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राम प्रसाद बिस्मिल, जन्मदिन पर विशेष : 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.....'

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Published : Jun 11, 2021, 9:29 AM IST

Updated : Jun 11, 2021, 9:39 AM IST

राम प्रसाद बिस्मिल उन उल्लेखनीय भारतीय क्रांतिकारियों में से थे जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद से लड़ाई लड़ी और सदियों के संघर्ष के बाद देश को आजादी की हवा में सांस लेना संभव बनाया. उनके जन्म दिन पर पढ़िए विशेष...

Ram Prasad
Ram Prasad

हैदराबाद : राम प्रसाद बिस्मिल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे जो ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल थे. उनके पिता मुरलीधर शाहजहांपुर नगर पालिका के कर्मचारी थे. रामप्रसाद ने अपने पिता से हिंदी सीखी और उन्हें मौलवी से उर्दू सीखने के लिए भेजा गया. वे एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दाखिला लेना चाहते थे और अपने पिता की अस्वीकृति के बावजूद उन्हें ऐसे ही एक स्कूल में दाखिला मिल गया.

रामप्रसाद आर्य समाज में शामिल हो गए. वे कविता लिखने में भी बहुत प्रतिभाशाली थे.उनकी सभी कविताओं में गहन देशभक्ति की भावना है. वे हमेशा भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे और देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया. उनकी टीम के सदस्यों में अशफाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, भगवती चरण, राजगुरु और कई अन्य महान स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे. रामप्रसाद महान देशभक्त और विद्वान स्वामी सोमदेवजी से धर्म और राजनीति से संबंधित सलाह लेते थे.

राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मिल

'देश हित में पैदा हुए हैं

देश पर मर जाएंगे

मरते मरते देश को

जिंदा मगर कर जायेंगे'

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है' मूल रूप से बिस्मिल अजीमाबादी द्वारा लिखे गए ये शब्द हमें देशभक्त के लिए प्रेरित करते हैं, स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और इन शब्दों को अमर कर दिया.

1918 के मैनपुरी षडयंत्र और 1925 के काकोरी षडयंत्र में भाग लेने वाले भारतीय क्रांतिकारी बिस्मिल को आज भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है.

राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में जानकारी

जन्म 11 जून 1897 शाहजहांपुर, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 19 दिसंबर 1927 गोरखपुर जेल में, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत
धर्म हिंदू
राष्ट्रीयता भारतीय
पिता जी मुरलीधर
मां मुमती
दादा नारायण लाल
परिचय राम प्रसाद बिस्मिल एक भारतीय क्रांतिकारी थे. उन्होंने 1918 के मणिपुरी षडयंत्र और 1925 के काकोरी षडयंत्र में भाग लिया.
उपनाम उन्होंने अज्ञेय, राम और बिस्मिल के उपनाम से हिंदी और उर्दू में कविताएं लिखीं.
राजनीतिक आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
जेल और मौत 19 दिसंबर 1927 को रोशन सिंह, अशफाक और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के साथ बिस्मिल को फांसी दे दी गई.
शाहजहांपुर में मूर्ति शाहजहांपुर की शहीद स्मारक समिति ने शाहजहांपुर शहर के खिरनी बाग मोहल्ले में अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल स्मारक बनवाया था, जहां बिस्मिल का जन्म 1897 में हुआ था.
कविता सरफरोशी की तमन्ना
पुस्तक

क्रान्तिकारी बिस्मिल और उनकी शायरी

मन की लहर

बोल्शेविकों की करतूत: ए रेवोलुशनार्य नोबल ऑन बोल्शेविज्म

क्रांति गीतांजलि

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन

1928 में राम प्रसाद बिस्मिल ने भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अन्य लोगों के साथ फिरोज शाह कोटला, नई दिल्ली में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की नींव रखी.

पार्टी का संविधान 1923 में बिस्मिल द्वारा तैयार किया गया था.

शिक्षा:

जब उनके पिता मुरलीधर हर कोशिश के बावजूद उन्हें "यू" नहीं सिखा सके, तो उन्होंने उर्दू माध्यम से राम को शिक्षित करने का फैसला किया और उन्हें शाहजहांपुर के इस्लामिया स्कूल में भर्ती कराया गया. जैसे-जैसे वे बड़े हुए, वे बुरे छात्रों के संपर्क में आ गए और रोमांटिक कविता की किताबें और सस्ते उपन्यास पढ़ने लगे, जिससे उनका शिक्षा प्रभावित हुई.

जब वे उर्दू की सातवीं कक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण हुए, तो उन्हें शहर के मिशन स्कूल नामक एक अंग्रेजी स्कूल में भर्ती कराया गया. मिशन स्कूल से फर्स्ट डिवीजन से 8वीं पास करने के बाद उनका दाखिला शाहजहांपुर के सरकारी स्कूल में हो गया. इस स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने अपना उपनाम 'बिस्मिल' रखा और देशभक्ति कविता लिखना जारी रखा. वह अपने सहपाठियों के बीच बिस्मिल नाम से लोकप्रिय हो गए.

बिस्मिल का जीवन

बिस्मिल 7वीं कक्षा में थे, जब उनके पिता मुरलीधर ने उन्हें एक मौलवी के संपर्क में रखा, जो उन्हें उर्दू पढ़ाते थे. बिस्मिल को भाषा इतनी पसंद थी कि उन्होंने उर्दू उपन्यास पढ़ना शुरू कर दिया.

बहुत कम उम्र में ही उनका परिचय आर्य समाज से हो गया था. वे इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जीवन भर अविवाहित रहने की कसम खाई और उन्होंने ऐसा ही किया.

चूंकि बिस्मिल राष्ट्रवादी आंदोलन से काफी प्रभावित थे, इसलिए वे पंडित गेंदा लाल दीक्षित के नेतृत्व वाले एक क्रांतिकारी समूह में शामिल हो गए. तब वे केवल 19 वर्ष के थे.

क्रांतिकारी भाई परमानंद की मौत की सजा का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को खत्म करने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया. बाद में परमानंद की मौत की सजा को कम कर दिया गया.

बिस्मिल कॉलेज में थे जब उनकी मुलाकात अशफाकउल्लाह खान से हुई, जो शाहजहांपुर से भी थे. वे जीवन भर के लिए दोस्त बन गए और दाेनाें ने मिलकर ब्रिटिश विरोधी गतिविधियां शुरू की.

बिस्मिल ने 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जाेर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है' कविता को अमर बना दिया. यह मूल रूप से 1921 में पटना के एक उर्दू कवि बिस्मिल अजीमाबादी द्वारा लिखा गया था. बिस्मिल ने अपने दोस्तों, अशफाकउल्लाह खान, रोशन सिंह और अन्य लोगों के साथ 1927 में जेल में बंद होने पर 'मेरा रंग दे बसंती चोला' गीत लिखा था.

उन्होंने जेल में काकोरी के शहीद नामक एक पुस्तक लिखी, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले पूरा किया. राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी. वह केवल 30 वर्ष के थे.

काकोरी षडयंत्र (Kakori Conspiracy)

9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल ने साथी अशफाकउल्ला खान और अन्य लोगों के साथ लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन को लूटने की योजना को अंजाम दिया. क्रांतिकारियों द्वारा काकोरी में 8-डाउन सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रोकने के बाद, अशफाकउल्ला खान, सचिंद्र बख्शी, राजेंद्र लाहिड़ी और राम प्रसाद बिस्मिल ने गार्ड को कब्जे में कर लिया और खजाने के लिए नकदी लूट ली. हमले के एक महीने के भीतर नाराज औपनिवेशिक अधिकारियों ने एक दर्जन से अधिक एचआरए सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया.

19 दिसंबर काे काकोरी साजिश के पीछे के मास्टरमाइंड, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और रोशन सिंह को साजिश में शामिल होने की वजह से फांसी दे दी गई.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक, काकोरी षड्यंत्र ने ब्रिटिश प्रशासन को हिला कर रख दिया था. इस योजना को सरकार से संबंधित धन को सुरक्षित करने और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को धनराशि प्रदान करने के लिए क्रियान्वित किया गया था. तथाकथित काकोरी षडयंत्र में मुकदमे के बाद इन चारों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई..

मैनपुरी षडयंत्र (Mainpuri Conspiracy)

28 जनवरी 1918 को 'बिस्मिल' ने 'देशवासियों के नाम संदेश' (देशवासियों के लिए एक संदेश) शीर्षक से एक पैम्फलेट प्रकाशित किया और इसे अपनी कविता "मैनपुरी की प्रतिज्ञा" (मैनपुरी का व्रत) के साथ जनता के बीच वितरित किया. पार्टी के लिए धन इकट्ठा करने के लिए 1918 में तीन बार लूटपाट की गई. पुलिस ने मैनपुरी और उसके आसपास उनकी तलाशी ली. जब वे दिल्ली और आगरा के बीच एक और लूट की योजना बना रहे थे, तो पुलिस की एक टीम आ गई और दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई.

बिस्मिल यमुना नदी में कूद गए और पानी के भीतर तैरने लगे. पुलिस को लगा कि वे मुठभेड़ में मारे गये हैं. दीक्षित को उसके अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और उसे आगरा के किले में रखा गया, जहां से बाद में दीक्षित भाग गये और दिल्ली में भूमिगत रहने लगे.

उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था. इसे ब्रिटिश के खिलाफ 'मैनपुरी षडयंत्र' के रूप में जाना जाता है. 1 नवंबर 1919 को मैनपुरी के न्यायिक मजिस्ट्रेट बी.एस. क्रिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ फैसला सुनाया और दीक्षित और बिस्मिल को भगोड़ा घोषित कर दिया. तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी. बिस्मिल ने कई हिंदी कविताएं लिखीं- उनमें से अधिकांश देशभक्तिपूर्ण थीं. 'सरफरोशी की तमन्ना' कविता राम प्रसाद बिस्मिलो की सबसे प्रसिद्ध कविता है. काकोरी षडयंत्र में दोषी ठहराए जाने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने फैसला सुनाया कि राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दी जाएगी.

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उन्हें गोरखपुर में सलाखों के पीछे रखा गया और फिर 19 दिसंबर, 1927 को महज 30 साल की उम्र में फांसी पर लटका दिया गया. उनकी मृत्यु ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक को देश से छीन लिया.

Last Updated : Jun 11, 2021, 9:39 AM IST

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