नई दिल्ली :दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निर्धारित अवधि में चार्जशीट दाखिल नहीं होने पर जमानत मांगने का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है. उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच जारी रखने और आरोप पत्र दायर करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता है.
कानून के अनुसार एक बार गिरफ्तारी के बाद मामले में जांच के लिए अधिकतम अवधि जो 60, 90 और 180 दिन (अपराध की प्रकृति के मुताबिक) है, प्रदान की जाती है और इस अवधि में कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता है, तो आरोपी जमानत पर रिहा होने का हकदार हो जाता है. जिसे डिफॉल्ट (आरोप पत्र दायर करने में चूक के कारकण मिली) जमानत कहते हैं.
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को हिरासत में भेजने या उसकी हिरासत अवधि के विस्तार के आदेश को एक न्यायिक कार्य माना जाता है, जिसमें दिमाग के उचित उपयोग की आवश्यकता होती है.
अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत लेने का अधिकार न सिर्फ वैधानिक बल्कि एक मौलिक अधिकार है. जो संविधान के अनुच्छेद 21 के जरिये प्रदत्त है. इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अपरिहार्य हिस्सा माना गया है और इस तरह के अधिकार को महामारी की स्थिति में भी निलंबित नहीं किया जा सकता है.
अदालत ने कहा कि आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच करने और आरोप पत्र जमा करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता दी गई है. अदालत ने कहा कि संविधान के तहत एक विचाराधीन कैदी के अधिकारों को प्रक्रिया के तकनीकी पहलुओं के आधार पर खत्म करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश दिए गए हैं कि निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दायर नहीं होने की स्थिति में जमानत लेने का उनका अधिकार पराजित नहीं हो और किसी आरोपी की हिरासत यंत्रवत नहीं बढ़ाई जाए.