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'रूस का काला सागर अनाज पहल से हटना विश्व खाद्य सुरक्षा के लिए बुरा संकेत' - Russian President Vladimir Putin

रूस ने इस सप्ताह घोषणा की कि वह मुख्य भूमि को क्रीमिया प्रायद्वीप से जोड़ने वाले एक प्रमुख पुल पर विस्फोटों के बाद काला सागर अनाज पहल से बाहर निकल जाएगा. विशेषज्ञों का कहना है कि यह विश्व खाद्य सुरक्षा के लिए बुरा संकेत है. पढ़िए अरुणिम भुइयां की रिपोर्ट...

Russia withdraws from Black Sea grain initiative
रूस का काला सागर अनाज पहल से हटा

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Published : Jul 19, 2023, 6:15 PM IST

नई दिल्ली:रूस ने यूक्रेन के अनाज को निर्यात करने देने वाला अपना फैसला रद्द कर दिया है. इस बारे में क्रेमलिन ने कहा है कि वह यूक्रेन के अनाज के निर्यात की अनुमति देने वाले सौदे को रोक रहा है. रूस के इस फैसले से दुनिया के कई देशों में खाद्य संकट गहरा सकता है. काला सागर अनाज पहल से हटने के रूस के फैसले ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्तब्ध कर दिया है. हालांकि इस कदम की संयुक्त राष्ट्र और कई जी20 सदस्यों ने निंदा की है, लेकिन इसने वैश्विक खाद्य सुरक्षा और क्षेत्रीय शक्ति पॉवर की गतिशीलता में एक नया अध्याय शुरू दिया है.

गांधीनगर में मंगलवार को जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की तीसरी बैठक के बाद वित्त मंत्री सीतारमण ने मीडिया से कहा था कि कई सदस्यों ने इसकी निंदा की और कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. उन्होंने कहा, काला सागर से गुजरने वाले खाद्य पदार्थों को रोका या निलंबित नहीं किया जाना चाहिए था. बता दें कि पिछले साल जुलाई में संयुक्त राष्ट्र ने यूक्रेन, तुर्की और रूस के बीच एक जीवनरक्षक सौदा करने में मदद की. इस समझौते से यूक्रेन को काला सागर के अंतरराष्ट्रीय जल के माध्यम से लाखों टन अत्यंत आवश्यक अनाज निर्यात फिर से शुरू करने में मदद मिली थी.

इस सौदे से लाखों टन अत्यंत आवश्यक अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों का रास्ता खुल गया था जो यूक्रेन में फंसा हुआ था. काला सागर के जरिये कम आय वाले देशों में बेहद जरूरी अनाज सीधे पहुंचाकर और खाद्य कीमतों में कमी लाकर दुनिया भर में जरूरतमंद लोगों की मदद करता है. रूस ने सोमवार को घोषणा की थी कि वह अब काला सागर के माध्यम से शिपिंग की सुरक्षा की गारंटी नहीं देगा.

यह निर्णय रूस को क्रीमिया प्रायद्वीप से जोड़ने वाले क्रीमिया पुल पर हुए विस्फोटों के बाद आया. घटना से नाराज़ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) ने कहा कि वर्षों पुरानी काला सागर अनाज पहल उनके देश के हितों के लिए हानिकारक थी. अंतरराष्ट्रीय बचाव समिति (आईआरसी) ने काला सागर अनाज पहल से रूस की वापसी पर चिंता जताते हुए कहा है कि दुनिया भर में खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे 349 मिलियन लोगों को यह सबसे अधिक पीड़ादायक महसूस होगा. इस बारे में आईआरसी के अध्यक्ष और सीईओ डेविड मिलिबैंड ने कहा, 'पूर्वी अफ्रीका का लगभग 80 प्रतिशत अनाज रूस और यूक्रेन से आयात किया जाता है.' 'पूर्वी अफ़्रीका में 50 मिलियन से अधिक लोग संकट के स्तर पर भूख का सामना कर रहे हैं, इस वर्ष खाद्य कीमतों में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अत्यधिक आवश्यकता के समय वैश्विक खाद्य आपूर्ति में किसी भी व्यवधान के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं.'

रूस के फैसले का असर भारत पर भी पड़ सकता है क्योंकि वह यूक्रेन से बड़ी मात्रा में सूरजमुखी तेल और उर्वरक पर निर्भर है. भारत सालाना 25 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात करता है, जिसमें से 70 प्रतिशत यूक्रेन से आता है. वहीं कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी के महासचिव प्रदीप मेहता ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा, 'काला सागर अनाज पहल की समाप्ति, बढ़ते रूस-यूक्रेन संघर्ष के साथ मिलकर दुनिया के कई क्षेत्रों में खाद्यान्न और उर्वरक की पर्याप्त उपलब्धता के लिए खराब संकेत है. मेहता ने कहा, 'उप-सहारा अफ्रीका के कई देश अलग-अलग स्तर पर इस क्षेत्र से कृषि वस्तुओं, विशेषकर गेहूं पर आयात पर निर्भर हैं.'

उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय को संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के भीतर आने वाले यूक्रेनी काला सागर बंदरगाहों से निर्यात आपूर्ति लाइनों को बनाए रखने और सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए. उन्होंने मॉस्को के फैसले को ताजा झटका बताते हुए कहा कि जारी संघर्ष का सबसे विनाशकारी दीर्घकालिक परिणाम वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर हो सकता है. मेहता ने कहा, उदाहरण के लिए क्षेत्र में खेती योग्य भूमि का बड़ा हिस्सा बारूदी सुरंगों के कारण बर्बाद हो गया है. कालासागर समझौते रद्द किए जाने ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत बहुपक्षीय समाधानों की आवश्यकता के बारे में जी20 के भीतर चर्चा को जन्म दिया है, जिसकी इस वर्ष भारत अध्यक्षता कर रहा है. देश संकट के समय स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तंत्र का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं, साथ ही कमजोर आबादी पर संघर्ष के प्रभाव को कम करने के लिए सामूहिक प्रयासों के महत्व पर जोर दे रहे हैं.

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