पार्टी उनसे है. दूसरी तरफ यह भ्रम पार्टी के कुछ अन्य नेताओं को भी रहा. इस घटनाक्रम से भाजपा और कल्याण दोनों को ही नुकसान हुआ. केंद्रीय नेतृत्व से तल्खी बढ़ने के बाद कल्याण सिंह ने एक बार तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में यहां तक कह दिया कि, वे सिर्फ पार्टी का मुखौटा हैं.
2002 में कल्याण की पार्टी को मिलीं 4 सीटें
बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद कल्याण सिंह ने जनक्रांति पार्टी बनाई. उनकी पार्टी 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव में उतरी. कल्याण की पार्टी को केवल चार सीटें मिलीं. इस चुनाव में भाजपा को 88 सीटें, सपा को 143, बसपा को 98, कांग्रेस को 25 और रालोद को 14 सीटें मिलीं थीं.
इस चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान हुआ. इसके बाद कल्याण सिंह भाजपा वापस आ गए. कल्याण सिंह के भाजपा में रहते हुए 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हुए. लेकिन, कल्याण के वापस आने से भाजपा के अंदर कलह बढ़ गयी.