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बस्तर में पुलिस ने तोड़ी नक्सलियों की हथियार सप्लाई चेन, अब देसी हथियारों से चला रहे काम

छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों की शहरी सप्लाई चेन को तोड़ने के लिए पुलिस लगातार प्रयास कर रही Police broke the arms supply chain of Naxalites in Bastar) है. बस्तर पुलिस का दावा है कि सप्लाई चेन प्रभावित होने से नक्सली लगातार कमजोर हो रहे हैं. अब नक्सलियों के पास देसी हथियार ही बचे हैं.

Security forces break supply chain of Naxalites
नक्सलियों को झटका

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Published : Jul 5, 2022, 6:38 PM IST

बस्तर : पुलिस का दावा है कि नक्सल दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की बस्तर के जंगलों में पकड़ लगातार कमजोर हो रही है. बस्तर पुलिस विस्फोटक, दवाइयां, टेंट सामग्री सहित अन्य जरूरी चीजों को माओवादियों तक पहुंचने से रोकने के लिए विशेष अभियान चला रही (Police broke the arms supply chain of Naxalites in Bastar) है. इसके लिए तेलंगाना, ओडिशा और महाराष्ट्र से कोआर्डिनेशन में पुलिस काम कर रही है. पिछले 3 साल में तेलंगाना और महाराष्ट्र की ओर से मिले इनपुट पर कई मुठभेड़ भी हुईं हैं. जिनमें छत्तीसगढ़ पुलिस का अहम योगदान रहा (Naxalites broken back in Bastar) है.

नक्सलियों का सप्लाई चेन टूटा

नक्सलियों का सप्लाई चेन टूटा :बस्तर जिले के कोड़ेनार से माओवादियों तक डेटोनेटर और विस्फोटक पहुंचाने की कोशिश में पुलिस ने 9 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह गिरफ्तारी इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर करीब सप्ताह भर पहले सुनियोजित तरीके से पीछा करने के बाद की गई है. बस्तर के कई अलग-अलग क्षेत्रों में माओवादियों तक सामान सप्लाई करने वाले लोगों पर पुलिस की लगातार नजर (Chhattisgarh Police campaign in Bastar) है. बस्तर पुलिस का कहना है कि ''महत्वपूर्ण जीवन रक्षक दवाएं, हथियार, गोलियां और पैसे अति संवेदनशील इलाकों में ना पहुंचे, इसे ध्यान में रखते हुए पुलिस रणनीति बनाकर काम कर रही है.''

बस्तर पुलिस के हौसले बुलंद :नक्सलियों की सप्लाई चेन तोड़ने के लिए तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा राज्यों के साथ संयुक्त समन्वय में रणनीति भी तैयार की गई है. बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि ''दक्षिण बस्तर इलाके में पुलिस और डीआरजी द्वारा रॉकेट लॉन्चर, देसी गन, आईईडी जैसे अवैध हथियार के ठिकानों पर पुलिस टीम द्वारा छापामार कार्रवाई करके आर्म्स एम्युनिशन जब्त किए गए (Naxalites in Bastar arms supply chain broken) हैं. 2021-22 में भी पुलिस टीम ने छापामार कार्रवाई करके इस तरह के आर्म्स एम्युनिशन जब्त किए गए हैं. माओवादियों की गतिविधियां कम करने और उनके सप्लाई चेन को तोड़ने के लिए अंदरुनी इलाकों में पुलिस टीम द्वारा कार्रवाई की गई थी. यह कार्रवाई लगातार जारी है. इंटर स्टेट बॉर्डर पर भी नाकाबंदी कर सप्लाई चेन तोड़ने की कार्रवाई की गई है. इस वजह से नक्सलियों का सप्लाई नेटवर्क और उनके हथियार बनाने की केपेबिलिटी कम की गई है. नक्सलियों के शहरी और सप्लाई नेटवर्क को रोकने की दिशा में भी काम किया गया है. पिछले 2 साल में मेडिकल सप्लाई प्रभावित होने की वजह से कई नक्सलियों का इलाज नहीं हो पाया. लगातार पुलिस के दबाव और नियंत्रण का ही असर है कि माओवादी देसी हथियारों का ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं, जो पुलिस के सामने कोई खास असर कारक नहीं है. पुलिस का इंटेलिजेंस बड़ा है और इसकी वजह से अब अंदरूनी इलाकों तक हथियार सप्लायरों को रोकने और ऑपरेशन करने में भी पुलिस की ताकत बढ़ रही है.''

देसी हथियार कितने हैं कारगर :भले ही पुलिस ये मानकर चल रही हो कि देसी हथियारों पर फोर्स भारी पड़ेगी.लेकिन नक्सल मामलों के जानकारों का कुछ और ही कहना है. नक्सल मामलों के जानकार मनीष गुप्ता के मुताबिक ''आर्म्स एम्युनिशन नक्सलियों की स्ट्रेंथ है. अब रही बात देसी और अत्याधुनिक हथियारों की या ऑटोमेटिक विपन्स की. मुझे लगता है कि हथियार, हथियार हैं. चाहे वो कंट्री मेड हो या ऑटोमेटेड हो, उस पर भी गोलियां होती हैं और ऑटोमेटिक में भी गोलियां होती हैं. रही बात जिस तरह से नक्सल अपना संगठन बढ़ाए हुए हैं. निश्चित रुप से उनके लिए आर्म्स एम्युनिशन एक चुनौती है कि पुलिस लगातार नक्सलियों की पतासाजी करती रहती है. नक्सलियों का जो सप्लाई चेन है, उस पर भी पुलिस अटैक रहता है, ऐसे में नक्सलियों के लिए देसी औजार काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. नक्सली अपने निचले कैडर को कंट्री मेड हथियार देकर दहशत फैलाने का काम करते हैं.''

बस्तर के किस क्षेत्र में मुश्किल :दक्षिण छत्तीसगढ़ का काफी बड़ा पहुंचविहीन क्षेत्र दूसरे राज्यों की सीमाओं से लगता है. यहां छत्तीसगढ़ से मिले इनपुट के आधार पर पुलिस ग्राउंड फोर्स अंदरूनी इलाकों में पहुंचकर ऑपरेशन को अंजाम देते हैं. महाराष्ट्र, तेलंगाना पुलिस ने छत्तीसगढ़ से मिले कई महत्वपूर्ण इनपुट पर बीते 3 सालों में कई बड़े ऑपरेशन दंडकारण्य जोन में किए हैं. जिसमें बीते 3 सालों में 58 माओवादी मारे गए. कई बड़े लीडर समय पर दवाओं की उपलब्धता नहीं होने की वजह से भी मारे गए हैं.

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