नई दिल्ली : राज्य सभा में शून्यकाल के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) के संजय सिंह ने केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवा नियमावली लागू करने के केंद्र सरकार के आदेश को 'बेहद दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया और कहा कि यह फैसला संविधान की भावना के विपरीत है. उन्होंने कहा कि इस प्रकार के फैसले से केंद्र की सरकार पंजाब की सरकार और चंडीगढ़ में काम करने वाले राज्य के कर्मचारियों के अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है.
आप सदस्य ने कहा कि आजादी के इतने सालों बाद भी शहीद भगत सिंह, लाला लाजपत राय और जलियांवाला बाग के शहीदों की धरती पंजाब की अपनी एक राजधानी नहीं है. उन्होंने कहा, 'राज्य के अधिकारों को छीनने का प्रयास ना करे केंद्र सरकार. चुनाव में हार और जीत अलग बात है लेकिन एक चुनी हुई सरकार के अधिकारों को छीनना, कर्मचारियों के अधिकारों को छीनना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा कोई भी कानून वहां नहीं लागू होना चाहिए.'
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के एम षणमुगम ने वर्ष 2015 के बाद भारतीय श्रम सम्मेलन का आयोजन ना किए जाने पर चिंता जताई और सरकार से आग्रह किया कि जल्द से जल्द इस सम्मेलन की बैठक की जाए और श्रमिकों से जुड़े मुद्दों तथा उनकी चिंताओं का निवारण किया जाए. उन्होंने कहा कि भारतीय श्रम सम्मेलन की पहली बैठक 1940 में हुई थी और इसके बाद प्रति वर्ष इसका आयोजन किया गया. कुछ मौकों पर दो वर्षों के अंतराल के बाद भी इस सम्मेलन का आयोजन किया गया.
द्रमुक सदस्य ने कहा कि आखिरी बार वर्ष 2015 में भारतीय श्रम सम्मेलन की 45वीं बैठक का आयोजन किया गया था और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संबोधन दिया था. उन्होंने कहा, 'इसके बाद से इस सम्मेलन का आयोजन निलंबित है. कोई बैठक नहीं हुई. यह एक ऐसा मंच है जिसमें कर्मचारी, नियोक्ता और सरकार एक साथ बैठकर श्रमिकों से जुड़े मामलों पर चर्चा करते हैं.'
पिछले दिनों हुई श्रमिक संगठनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का उल्लेख करते हुए द्रमुक नेता ने कहा, 'श्रमिक संगठन भी भारतीय श्रम सम्मेलन के आयोजन की मांग कर रहे हैं. मैं आपसे आग्रह करता हूं कि जल्द से जल्द इस सम्मेलन का आयोजन किया जाए ताकि श्रमिकों से जुड़ों मुद्दों पर चर्चा हो सके.'
मनोनीत सदस्य नरेंद्र जाधव ने पदक विजेता खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति से जुड़ा मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के बूते देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाड़ियों की एक ऐसी भी तादाद है, जिन्हें कालांतर में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा.