नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उसके 2018 के उस फैसले को पुनर्विचार के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को संदर्भित किया जिसमें कहा गया था कि दीवानी और फौजदारी मामलों में निचली अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया स्थगन छह महीने के बाद स्वचालित रूप से समाप्त हो जाएगा बशर्ते इसे विशेष रूप से बढ़ाया न जाए.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने 'हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ऑफ इलाहाबाद' की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी की याचिका पर ध्यान दिया कि 2018 का फैसला संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को प्रदत्त शक्ति को छीन लेता है.
संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को व्यापक शक्तियां देता है जिसके तहत वे मौलिक अधिकारों को लागू करने और अन्य उद्देश्यों के लिए किसी भी व्यक्ति या सरकार को रिट और आदेश जारी कर सकते हैं.