नई दिल्ली : एक तरफ सत्ताधारी पार्टी भाजपा चुनावी मैदान में विपक्षियों पर किसानों के मुद्दे पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है. वहीं दूसरी तरफ पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत ने सरकार को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है.
आने वाले समय में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और सत्ताधारी पार्टी भाजपा पश्चिम बंगाल से लेकर अन्य राज्यों में बड़े-बड़े वादे कर रही है. उनके नेताओं को जमीनी स्तर पर देश में पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों और इनकी बातों से प्रभावित होने वाली रोजमर्रा की चीजों के बढ़ते दाम से संबंधित सवालों पर रूबरू होना पड़ रहा है. जिसका जवाब देने में ज्यादातर नेता बगले झांक रहे हैं.
आधिकारिक तौर पर पेट्रोल और डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल से तय होती है. हमेशा से नेता पहले यही बयान दिया करते थे. मगर आश्चर्य की बात है कि पिछले एक साल से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने के बजाय लगभग 13 फीसदी कम हुई है, लेकिन घरेलू बाजार में आम लोगों को 13 फीसदी ज्यादा देना पड़ रहा है.
उदाहरण के तौर पर देखें कच्चे तेल की कीमत 63.57 प्रति बैरल के आस-पास है, जबकि दिल्ली में पेट्रोल का मूल्य ₹89 प्रति लीटर को भी पार कर चुका है. वहीं राजस्थान में पेट्रोल की कीमत 100 का आंकड़ा पर कर रही है.
वास्तविकता यह भी है कि जिस पेट्रोल की कीमत एक लीटर करीब ₹30 की होती है, उस पर एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और वैल्यू ऐडेड टैक्स जुड़ने के बाद उसकी कीमत 86 से ₹87 पहुंच जाती है. यानी कि अगर टैक्स कम किया जाए तो पेट्रोल डीजल की कीमतें कम हो सकती है और आम लोगों पर इसका भार कम हो सकता है.
उन्होंने कहा कि पेट्रोल प्राइसेज और फेडरल स्ट्रक्चर को हमें समझने की जरूरत है. पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय और ग्लोबल वजहों से तो बढ़ती है, लेकिन इसमें कई कारण घरेलू भी होते हैं.
उन्होंने कहा कि जितनी हमें पेट्रोल की आवश्यकता है उसका 85 फीसदी हम इंपोर्ट करते हैं. जो हमारा इंपोर्ट का 70 फीसदी बिल है वह पेट्रोलियम प्राइस के इंपोर्ट पर खर्च हो जाता है. इसीलिए भारत की जो स्थिति है पेट्रोलियम प्राइस को लेकर वह काफी सीमित है, इसीलिए हमें पेट्रोलियम स्रोत के अलावा अन्य वैकल्पिक स्रोत को भी अपनाना पड़ेगा.