दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

बिहार विधानसभा चुनाव : राजनीतिक पंडितों का गणित फेल

बेरोजगारी का दंश झेल रहे बिहार में इस चुनाव में विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया. महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी अपने इसी मुद्दे पर अंत तक कायम रहे और भटके नहीं. 10 लाख नौकरियां, 10 लाख युवाओं से जुड़ी नहीं थीं, ये उतने ही परिवारों से भी जुड़ी थी. अब ये परिवार कौन थे, ये ठीक उसी तरह है, जैसे 1 वैकेंसी के लिए फॉर्म भरने वाले हजारों युवा.

बिहार विधानसभा चुनाव
बिहार विधानसभा चुनाव

By

Published : Nov 8, 2020, 9:35 PM IST

Updated : Nov 9, 2020, 6:10 AM IST

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में तमाम राजनीतिक पंडितों का लेखा-जोखा और गुणा-गणित सब बिगड़ गया है. ऐसा बिहार में तीन चरणों में संपन्न हुए चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल बयां कर रहे हैं, जो अब किसी से छिपे नहीं हैं. एग्जिट पोल बिहार में युवा चेहरे तेजस्वी यादव की जीत दिखा रहे हैं. राजद जितनी मजबूती से खड़ी दिखाई दे रही है और कांग्रेस जिस मजबूती में दिख रही है. उसके पूरे मजमून को लिखने वाले कोई और नहीं बिहार के युवा ही हैं.

बिहार में युवाओं की लहर है और युवा सिर्फ विकास देखता है. जाति, धर्म संप्रदाय की बातें कभी सियासत में जोड़ी जाती थीं, लेकिन आज युवाओं की सियासत में सिर्फ रोजगार है, जो उनके परिवार को मजबूती देता है. देश की मजबूती के लिए किसी भी युवा के परिवार का मजबूत होना जरूरी है, तभी वह देश की मजबूती में अहम भूमिका निभा पाएगा.

हाथ लगी निराशा!
बिहार में 7.18 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें 3 करोड़ 66 लाख मतदाता 18 से 39 साल के हैं. दरअसल, ये वही मतदाता हैं, जिनके भीतर रोजगार और व्यवसाय को लेकर सबसे ज्यादा उम्मीदें हिलोरे लेती हैं. नीतीश कुमार जब गद्दी पर बैठे थे, तो जिनकी उम्र 18 साल की थी. वह आज लगभग 38 साल तक हो गए हैं. जिन लोगों ने नीतीश के समय को बिहार के बदलाव का समय माना था. उनके हाथ भी रोजगार के नाम पर निराशा ही हाथ लगी है.

तेजस्वी ने पकड़ी ली नब्ज!
तेजस्वी यादव ने इस नब्ज को पकड़ लिया और 2020 की सियासी फतेह के लिए, जो आंकड़े एग्जिट पोल के माध्यम से आ रहे हैं, वो अब उसकी मूल वजह का आधार बन गया. तेजस्वी ने जिस आयु वर्ग को पकड़ा, तमाम राजनीतिक पंडित उसे पकड़ने में पीछे रह गए. 7.8 करोड़ मतदाता में से ही 3.66 करोड़ युवा जो बिहार की तकदीर बदलने की काबलियत रखते हैं और उनको नजरअंदाज कर तमाम राजनीतिक दलों ने अपने लिए परेशानी मोल ले ली.

10 लाख परिवारों की पसंद बन गए तेजस्वी!
तेजस्वी ने सरकार बनते ही पहली कैबिनेट में 10 लाख नौकरी देने का एलान किया और अपनी हर चुनावी सभा में उन्होंने इस बात को बार-बार दोहराया. ऐसे में ये बात भी मान लेनी चाहिए कि ये सिर्फ 10 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा नहीं था, ये 10 लाख परिवारों से जुड़ गया. हां ये बात जरूर है कि ये 10 लाख परिवार कौन हैं, ये तो शायद उन परिवारों को भी नहीं पता जिसने तेजस्वी पर भरोसा जताया है.

वैसे तेजस्वी खुद चुनावी सभाओं में कहते रहे कि बिहार में बेरोजगारी चरम सीमा पर है. ऐसे में एक वैकेंसी के लिए लाखों लोग आवेदन करते हैं. ये बात सभी को पता थी. यहां 10 लाख नौकरी देने का एलान कर तेजस्वी ने उन्हीं वैकेंसी के आवेदकों को जगा दिया.

बीजेपी रह गई पीछे
2014 में जब नरेंद्र मोदी देश की राजनीति के लिए मजबूत होकर के बीजेपी को दिशा दे रहे थे, तो उन्होंने भी युवाओं को ही सबसे ज्यादा तरजीह दी थी. काला धन, भ्रष्टाचार और युवाओं को रोजगार उनका सबसे बड़ा मुद्दा था. 2015 में नीतीश से अलग होने के बाद नरेंद्र मोदी ने जब अपना चुनावी मुद्दे और उसपर बयानबाजी शुरू की, तो बिहार के लिए पढ़ाई-कमाई और दवाई को ही तरजीह दी, लेकिन इस बार जाति की सोशल इंजीनियरिंग ज्यादा मजबूत हुई और बीजेपी को इसका फायदा नहीं मिल पाया.

सामने आए सियासतदानों के चेहरे
5 सालों में बिहार की राजनीति ने जिस तरीके से करवट ली, उसमें कई सियासतदानों के चेहरे सामने आ गए. युवा बस इंतजार के लिए नहीं बैठ सकता कि नेताजी की सियासत कब तक रहेगी. काम करने के लिए वादा करके आए और काम न कर पाने पर सियासी पारी को अंजाम दे जाएंगे. इसका दावा कर दिया तो उन युवाओं का भटकना भी लाजमी हो गया कि आखिर हम विकास के लिए पांच साल बाद जवाब मांगने किसके पास जाएंगे.

नीतीश कुमार ने इमोशनल कार्ड जरूर फेंका, लेकिन बिहार जिस भूख से जूझ रहा है उसका क्या होगा. इसे समझने में तमाम सियासी दिग्गज फेल हो गए. नेता यह नहीं समझ पाए कि सत्ता में आने के लिए नौकारी की राजनीति का तमाम तामझाम रखकर जनता से फरियाद कर रहे हैं, उसकी बात को कौन उठाएगा.

युवा राजनीति वाला बिहार!
बिहार में युवा राजनीति सियासत को नई दिशा दे रही है. युवा आज की राजनीति में निर्णयक भूमिका अदा करने के लिए तैयार भी हैं. तेजस्वी यादव जिस उम्र में हैं, चिराग पासवान जिस तरीके से दावा कर रहे हैं. पुष्पम प्रिया ने जिस तरीके से दौरा किया है, श्रेयसी सिंह को बीजेपी चुनावी मैदान में ले आई है. ये ऐसे युवा चेहरा हैं, जिनके बदौलत राजनीतिक दल अपने आने वाली पीढ़ी के लिए एक दिशा दे गए हैं.

बात नीतीश कुमार की करें, तो नीतीश के बाद जदयू को कौन संभालेगा. इसे साफ करने में जदयू का हर नेता फेल ही हो गया. युवाओं के लिए नीतीश कुमार ने भी दावे खूब किए थे, लेकिन जमीन पर नहीं उतरे. 2020 के लिए जिस बदलाव का युवा का लहर का असर एग्जिट पोल के रूप में दिख रहा है, यह बिहार के युवाओं के मन की लहर का वो असर है, जो नौकरी के लिए कहीं और नहीं जाता चाहता. बिहार और बिहारी इसी धरती पर कहलाएं यही उसका मन है और इसी मन ने नए राजनीतिक समीकरण को गढ़ दिया है. फिलहाल यह पूर्ण तो 10 नवम्बर को होगा कि बिहार को बदलने के लिए जो चुना जा रहा है. वह कहीं युवा मन की लहर के विपरीत जाकर बदल जाता है या फिर विकास की वही बानगी जमीन पर उतारता है, जो उसने अपने वादों में चरितार्थ करने की बात कही है.

Last Updated : Nov 9, 2020, 6:10 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details