पलामू :चुनाव के दौरान कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम जेल में बंद थे. कामेश्वर बैठा पर उस दौरान 48 मामले दर्ज थे. जिसमें कई गंभीर धाराओं में थे. हालांकि, अधिकतर मामलों में कामेश्वर बैठा को दोषी नहीं पाया गया है. इससे पहले 2005 में कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम से गिरफ्तार हुए थे. 2013 में वे जेल से बाहर निकले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कामेश्वर बैठा हार गए.
कामेश्वर बैठा मूल रूप से पलामू के पांडु थाना क्षेत्र के ढांचाबार गांव के रहने वाले हैं. फिलहाल वे विश्रामपुर में अपने पूरे परिवार के साथ रह रहे हैं. वे तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा का कहना है जिन्हें लोग या मीडिया जंगल समझती है, वह उनकी कर्मभूमि रही है. वे गांव, जंगल के हक और अधिकार की लड़ाई लड़े, जिसके कारण वे सांसद बने थे. वे संघर्ष नहीं करते तो पलामू की जनता उन्हें सांसद के रूप में नहीं चुनती. देश में पहली बार हुआ था कि कोई माओवादी जेल में रहकर सांसद का चुनाव जीता था. कामेश्वर बैठा जिस आंदोलन से जुड़े हुए थे वह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता है.
संसदीय व्यवस्था पर जगी आस्था
कामेश्वर बैठा बताते हैं कि जेल में अध्ययन के दौरान संसदीय व्यवस्था पर उनकी आस्था जगी. उनका कहना है कि जमीन, मजदूरी, भुखमरी समेत कई जन मुद्दों को लेकर वे माओवादी आंदोलन में शामिल हुए थे. 80 के दशक के बाद उन्होंने गांव-गांव जाकर आंदोलन को खड़ा किया था. उस दौरान कई संगठन बने थे और लीगल तरीके से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. उस दौरान हुए उत्पीड़न को भुलाया नहीं जा सकता.