नई दिल्ली : 10 जून को 15 राज्यों की 57 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन शुरू हो गए हैं. इसके साथ ही केंद्र की राजनीति भी गरमा गई है. इस चुनाव को 18 राज्यों में शासन करने वाली और राज्यसभा में 95 सीटों वाली भाजपा को ज्यादा फायदा नहीं होगा. मगर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की ऊपरी सदन में स्थिति मजबूत होगी. ये क्षेत्रीय पार्टियां राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका दिखाने की तैयारी कर रही हैं.
जून में बीजेपी के जिन प्रमुख चेहरों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उनमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हैं. इन सभी का दोबारा चुना जाना तय है. राजनीति से जुड़े लोगों की नजर उत्तर प्रदेश की 11 राज्यसभा सीटों पर टिकी हैं. यूपी से भाजपा के पांच, सपा के तीन, बीएसपी के दो और कांग्रेस के एक सदस्य रिटायर हो रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी और कांग्रेस की सीटें इतनी कम हो गईं कि अब वह अपने खाते से किसी को राज्यसभा नहीं भेज सकते हैं. इस हालात में बीजेपी के सात और समाजवादी पार्टी के तीन सदस्यों का चुना जाना तय है. एक सीट के लिए वोटिंग की जरूरत पड़ सकती है.
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कांग्रेस के पूर्व नेता कपिल सिब्बल को समर्थन दिया है. बुधवार को कपिल सिब्बल ने अपना नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया. चर्चा है कि दूसरी सीट के लिए आरएलडी नेता जयंत चौधरी के नाम को हरी झंडी दी गई है. बहुजन समाजवादी पार्टी के नेता सतीश चंद्र मिश्र भी राज्यसभा से रिटायर होने वाले हैं, मगर विधानसभा में सदस्यों की संख्या कम होने से उनके दोबारा चुने जाने की संभावना कम है.
बिहार में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव होंगे. अभी तक इनमें बीजेपी की दो, जेडी यू की दो और आरजेडी की एक सीट है. 2020 में जेडीयू की सीटों की संख्या कम हो गई थी, इस कारण अब उनके एक मेंबर ही राज्यसभा जा सकेंगे. इस बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को दोबारा समर्थन देने से इनकार कर दिया है, क्योंकि वह बीजेपी के करीबी माने जा रहे हैं. अगर बीजेपी और जेडी-यू के बीच हालात सामान्य होते तो आरसीपी सिंह को दूसरे कार्यकाल का मौका मिल सकता था. मगर जेडी यू के नेता राजीव रंजन सिंह के साथ उनके मतभेद के कारण यह मौका छिन सकता है. अभी नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्तों में दरार आ चुकी है.