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जिस पुलिसकर्मी ने सीरियल ब्लास्ट को सुलझाया, उसे दिल्ली पुलिस ने 24 साल रुलाया - अपने ही विभाग से लड़ रहे पुलिस अधिकारी

साल 1996-97 में दिल्ली NCR में हुए सीरियल ब्लास्ट को सुलझाने वाले सब इंस्पेक्टर संदीप मल्होत्रा को अपने ही विभाग ने 24 साल तक परेशान किया. संदीप मल्होत्रा को आखिर क्यों खटखटाना पड़ा कोर्ट का दरवाजा जानने के लिए पढ़िये पूरा मामला.

Police officer fought legal battle
Police officer fought legal battle

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Published : Jul 9, 2022, 2:15 PM IST

नई दिल्ली:साल 1996-97 में दिल्ली एनसीआर के भीतर हुए सीरियल ब्लास्ट को सुलझाने में जिस सब इंस्पेक्टर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसके खिलाफ 20 साल तक महकमे ने कानूनी जंग लड़ी. उसे बारी से पहले तरक्की देकर महकमे ने तीन महीने में वापस ले ली, जिसके चलते सब इंस्पेक्टर को 24 साल यहां-वहां फरियाद करनी पड़ी. इस मामले में हाईकोर्ट ने उसके प्रमोशन को सही मानते हुए उसे सभी लाभ देने के निर्देश दिए हैं.

जानकारी के अनुसार वर्ष 1995 में संदीप मल्होत्रा दिल्ली पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हुए थे. वर्ष 1996-97 में दिल्ली-एनसीआर में जगह-जगह सीरियल ब्लास्ट हुए. इसकी जांच क्राइम ब्रांच के तत्कालीन एडिशनल कमिश्नर बीके गुप्ता और तत्कालीन डीसीपी करनैल सिंह कर रहे थे. उन्होंने अपनी टीम में टेक्निकल सर्विलांस एवं जांच के लिए संदीप मल्होत्रा को शामिल किया. संदीप द्वारा दी गई महत्वपूर्ण जानकारी की वजह से पुलिस टीम आतंकियों को पकड़ने में कामयाब रही. इस बेहतरीन काम के लिए वर्ष 1998 में कई पुलिसकर्मियों को बारी से पहले तरक्की दी गई, जिसमें सब इंस्पेक्टर संदीप मल्होत्रा का नाम भी शामिल था. यह पदोन्नति उपराज्यपाल की मंजूरी से तत्कालीन पुलिस कमिश्नर टीआर कक्कड़ द्वारा दी गई थी.

20 साल तक पुलिस अधिकारी ने अपने ही विभाग से लड़ी कानूनी लड़ाई.

अधिवक्ता अनिल सिंगल ने बताया कि इंस्पेक्टर का पद मिलने के महज तीन महीने बाद संदीप को बताया गया कि उनका प्रमोशन वापस लिया जा रहा है, क्योंकि पदोन्नति का कोटा केवल 5 फीसदी है और उनके कैडर में जगह नहीं है. उन्होंने इसे लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष अपील की लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ. उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने संदीप के समर्थन में पत्र लिखे लेकिन महकमे ने एक नहीं सुनी.

आखिरकार संदीप ने 2002 में केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट(Central Administrative Tribunal) का रुख किया. सुनवाई के बाद 2003 में कैट ने संदीप के हक में फैसला दिया. लेकिन दिल्ली पुलिस को यह फैसला स्वीकार नहीं था. इसलिए वह इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गए. उधर उन्होंने इस मामले में उपराज्यपाल को अवमानना का नोटिस भेजा जिसके बाद संदीप को पदोन्नति वापस मिली. इसके साथ यह शर्त रखी गई कि हाईकोर्ट के फैसले को माना जायेगा.

अधिवक्ता अनिल सिंगल ने बताया कि वहां पर 19 साल तक यह केस चलता रहा. इस दौरान संदीप इंस्पेक्टर से एसीपी भी बन गए, लेकिन पुलिस महकमा उनके खिलाफ केस लड़ता रहा. सुनवाई के दौरान उन्होंने हाईकोर्ट को बताया कि संदीप ने किस तरह से सीरियल ब्लास्ट को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उसे पुलिस कमिश्नर की तरफ से जो पदोन्नति दी गई थी, उसकी स्वीकृति खुद तत्कालीन उपराज्यपाल ने दी थी. लेकिन तीन महीने बाद दिल्ली पुलिस ने गलत तरीके से उनकी पदोन्नति को रद्द करने की कोशिश की. हाईकोर्ट ने उनकी इस दलील को मानते हुए दिल्ली पुलिस के केस को खारिज कर दिया है. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि पद के सभी आर्थिक लाभ संदीप को जोड़कर दिए जाएं.

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