लखनऊ : विधानसभा के बजट सत्र के अंतर्गत शुक्रवार को विशेषाधिकार हनन के विशेष मामले की सुनवाई हुई. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना के प्रस्ताव पर 58 साल बाद विधानसभा सदन अदालत के रूप में परिवर्तित हुआ. इससे पहले सदन ने अदालत के रूप में 1964 में सुनवाई की थी. सदन की अदालत में 2004 के विशेषाधिकार हनन के मामले में छह पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया गया. उन्हें शुक्रवार रात 12 बजे तक के कारावास की सजा सुनाई गई. विधानसभा परिसर में बनाए गए एक विशेष लॉकअप यानी सांकेतिक जेल में सभी दोषी छह पुलिसकर्मियों को रखा गया. पुलिसकर्मियों को लॉकअप में ही भोजन, पानी की व्यवस्था किए जाने के अदालत ने निर्देश दिए हैं. खास बात यह रही कि विधानसभा की अदालत की कार्यवाही के दौरान समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने सदन से वाकआउट कर दिया.
भाजपा एमएलसी सलिल विश्नाेई ये बाेले. जिन पुलिस अफसर और कर्मियों को सजा सुनाई गई, उनमें बाबूपुरवा के तत्कालीन क्षेत्राधिकारी अब्दुल समद, किदवईनगर के तत्कालीन थानाध्यक्ष रिषिकांत शुक्ला, तत्कालीन उपनिरीक्षक त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल छोटे सिंह यादव, विनोद मिश्र, मेहरबान सिंह यादव शामिल हैं. इन अफसरों ने 2004 में कानपुर में बीजेपी नेता के धरने के दौरान लाठीचार्ज किया था. लाठीचार्ज के दौरान तत्कालीन विधायक सलिल बिश्नोई का पैर फ्रैक्चर हो गया था. 2004 में उत्तरप्रदेश की सत्ता में समाजवादी पार्टी थी.
शुक्रवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने पर संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विशेषाधिकार हनन मामले में दोषियों को कारावास का प्रस्ताव दिया, जिसे सदन ने स्वीकार किया गया. इसके बाद सदन में अपना दल के आशीष पटेल, सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर, जनसत्ता दल के रघुराज प्रताप सिंह, बसपा के उमाशंकर सिंह ने फैसले का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को दिया और विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय से सहमति जताई.
सुनवाई के दौरान तत्कालीन सीओ अब्दुल समद और अन्य ने कहा कि राजकीय दायित्वों के निर्वाहन मे जो गलती हुई उनके लिए हम हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हैं. हमको क्षमा करें. हम भविष्य मे सभी माननीय सदस्यों का सम्मान करेंगे. इसके बाद संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि हम सब जनप्रतिनिधियों का सम्मान आवश्यक है, लेकिन ये इन अफसरों को ये अधिकार नहीं है कि वह किसी को अपमानित करें. संसदीय कार्य मंत्री ने विधानसभा अध्यक्ष से न्यूनतम सजा देने की अपील की. साथ ही उन्हें एक दिन की सजा यानी शुक्रवार रात 12 बजे तक की सजा देने का प्रस्ताव दिया.
विधान सभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि सदन का निर्णय महत्वपूर्ण है, इसका संदेश दूरगामी होंगे, हमारे संविधान हमारी जीवन रेखा हैं. संसदीय कार्यमंत्री के प्रस्ताव पर एक संदेश जाना चाहिए. आने वाली पीढ़ियों को उदाहरण देने के लिए जरूरी है. इस मामले की विशेषाधिकार समिति की ओर से विस्तृत जांच की जा चुकी है. सभी दोषियों को एक दिन की कारावास की सजा दी जाए. विधानसभा अध्यक्ष ने सभी दोषी पुलिसकर्मियों को विधानसभा में बनी सांकेतिक लॉकअप में रखने का आदेश दिया. मार्शल ने सभी पुलिसकर्मियों को लॉकअप में जाकर शिफ्ट कर दिया.
इससे पहले 1964 में सदन में लगी थी अदालत
14 फरवरी 1964 को विधानसभा में कांग्रेस नेता नरसिंह नारायण पांडेय ने विधानसभा अध्यक्ष मदन मोहन वर्मा से शिकायत की थी कि सदन में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार से सम्बंधित पोस्टर बांटे गए. इसके बाद चार विधानसभा सदस्यों केशव सिंह, श्याम नारायण, हुबलाल दुबे और महात्मा सिंह के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस जारी किया गया था. विधानसभा की विशेषाधिकार समिति के सामने तीन सदस्य तो पेश हुए लेकिन चौथे सदस्य केशव सिंह सदन के सामने पेश नहीं हुए थे. इसके बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष मदन मोहन वर्मा के आदेश पर मार्शल ने 13 मार्च 1964 को गोरखपुर से केशव सिंह को गिरफ्तार कर किया और 14 मार्च 1964 को सदन में अदालत के सामने पेश किया था. इसके बाद विधानसभा अदालत लगी . तब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष मदन मोहन वर्मा ने केशव सिंह को सात दिन की सजा सुनाई थी.
2004 के मामले का सतीश महाना से है खास कनेक्शन
इस मामले का सबसे रोचक तथ्य यह है कि 2004 में कानपुर के जिस धरने को लेकर दोषी पुलिसकर्मियों ने लाठीचार्ज किया था, उस धरने का आह्वान सतीश महाना की ओर से ही किया गया था. दरअसल, 2004 में कानपुर की बिजली कटौती को लेकर सतीश महाना की ओर से धरना दिया जा रहा था. उस धरने में भाग लेने जाते वक्त ही पुलिसवालों ने विधायक सलिल विश्नोई और उनके समर्थकों पर लाठीचार्ज किया था. इसमें सलिल विश्नोई के पैर में फ्रैक्चर हुआ था. 19 साल बाद वक्त ने कुछ ऐसी करवट बदली कि दोषी पुलिसकर्मियों को सजा सुनाने वाले भी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना हैं.
पीड़ित एमएलसी सलिल विश्नोई ये बोले
वर्ष 2004 में पीड़ित भाजपा विधायक व वर्तमान में विधान परिषद सदस्य सलिल बिश्नोई ने कहा कि 19 साल पुराने मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को जो सजा सुनाई गई है उससे सभी को यह संदेश गया है कि जनप्रतिनिधियों का सम्मान करना चाहिए, मनमानी नहीं करनी चाहिए. सदन अदालत ने कारावास दिया है. सदन ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है. समाजवादी पार्टी द्वारा वाॅक आउट के सवाल पर उन्होंने कहा कि गुरुवार को सदन की कार्यवाही में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ था कि विशेषाधिकार हनन के मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई जाएगी, लेकिन आज पता नहीं क्या कारण है यह क्या दबाव समाजवादी पार्टी के हैं. उन्होंने सदन से वाकआउट कर दिया यह ठीक नहीं है. इससे गलत संदेश जाएगा और समाजवादी पार्टी को बहुमत नहीं इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे.
यह भी पहुंची : Transport Department : अब मिलेंगे काफी सस्ते इलेक्ट्रिक वाहन, यूपी में लागू हो गई ईवी पॉलिसी