दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

SC ने कांस्टेबल भर्ती के खिलाफ TN पुलिस की याचिका स्वीकार की, कहा- बरी किए जाने का मतलब यह नहीं है कि आपराधिक मामले से सरोकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कांस्टेबल भर्ती से वंचित किए गए एक व्यक्ति के खिलाफ तमिलनाडु पुलिस की याचिका को अनुमति प्रदान कर दी है. कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि भर्ती के दौरान व्यक्ति ने सत्यापन से पहले बरी किए जाने के बारे में जानकारी नहीं देने से वह अपराध दबाने से नहीं बच सकता है. सुमित सक्सेना की रिपोर्ट... SC allows TN Police plea, Supreme Court news

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 25, 2023, 5:52 PM IST

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक की उस अपील को स्वीकार कर लिया है जिसमें मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. इसके अंतर्गत मद्रास हाई कोर्ट ने कांस्टेबल के पद पर भर्ती से वंचित किए गए एक व्यक्ति की याचिका मद्रास हाई कोर्ट ने स्वीकृत कर ली थी.

इस बारे में पुलिस ने दावा किया है कि सत्यापन के दौरान उस व्यक्ति ने एक आपराधिक मामले में अपनी संलिप्तता के बारे में जानकारी छिपाई, जिसमें वह बरी हो गया था. इस बारे में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि हालांकि प्रतिवादी नियुक्ति के लिए पात्र हो सकता है, लेकिन चूंकि उसने एक आपराधिक मामले में अपनी संलिप्तता के संबंध में पूरी जानकारी का खुलासा नहीं किया है, जिसमें वह ऐसा कर सकता है. कोर्ट ने कहा कि सत्यापन से पहले ही बरी कर दिया गया है इस वजह से वह आवश्यक जानकारी दबाने के अपराध से बच नहीं सकता है.

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि उम्मीदवार पहली बार में अपनी दोषसिद्धि, दोषमुक्ति, गिरफ्तारी या लंबित आपराधिक मामले के बारे में सही जानकारी देने के लिए बाध्य है. साथ ही इसमें आवश्यक जानकारी का अभाव या गलत उल्लेख नहीं होना चाहिए. पीठ ने कहा कि भले ही उसके द्वारा सच्ची घोषणा की गई हो. वह अधिकार के रूप में नियुक्ति का हकदार नहीं होगा और नियोक्ता को अभी भी उसके पूर्ववृत्त पर विचार करने का अधिकार है. पीठ ने कहा कि प्रतिवादी (जे. रघुनीस) ने निश्चित रूप से सही जानकारी का खुलासा नहीं किया है और संदेह का लाभ देकर उसे सम्मानजनक बरी करना या बरी करना महत्वपूर्ण और प्रासंगिक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि प्रासंगिक है कि एक मामले में उसकी संलिप्तता के संबंध में पूरी जानकारी का खुलासा करना है. आपराधिक मामला जिसे उनके द्वारा दबा दिया गया है.

बता दें कि तमिलनाडु पुलिस ने 24 अप्रैल, 2009 को पारित हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था जिसमें जे. रघुनीस द्वारा दायर याचिका को अनुमति दी गई थी. खंडपीठ ने रघुनीस की याचिका खारिज करने के आदेश को पलट दिया. वहीं प्रतिवादी की रिट याचिका को खारिज करने के आदेश को खंडपीठ द्वारा रिट अपील में रद्द कर दिया गया और अंततः रिट याचिका को अनुमति दे दी गई. फलस्वरूप रघुनीस ने 9 नवंबर, 2004 के अधिकारियों के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया था, जिसमें कहा गया था कि वह नियुक्ति के हकदार नहीं हैं क्योंकि वह सत्यापन फॉर्म के कॉलम 15 को भरते समय आपराधिक मामले में अपनी संलिप्तता के बारे में नहीं बताकर महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने के दोषी थे.

लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रघुनीस को ग्रेड- II कांस्टेबल के पद के लिए चुना गया था. उनके चयन पर, उनके पूर्ववृत्त की जांच की गई और उस संबंध में उनके चरित्र और अन्य पूर्ववृत्त के सत्यापन किए गए. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर को दिए एक फैसले में कहा कि प्रतिवादी एक आपराधिक मामले में शामिल था लेकिन उसे बरी कर दिया गया था. इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता कि प्रतिवादी का किसी आपराधिक मामले से कोई सरोकार नहीं थाय. इसलिए, उन्हें सही स्थिति का खुलासा करना चाहिए था कि वह एक आपराधिक मामले में शामिल थे लेकिन उन्हें बरी कर दिया गया था.

इसमें कहा गया है कि प्रतिवादी ने पूरी जानकारी देने के बजाय बस नहीं कहा जैसे कि वह कभी भी किसी आपराधिक मामले में शामिल नहीं था और सत्यापन रोल के कॉलम 15 में पूछे गए प्रश्न का यह उत्तर निस्संदेह गलत जानकारी देता है और यह माना जाता है सही जानकारी का दमन. उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि यह ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी एक अनुशासित बल में भर्ती के लिए एक उम्मीदवार था, आपराधिक मामले में उसकी संलिप्तता की जानकारी का खुलासा न करना और बाद में उससे बरी होना एक गंभीर मामला बनता है. उसके चरित्र और पूर्ववृत्त पर संदेह है जो उसे रोजगार से वंचित करने के लिए पर्याप्त है.

ये भी पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट ने कहा- न्यायाधीशों को करना चाहिए अनुशासन का पालन

ABOUT THE AUTHOR

...view details